मुंडा भाषाएँ
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मुंडा भाषाएँ ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार से संबद्ध भाषाओं का समूह, जिसे मध्य और पूर्वी भारत में लगभग 90 लाख लोग बोलते हैं। कुछ विद्वान् इन भाषाओं को दो उपपरिवारों में विभक्त करते है।[1]
- उत्तरी मुंडा भाषा बंगाल, उड़ीसा और झारखंड के छोटा नागपुर के पठार में बोली जाती है, जिसमें कुर्कू, संथाली, मुंडारी, भूमिज और हो भाषाएँ शामिल हैं।
- दक्षिण मुंडा भाषाएँ मध्य उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्र में बोली जाती है।
- दक्षिण मुंडा को मध्य मुंडा, खड़िया व जुआंग जैसी भाषाओं और कोरापुट मुंडा को गुतोब, गुतोब, रेमो, सोरा (सवर), जुरे और गोरूंग में विभक्त किया गया है।
- इन दोनों समूहों में उत्तरी मुंडा[2] ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं और इस समूह की भाषाएँ संपूर्ण मुंडाभाषी लोगों के 90 प्रतिशत भाग द्वारा बोली जाती हैं।
- संथाली के बाद 'मुंडारी' और 'हो' बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद कुर्कू व सोरा का स्थान है।
- अन्य मुंडा भाषाएँ छोटे, अलग-थलग समूहों द्वारा बोली जाती हैं और इनके बारे में बहुत कम जानकारी है।
- मुंडा भाषाओं की विशेषता तीन वचन (एकवचन, द्विवचन और बहुवचन) और संज्ञाओं के लिए दो लिंग वर्ग (सजीव और निर्जीव) हैं। क्रिया रूपों के काल को प्रदर्शित करने के लिए प्रत्ययों का उपयोग होता है।
- मुंडा ध्वनि प्रणाली में व्यंजन क्रम विरल हैं, हालांकि कुछ भाषाओं में अक्षर उच्च और निम्न ध्वनियों को प्रदर्शित करते हैं, पर इनमें से अधिकांश भाषाओं का एक निश्चित बलाघात है।
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