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हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भारत ने जितना ॠण ग्रहण किया है, उतना ही अथवा उससे भी अधिक उसने प्रदान किया है। भारत के प्रति विश्व के ॠण का सारांश इस प्रकार है-

सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी अधिकांश संस्कृति भारत से प्राप्त हुई। ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पश्चिमी भारत के उपनिवेशी लंका में बस गये, जिन्होंने अशोक के राज्यकाल में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इस समय तक कुछ भारतीय व्यापारी सम्भवतया मलाया, सुमात्रा तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में आने जाने लगे थे। धीरे धीरे उन्होंने स्थायी अपनिवेश स्थापित कर लिए। इसमें संदेह नहीं कि प्राय: उन्होंने स्थानीय स्त्रियों से विवाह किये। व्यापारियों के पश्चात वहाँ ब्राह्मण तथा बौद्ध भिक्षुक पहुँचे और भारतीय प्रभाव ने शनै: शनै: वहाँ की स्वदेशी संस्कृति को जाग्रत किया। यहाँ तक कि चौथी शताब्दी में संस्कृत उस क्षेत्र की राजभाषा हो गयी और वहाँ ऐसी महान सभ्यताएँ विकसित हुईं जो विशाल समुद्रतटीय साम्राज्यों का संगठन करने तथा जावा में बरोबदूर का बुद्ध स्तूप अथवा कम्बोडिया में अंगकोर के शैव मंदिर जैसे आश्चर्यजनक स्मारक निर्मित करने में समर्थ हुई। सक्षिण-पूर्व एशिया में अन्य सांस्कृतिक प्रभाव चीन एवं इस्लामी संसार द्वारा अनुभव किए गये परन्तु सभ्यता की प्रारम्भिक प्रेरणा भारत से ही प्राप्त हुई

भारतीय इतिहासकार जो अपने देश के अतीत पर गर्व करते हैं प्राय: इस क्षेत्र को 'वृहत्तर भारत' का नाम देते हैं तथा भारतीय उपनिवेशों का वर्णन करते हैं। अपने सामान्य अर्थ में 'उपनिवेश' शब्द युक्तिसंगत नहीं जान पड़ता है फिर भी यह कहा जाता है कि पौराणिक आर्य विजेता विजय ने तलवार के बल से लंका द्वीप पर विजय प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त भारत की सीमा के बाहर किसी स्थायी भारतीय विजय का कोई वास्तविक प्रमाण उप्लब्ध नहीं है। भारतीय उपनिवेश शान्तिप्रिय थे और उन क्षेत्रों के भारतीय नृपति स्वदेशी सेनापति थे। जिन्होंने भारत से ही सारी शिक्षा ग्रहण की थी।

भारतीय संविधान सभा

भारतीय संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर, सन 1946 ई. को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई।

संविधान सभा के प्रमुख सदस्य
कांग्रेसी सदस्य ग़ैर कांग्रेसी सदस्य महिला सदस्य सदस्यता अस्वीकार करने वाले व्यक्ति
पं जवाहर लाल नेहरू डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सरोजनी नायडू जय प्रकाश नारायण
सरदार वल्लभ भाई पटेल डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी श्रीमती हंसा मेहता तेज बहादुर सप्रू
डॉ. राजेंद्र प्रसाद एन. गोपालास्वामी आयंगर
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पं. हृदयनाथ कुंजरू
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर
आचार्य जे.बी. कृपलानी टेकचंद बख्शी
पं. गोविंद वल्लभ पंत प्रो. के. टी. शाह
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन डॉ. भीमराव अम्बेडकर
बाल गोविंद खेर डॉ. जयकर
के. एम. मुंशी
टी. टी. कृष्णामाचारी
संविधान सभा की प्रमुख समितियां
समिति अध्यक्ष
नियम समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
संघ शक्ति समिति पं जवाहर लाल नेहरू
संघ संविधान समिति पं जवाहर लाल नेहरू
प्रांतीय संविधान समिति सरदार वल्लभ भाई पटेल
संचालन समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
प्रारूप समिति डॉ. भीमराव अम्बेडकर
झण्डा समिति जे. बी. कृपलानी
राज्य समिति पं जवाहर लाल नेहरू
परामर्श समिति सरदार वल्लभ भाई पटेल
सर्वोच्च न्यायालय समिति एस. वारदाचारियार
मूल अधिकार उपसमिति जे. बी. कृपलानी
अल्पसंख्यक उपसमिति एच. सी. मुखर्जी

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भारत पर विदेशी आक्रमण भारतवर्ष- प्राकृतिक मानचित्र भारत- गुप्त साम्राज्य भारत- हर्ष साम्राज्य भारत- कुषाण साम्राज्य भारत- महाकाव्य काल भारत- पाषाण काल ॠग्वैदिक कालीन भारत वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ भारत में प्रस्तर युग के महत्त्वपूर्ण स्थल

त्योहार और मेले

त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।

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टीका टिप्पणी


भारतीय कला

भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विवधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था। हस्तकुल्हाड़े, खुरचनी, छिद्रक, तक्षिणियाँ तथा बेधक आदि पाषाण-उपकरण सिर्फ़ उपयोगिता की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं थे, बल्कि उनका कलात्मक पक्ष भी ध्यातव्य है। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसकी जीवन शैली के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी मजबूत होता गया। जहाँ पर एक ओर मृदभांण्ड, भवन तथा अन्य उपयोगी सामानों के निर्माण में वृद्धि हुई वहीं पर दूसरी ओर आभूषण, मूर्ति कला, सील निर्माण, गुफ़ा चित्रकारी आदि का भी विकास होता गया। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में विकसित सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत के इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही कला की परिपक्वता का साक्षात् प्रमाण है। खुदाई में लगभग 1,000 केन्द्रों से प्राप्त इस सभ्यता के अवशेषों में अनेक ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनको देखकर बरबर ही मन यह मानने का बाध्य हो जाता है कि हमारे पूर्वज सचमुच उच्च कोटि के कलाकार थे।

ऐतिहासिक काल में भारतीय कला में और भी परिपक्वता आई। मौर्य काल, कुषाण काल और फिर गुप्त काल में भारतीय कला निरन्तर प्रगति करती गई। अशोक के विभिन्न शिलालेख, स्तम्भलेख और स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ और उसके चार सिंह व धर्म चक्र युक्त शीर्ष भारतीय कला का उत्कृष्ट नमूना है। कुषाण काल में विकसित गांधार और मथुरा कलाओं की श्रेष्ठता जगजाहिर है। गुप्त काल सिर्फ़ राजनैतिक और आर्थिक दृष्टि से ही सम्पन्न नहीं था, कलात्मक दृष्टि से भी वह अत्यन्त सम्पन्न था। तभी तो इतिहासकारों ने उसे प्राचीन भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा है। पूर्व मध्ययुग में निर्मित विशालकाय मन्दिर, क़िले तथा मूर्तियाँ तथा उत्तर मध्ययुग के इस्लामिक तथा भारतीय कला के संगम से युक्त अनेक भवन, चित्र तथा अन्य कलात्मक वस्तुएँ भारतीय कला की अमूल्य धरोहर हैं। आधुनिक युग में भारतीय कला पर पाश्चात्य कला का प्रभाव पड़ा। उसकी विषय वस्तु, प्रस्तुतीकरण के तरीक़े तथा भावाभिव्यक्ति में विविधता एवं जटिलता आई। आधुनिक कला अपने कलात्मक पक्ष के साथ-साथ उपयोगिता पक्ष को भी साथ लेकर चल रही है। यद्यपि भारत के दीर्घकालिक इतिहास में कई ऐसे काल भी आये, जबकि कला का ह्रास होने लगा, अथवा वह अपने मार्ग से भटकती प्रतीत हुई, परन्तु सामान्य तौर पर यह देखा गया कि भारतीय जनमानस कला को अपने जीवन का एक अंश मानकर चला है। वह कला का विकास और निर्माण नहीं करता, बल्कि कला को जीता है। उसकी जीवन शैली और जीवन का हर कार्य कला से परिपूर्ण है। यदि एक सामान्य भारतीय की जीवनचर्या का अध्ययन किया जाय तो, स्पष्ट होता है कि उसके जीवन का हर एक पहलू कला से परिपूर्ण है। जीवन के दैनिक क्रिया-कलापों के बीच उसके पूजा-पाठ, उत्सव, पर्व-त्यौहार, शादी-विवाह या अन्य घटनाओं से विविध कलाओं का घनिष्ट सम्बन्ध है। इसीलिए भारत की चर्चा तब तक अपूर्ण मानी जाएगी, जब तक की उसके कला पक्ष को शामिल न किया जाय। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनका ज्ञान प्रत्येक सुसंस्कृत नागरिक के लिए अनिवार्य समझा जाता था। इसीलिए भर्तृहरि ने तो यहाँ तक कह डाला 'साहित्य, संगीत, कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।' अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति पशु के समान है।

'कला' शब्द की उत्पत्ति कल् धातु में अच् तथा टापू प्रत्यय लगाने से हुई है (कल्+अच्+टापू), जिसके कई अर्थ हैं—शोभा, अलंकरण, किसी वस्तु का छोटा अंश या चन्द्रमा का सोलहवां अंश आदि। वर्तमान में कला को अंग्रेज़ी के 'आर्ट' (Art) शब्द का उपयोग समझा जाता है, जिसे पाँच विधाओं—संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला और काव्यकला में वर्गीकृत किया जाता है। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से ललित कलाएँ (Fine Arts) कहा जाता है। वास्वत में कला मानवा मस्तिष्क एवं आत्मा की उच्चतम एवं प्रखरतम कल्पना व भावों की अभिव्यक्ति ही है, इसीलिए कलायुक्त कोई भी वस्तु बरबस ही संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। साथ ही वह उन्हें प्रसन्नचित्त एवं आहलादित भी कर देती है। वास्तव में यह कलाएँ व्यक्ति की आत्मा को झंझोड़ने की क्षमता रखती हैं। यह उक्ति की भारतीय संगीत में वह जादू था कि दीपक राग के गायन से दीपक प्रज्जवलित हो जाता था तथा पशु-पक्षी अपनी सुध-बुध खो बैठते थे, कितना सत्य है, यह कहना तो कठिन है, लेकिन इतना तो सत्य है कि भारतीय संगीत या कला का हर पक्ष इतना सशक्त है कि संवेदनविहीन व्यक्ति में भी वह संवेदना के तीव्र उद्वेग को उत्पन्न कर सकता है।

भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र और इकाइयां

भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र और इकाइयां
क्रम स्थान केन्द्र और इकाइयां
1 बंगलौर इसरो मुख्यालय, अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इस्ट्रैक मुख्यालय, उपग्रह नियंत्रण केन्द्र, एन.एन.आर.एम.एस सचिवालय, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र
2 हासन इन्सैट प्रधान नियंत्रण सुविधा
3 अहमदाबाद भौतिक अनुसंधान उपयोग केंद्र, प्रयोगशाला विकास, शैक्षिक एवं संचार इकाई
4 श्रीहरिकोटा शार केंद्र
5 महेंद्रगिरि द्रव नोदन जांच सुविधाएं
6 नागपुर केन्द्रीय प्र.रा.सं. से केंद्र
7 मुम्बई इसरो सम्पर्क कार्यालय
8 तिरुअनन्तपुरम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, सी.एल.एल.वी. सुविधाएं, इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई
9 हैदराबाद राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
10 नई दिल्ली अंतरिक्ष विभाग शाखा, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली भू-केंद्र
11 देहरादून भारतीय सुदूर संवेदन, उत्तरी 5 सं.सं. से केंद्र
12 लखनऊ इस्ट्रैक भू-केंद्र
13 बालासोर मौसम विज्ञानी रॉकेट केंद्र
14 कवलूर उपग्रह अनुवर्तन तथा सर्वेक्षण केंद्र
15 अलवाय अमोनियम परक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
16 उदयपुर सौर वेधशाला
17 जोधपुर पश्चिमी प्र.सं.सं. से केंद्र
18 खड़गपुर पूर्वी प्र.सं.सं. से केंद्र

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भारत के सुदूर संवेदी उपग्रह

भारत के सुदूर संवेदी उपग्रह
क्रम उपग्रह प्रक्षेपण तिथि प्रक्षेपक यान परिणाम स्थिति
1 आईआरएस-1ए 17 मार्च, 1988 वोस्तोक, सोवियत संघ सफल अभियान पूर्ण
2 आईआरएस-1बी 29 अगस्त, 1991 वोस्तोक, सोवियत संघ सफल अभियान पूर्ण
3 आईआरएस-पी1/1ई 20 सितम्बर, 1993 पीएसएलवी-डी1 असफल प्रक्षेपक यान में ख़्राबी के कारण उपग्रह दुर्घटनाग्रस्त
4 आईआरएस-पी2 15 अक्टूबर, 1994 पीएसएलवी-डी2 सफल अभियान पूर्ण
5 आईआरएस-1सी 28 दिसम्बर, 1995 मोलनिया, रूस सफल अभियान पूर्ण
6 आईआरएस-पी3 21 मार्च, 1996 पीएसएलवी-डी3 सफल अभियान पूर्ण
7 आईआरएस-1डी 29 सितम्बर, 1997 पीएसएलवी-सी1 सफल सेवा में कार्यशील
8 आईआरएस-पी4 (ओशन सैट) 27 मई, 1999 पीएसएलवी-सी2 सफल कार्यशील
9 टीईएस (प्रौद्यौगिकी परीक्षण उपग्रह) 22 अक्टूबर 2001 पीएसएलवी-सी3 सफल कार्यशील
10 आईआरएस-पी6 (सिसोर्ससैट-1) 17 अक्टूबर, 2003 पीएसएलवी-सी5 सफल कार्यशील
11 आईआरएस-पी5 (कार्टोसैट-1) 5 मई, 2005 पीएसएलवी-सी6 सफल कार्यशील
12 आईआरएस-पी7 (कार्टोसैट-2) 10 जनवरी, 2007 पीएसएलवी-सी7 सफल कार्यशील
13 कार्टोसैट-2ए 28 अप्रॅल, 2008 पीएसएलवी-सी9 सफल कार्यशील
14 आईएमएस-7 (IMS-1) 28 अप्रॅल, 2008 पीएसएलवी-सी9 सफल कार्यशील
15 ओशनसैट-2 23 सितम्बर, 2009 पीएसएलवी-सी14 सफल कार्यशील

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भारतीय प्रक्षेपण यानों द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण

भारतीय प्रक्षेपण यानों द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण
क्रम प्रक्षेपक यान उपग्रह प्रक्षेपण तिथि परिणाम
1 एसएलवी-3 रोहिणी 10अगस्त, 1979 आंशिक सफल
2 एसएलवी-3 रोहिणी 18जुलाई, 1980 सफल
3 एसएलवी-3 रोहिणी 31मई, 1981 असफल
4 एसएलवी-3 रोहिणी 17अप्रॅल, 1983 सफल
5 एएसएलवी-डी1 स्त्रोस-1 24मार्च, 1987 असफल
6 एएसएलवी-डी2 स्त्रोस-2 13जुलाई, 1988 असफल
7 एएसएलवी-डी3 स्त्रोस-3 20मई, 1992 सफल
8 पीएसएलवी-डी1 आईआरएस-1ई. 20सितम्बर, 1993 असफल
9 एएसएलवी-डी4 स्त्रोस-4 04अप्रॅल, 1994 सफल
10 पीएसएलवी-डी2 आईआरएस-पी2 15अक्टूबर, 1994 सफल
11 पीएसएलवी-डी3 आईआरएस-पी3 21मार्च, 1996 सफल
12 पीएसएलवी-सी1 आईआरएसडी-1डी 29सितम्बर, 1997 सफल
13 पीएसएलवी-सी2 आईआरएस-पी4, किटसैट(द.कोरिया) व टपसैट(जर्मनी) 26मई, 1999 सफल
14 जीएसएलवी-डी1 जी सैट 18मई, 2001 सफल
15 पीएसएलवी-सी3 टीईएस(भारत), प्रोबा(बेल्जियम) व बर्ड(जर्मनी) 20अक्टूबर, 2001 सफल
16 पीएसएलवी-सी4 मैटसैट (कल्पना-1) 12सितम्बर2002 सफल
17 पीएसएलवी-डी2 जी सैट-2 08मई, 2003 सफल
18 पीएसएलवी-सी5 आईआरएस-पी6 17अक्टूबर, 2003 सफल
19 जीएसएलवीएफ-1 एडूसैट 20सितम्बर, 2004 सफल
20 पीएसएलवी-सी6 कार्टोसैट व हैमसैट 05मई, 2005 सफल
21 जीएसएलवी-4सी इन्सैट-4सी 10जुलाई, 2006 असफल
22 पीएसएलवी-एफ2 एसआरई-1(भारत), कार्टोसैट-2(भारत), लापान ट्यूबसैट(इन्डोनेशिया), पेहुएन सैट-1(अर्जेंटीना) 10जनवरी, 2007 सफल
23 पीएसएलवी-सी8 एजाइल(इटली) 23अप्रॅल, 2007 सफल
24 पीएसएलवी-सी10 टेकसार(इस्त्रायल) 21जनवरी, 2008 सफल
25 पीएसएलवी-सी9 कार्टोसैट-2ए, IMS-1 व8 अन्य विदेशी नैनों उपग्रह 28अप्रॅल, 2008 सफल
26 पीएसएलवी-सी11 चन्द्रयान-1 22अक्टूबर, 2008 सफल
27 पीएसएलवी-सी12 रीसैट-2 व अनुसैट 20अप्रॅल, 2009 सफल
28 पीएसएलवी-सी14 ओशसैट-2 23सितम्बर, 2009 सफल

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भारत के प्रक्षेपास्त्र

भारत के प्रक्षेपास्त्र
क्रम प्रक्षेपास्त्र प्रकार मारक क्षमता आयुध वजन क्षमता प्रथम परीक्षण लागत विकास स्थिति
1 अग्नि-1 सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) 1200 से 1500 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. 22 मई, 1989 8 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
2 अग्नि-2 सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) 1500 से 2000 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. (परम्परागत एवं परमाण्विक) 11अप्रॅल, 1999 8 करोड़ रुपये विकसित एवं प्रदर्शित
3 अग्नि-3 इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र 3000 कि.मी. 1500 कि.ग्रा. 9 जुलाई, 2006 (असफल), 12 अप्रॅल, 2007 (प्रथम सफल परीक्षण) निर्माणाधीन
4 पृथ्वी सतह से सतह पर मारक अल्प दूरी के टैक्टिकल बैटल फील्ड प्रक्षेपास्त्र 150 से 250 कि.मी. 500 कि.ग्रा. 25 फ़रवरी, 1989 3 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
5 त्रिशूल सतह से वायु में मारक लो लेवेल क्लीन रिएक्शन अल्प दूरी के प्रक्षेपास्त्र 500 मी. से 9 कि.मी. 15 कि.ग्रा. 5 जून, 1989 45 लाख रुपये विकसित एवं तैनात
6 नाग सतह से सतह पर मारक टैंक भेदी प्रक्षेपास्त्र 4 कि.मी. 10 कि.ग्रा. 29 नवम्बर, 1991 25 लाख रुपये विकसित एवं तैनात
7 आकाश सतह से वायु में मारक बहुलक्षक प्रक्षेपास्त्र 25 से 30 कि.मी. 55 कि.ग्रा. 15 अगस्त, 1990 1 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
8 अस्त्र वायु से वायु में मारक प्रक्षेपास्त्र 25 से 40 कि.मी. 300 कि.ग्रा. 9 मई, 2003 निर्माणाधीन
9 ब्रह्मोस पोतभेदी सुपर सोनिक क्रूज़ प्रक्षेपास्त्र 290 कि.मी. 300 कि.ग्रा. 12 जून, 2001 विकसित एवं तैनात
10 शौर्य सतह से सतह पर मारक बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र 750 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. 12 नवम्बर, 2008 विकसित एवं तैनात

भारत का मिसाइल भंडार

भारत का मिसाइल भंडार
क्रम नाम स्थिति रेंज
(कि.मी.)
पैलोड
(कि.ग्रा.)
मूल विशेष
1 पृथ्वी 150 सक्रिय 150 1000 भारत-रूस रभारत पृष्ठ रक्षायन एसए-2 से
2 पृथ्वी 250 सक्रिय 250 500-750 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
3 धनुष विकास/परीक्षण 250 1000 भारत पृथ्वी से
4 सागरिका विकास/परीक्षण 250-350 500 भारत पृथ्वी से
5 पृथ्वी 350 विकास 600-750 500-1000 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
6 अग्नि-1 सक्रिय 700-800 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-09.01.2003
7 अग्नि-2 सक्रिय 1500-2000 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-29.08.2004
8 अग्नि-3 विकास 3000 1500 भारत परीक्षण सफल-12.04.2007
9 शौर्य विकास/परीक्षण 600 भारत प्रथम परीक्षण- 12.11.2008

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धर्म

भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका दूषण नहीं वरन् भूषण है। यहां हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, बौद्ध, जैन, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे वैदिक धर्म, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, आर्यसमाज, समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहां के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक ने होकर साधक प्रतीत होती है।

आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का प्राणतत्त्व है। इनमें ऐहिक अथवा भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। चतुराश्रम-व्यवस्था (अर्थात् ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा संन्यास आश्रम) तथा पुरुषार्थ-चतुष्टम (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का विधान मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। इसमें जीवन का मुख्य ध्येय धर्म अर्थात् मूल्यों का अनुरक्षण करते हुए मोक्ष माना गया है। भारतीय आध्यात्मिकता में धर्मान्धता को महत्त्व नहीं दिया गया। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है यही कारण है कि यहां समय-समय पर विभिन्न धर्मों को उदय तथा साम्प्रदायिक विलय होता रहा है। धार्मिक सहिष्णुता इसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वस्तुत: हमारी संस्कृति में ग्रहण-शीलता की प्रवृत्ति रही है। इसमें प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर अपने में समाहित कर लेने की अद्भुत शक्ति है। ऐतिहासिक काल से लेकर मध्य काल तक भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों का भारत पर आक्रमण एवं शासन स्थापित हुआ। परन्तु भारतीय संस्कृति की ग्रहणशील प्रकृति के कारण समयान्तर में वे सब इसमें समाहित हो गये।

भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विरासत इसमें अन्तर्निहित सहिष्णुता की भावना मानी जा सकती है। यद्यपि प्राचीन भारत में अनेक धर्म एवं संप्रदाय थे, परन्तु उनमें धर्मान्धता तथा संकुचित मनोवृत्ति का अभाव था। अतीत इस बात का साक्षी है कि हमारे देश में धर्म के नाम पर अत्याचार और रक्तपात नहीं हुआ है। भारतीय मनीत्री ने ईश्वर को एक, सर्वव्यापी, सर्वकल्याणकारी, सर्वशक्तिमान मानते हुए विभिन्न धर्मो, मतों और संप्रदायों को उस परम ईश तक पहुँचने का भिन्न-भिन्न मार्ग प्रतिपादित किया है। (एक सद्विप्रा: बहुधा बदन्ति)। गीता में श्रीकृष्ण भी अर्जुन को यही उपदेश देते हैं कि संसार में सभी लोग अनेक प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। जैनियों का स्याद्वाद, अशोक के शिलालेख आदि भी यही बात दुहराते हैं। इसी भावना को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय एकता जागृत करने के लिए देश के कोने-कोने में गुंजारित किया था- ‘‘ईश्वर अल्ला तेरे नाम। सबको सम्मति दे भगवान।’’ भारतीय विचारकों की सर्वांगीणता तथा सार्वभौमिकता की भावना को सतत् बल प्रदान किया है। इसमें अपनी सुख, शान्ति एवं उन्नति के साथ ही समस्त विश्व के कल्याण की कामना की गई है। हमारे प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर ‘विश्व वन्धुत्व’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्भकम्’ की भावना को उजागर किया है-

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वेसन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखभाग भवेत॥

भारतीय सेना

भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्यक यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें।

वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेजी के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेजी ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फरवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज अफसर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात् भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।

भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत की राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी आन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।

रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं-स्थल सेना, नौ सेन7 और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है।

रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात् थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है।

इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात् क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष औ वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।

आज भारत की थल सेना विश्व की सबसे बड़ी स्थल सेनाओं में चौथे स्थान पर, वायु सेना पांचवें स्थान पर और नौ सेना सातवें स्थान पर मानी जाती है। सेना के प्रमुख सहायक संगठन हैं- (1)प्रादेशिक सेना (2) तट रक्षक, (3) सहायक वायु सेना और (4) एन. सी. सी. जिसमें स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना तीनों पार्श्व होते हैं।

भारतीय थल सेना

सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है।

थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं।

थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: शिमला) (2) पूर्वी कमान (कोलकाता) (3) उत्तरी कमान (उधमपुर) (4) दक्षिणी कमान (पुणे) (5) मध्य कमान (लखनऊ) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान (जयपुर)। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन 15 अप्रैल, 2005 को किया गया । इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है।

दर्शन

दर्शन प्रवर्तक/रचियता
प्रमुख दर्शन एवं प्रवर्तक (षड्दर्शन के अतिरिक्त)
बौद्ध दर्शन गौतम बुद्ध
जैन दर्शन महावीर
आजीवक मक्खलिगोशाल
अक्रियावाद पूरण काश्यप
नित्य पदार्थवाद पकुथ काच्यायन
अद्वैतवाद शंकराचार्य
विशिष्टाद्वैत रामानुजाचार्य
द्वैताद्वैत निम्बार्काचार्य
शुद्धाद्वैत बल्लभाचार्य
पाशुपत लकुलीश
प्रमुख दर्शन एवं रचियता
चार्वाक (भौतिकवादी) चार्वाक
सांख्य कपिल
योग पंतजलि (योगसूत्र)
न्याय गौतम (न्यायसूत्र)
पूर्व मीमांसा जैमिनि
उत्तर मीमांसा (वेदांत) बादरायण (ब्रह्मसूत्र)
वैशेषिक कणाद व उलूक

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भारतीय संगीत

संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।

भारतीय संगीत की उत्पत्ति

भारतीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। वादों का मूल मंत्र है - 'ऊँ' (ओऽम्) । (ओऽम्) शब्द में तीन अक्षर अ, उ तथा म् सम्मिलित हैं, जो क्रमशः ब्रह्मा अर्थात् सृष्टिकर्ता, विष्णु अर्थात् जगत् पालक और महेश अर्थात् संहारक की शक्तियों के द्योतक हैं। इन तीनों अक्षरों को ॠग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद से लिया गया है। संगीत के सात स्वर षड़ज (सा), ॠषभ (र), गांधार (गा) आदि वास्तव में ऊँ (ओऽम्) या ओंकार के ही अन्तविर्भाग हैं। साथ ही स्वर तथा शब्द की उत्पत्ति भी ऊँ के गर्भ से ही हुई है। मुख से उच्चारित शब्द ही संगीत में नाद का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार 'ऊँ' को ही संगीत का जगत माना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जो साधक 'ऊँ' की साधना करने में समर्थ होता है, वही संगीत को यथार्थ रूप में ग्रहण कर सकता है। यदि दार्शनिक दृष्टि से इसका गूढ़ार्थ निकाला जाय, तो इसका तात्पर्थ यही है कि ऊँ अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि का एक अंश हमारी आत्मा में निहित है और संगीत उसी आत्मा की आवाज़ है, अंतः संगीत की उत्पत्ति हृदयगत भावों में ही मानी जाती है।

भारतीय संगीत के रूप

प्राचीन काल में भारतीय संगीत के दो रूप प्रचलित हुए-1. मार्गी तथा 2. देशी। कालातर में मार्गी संगीत लुप्त होता गया। साथ ही देशी संगीत्य दो रूपों में विकसित हुआ- (i) शास्त्रीय संगीत तथा (ii) लोक संगीत। शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारीत तथा विद्वानों व कलाकरों के अध्ययन व साधना का प्रतिफल था। यह अत्यंत नियमबद्ध तथा श्रेष्ठ संगीत था। दूसरी ओर लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा, अतः यह अधिक विविधतापूर्ण तथा हल्का-फुल्का व चित्ताकर्षक है।

भारतीय संगीत के विविध अंग

संगीत से सम्बंधित कुछ मूलभूत तथ्यों को जानकर ही संगीत की बारीकियों को समझा जा सकता है। ध्वनि, स्वर, लय, ताल आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।

राष्ट्रीय वाद्य यंत्र

वाद्य वादक
प्रमुख वाद्य यंत्र एवं कलाकार
सितार पंडित रविशंकर, निखिल बैनर्जी, विलायत ख़ाँ, बंदे हसन, शाहिद परवेज, उमाशंकर मिश्र, बुद्धादित्य मुखर्जी आदि।
तबला अल्ला रक्खा खाँ, गुदई महाराज, (पं. सामता प्रसाद) ज़ाकिर हुसैन, लतीफ़ ख़ाँ, किशन महाराज, फ़य्यार ख़ाँ, सुखविंदर सिंह आदि।
बांसुरी पन्नालाल घोष, हरि प्रसाद चौरसिया, वी. कुंजमणि, एन. नीला, राजेन्द्र प्रसन्ना, राजेन्द्र कुलकर्णी आदि।
सरोद अमजद अली ख़ाँ‎, अली अकबर ख़ान, अलाउद्दीन ख़ाँ, विश्वजीत राय चौधरी, ज़रीन दारूवाला, बुद्धदेव दास गुप्ता, मुकेश शर्मा आदि।
वायलिन डॉ. एन. राजन, विष्णु गोविंद जोग, एल. सुब्रह्मण्यम्, संगीता राजन, कुनक्कड़ी वैद्यनाथन, टी. एन. कृष्णन् आदि।
वीणा एस. बालचंद्रन, कल्याण कृष्ण भागवतार, बदरूद्दीन डागर, वी. दोरेस्वामी अयंगर आदि।
शहनाई बिस्मिल्ला ख़ाँ, दयाशंकर जगन्नाथ, अली अहमद हुसैन ख़ाँ आदि।
संतूर शिवकुमार शर्मा, भजन सोपारी आदि।
पखावज गोपाल दास, उस्ताद रहमान ख़ाँ, छत्रपति सिंह, ठाकुर लक्ष्मण सिंह आदि।
रुद्रवीणा असद अली ख़ाँ, उस्ताद सादिक अली ख़ाँ आदि।
मृदंग पालधार रघु, ठाकुर भीकम सिंह, डॉ. जगदीश सिंह आदि।

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जीव जन्तु

संकटग्रस्त जीव-जन्तु
क्रम सामान्य नाम वैज्ञानिक नाम देश का क्षेत्र जहाँ वे पाए जाते हैं
स्तनपायी
1 सिंहपुच्छी बंदर मकाका साइलेनस पश्चिमी घाटी में सदाबहार वन
2 सुनहरा लंगूर प्रेसबाइटिस गोई असम, भूटान के साथ हिमालय की तराई
3 दृढ़लोभी खरगोश केप्रोलेगस हिसपिडस हिमालय की तराई, असम
4 भारतीय डालफिन प्लेटेनिस्टा इंडी गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ
5 मालाबार बड़ा धारीदार मुश्क बिलाव विवेरा मेंगास्पिला केरल का तटवर्ती क्षेत्र
6 एशियाई शेर पैंथरा लियो गिर राष्ट्रीय उद्यान
7 तेंदुआ पैंथरा पार्डस सम्पूर्ण भारत में
8 बाघ पैंथरा टाइग्रिस सम्पूर्ण भारत में
9 हिम तेंदुआ पैंथरा अंसिया लद्दाख से सिक्किम तक उच्च हिमालय में
10 भारतीय हाथी एलिफास मेक्सिमस उत्तर प्रदेश से मेघालय तक हिमालय की तराई/बिहार,
झारखण्ड, उड़ीसा और दक्षिण के चार राज्य
11 भारतीय जंगली गधा इक्कस हैमियोनस कच्छ का रण
12 पिगमी सुअर सस सल्वानियस मानस बाघ रिज़र्व तथा उसके आसपास का क्षेत्र
13 दलदली हिरण सरक्स डयूबासेली उत्तर प्रदेश से असम तथा उत्तरी और पूर्वी भारत के तराई
और दोआब क्षेत्र और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से मध्य प्रदेश में बस्तर तक
14 हंगुल सरक्स एलेफ्स कश्मीर घाटी का उत्तरी भाग
15 मणिपुरी ब्रो एंटलर्ड हिरण सरक्स एल्डी काइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान, मणिपुर
16 जंगली एशियाई जल भैंसा बुवालस बुबालिस असम, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र पश्चिमी उड़ीसा के तराई क्षेत्र
पक्षी
1 सफ़ेद पंखों वाला जंगली बत्तख कैरिना स्कुटूलाटा असम के पूर्वी ज़िले और अरुणाचल प्रदेश का कुछ भाग
2 चीर फीजेन्ट केट्रेयस बलिची कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल और कुमाऊं
3 वेस्टन ट्रेगोपान ट्रेगोपान मेलानोसेफलेस कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल और कुमाऊं
4 भारतीय सोहन चिड़िया अर्डे-ओटिस नाईग्रिसेप्स राजस्थान के मरु क्षेत्र
5 जोर्डन कर्सर कर्सेरियस विटोक्वेटस आंध्र प्रदेश
सरीसृप
1 एस्च्यूरियन घड़ियाल क्रोकोडायलस पोरोरासस भारत का पूर्वी समुद्र तट और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह
2 घड़ियाल गेबिथोलिस गंजेटिक्स गंगा, महानदी, ब्रह्मपुत्र दक्षिण-पश्चिम बंगाल
3 रिवर टेरापिन बटागुर बास्का

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प्रमुख नहरें

देश की प्रमुख नहरें
राज्य नहर नदी
पंजाब सरहिन्द नहर
सतलज नदी
ऊपरी बारी दोआब नहर
रावी नदी
नांगल बाँध नहर
सतलज नदी
बिस्त दोआब नहर
सतलज नदी
भाखड़ा नहर
सतलज नदी
पूर्वी नहर रावी नदी
हरियाणा पश्चिमी यमुना नहर
यमुना नदी
गुड़गाँव नहर
यमुना नदी
उत्तर प्रदेश पूर्वी यमुना नहर
यमुना नदी
आगरा नहर यमुना नदी
ऊपरी गंगा नहर
गंगा नदी [1]
निचली गंगा नहर
गंगा नदी [2]
शारदा नहर
शारदा नदी
बेतवा नहर बेतवा नदी [3]
बिहार पूर्वी सोन नहर
सोन नदी
पश्चिमी सोन नहर
सोन नदी
त्रिवेणी नहर
गण्डक नदी
गण्डक बाँध योजना तिरहुत नहर, सारन नहर
पश्चिम बंगाल मिदनापुर नहर
कोसी नदी
एडन नहर
दामोदर नदी
तिलपाड़ा बाँध की नहरें
मयूराक्षी नदी (वीरभूम ज़िला)
दामोदर नदी की नहरें दामोदर नदी (दुर्गाप्रुर)
राजस्थान बीकानेर नहर
सतलज नदी [4]
कालीसिल परियोजना
कालीसिल नदी
गम्भीरी परियोजना
गम्भीरी नदी (चित्तौड़गढ़), सूकरी नदी
पार्वती परियोजना
पार्वती नदी
गूढ़ा परियोजना
मेजा नदी
मोरेल परियोजना
मोरेल नदी
जग्गर परियोजना
जग्गर नदी
इन्दिरा नहर
सतलज, व्यास नदी [5]
महाराष्ट्र गोदावरी नहर
गोदावरी नदी [6]
मूठा नहर
फाइफ झील [7]
भण्डारदरा बाँध की नहरें
प्रवरा नदी [8]
मूला परियोजना
मूला नदी
वीर परियोजना नीरा नदी
तमिलनाडु कावेरी डेल्टा नहर
कोलेरून नदी [9]
पेरियार परियोजना
पेरियार नदी
मैटूर परियोजना
कावेरी नदी
निचली भवानी नहर
भवानी नदी [10]
केरल मालमपुजा बाँध की नहरें
मालमपुजा नदी [11]
वलायर यलाशल की नहरें
वलायर नदी [12]
मंगलम योजना की नहरें
मालाबार ज़िला
आन्ध्र प्रदेश गोदावरी डेल्टा की नहरें
गोमती, गोदावरी तथा विशिष्ट गोदावरी [13]
कृष्णा डेल्टा की नहरें
कृष्णा नदी
कृष्णा सिंचाई योजना की नहरें
कृष्णा नदी [14]
रामपद सागर परियोजना
गोदावरी नदी [15]
तुंगभद्रा परियोजना
तुंगभद्रा नदी [16]
कृष्णा-पेन्नार परियोजना
कृष्णा, पेन्नार नदी

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भारतीय धरोहर

विश्व विरासत सूची (यूनेस्को) में शामिल भारतीय धरोहर
क्रम धरोहर घोषणा वर्ष
1 आगरा का लालक़िला 1983
2 अजन्ता की गुफाएं 1983
3 एलोरा गुफाएं 1983
4 ताजमहल 1983
5 महाबलीपुरम के स्मारक 1984
6 कोणार्क का सूर्य मंदिर 1984
7 काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान 1985
8 केवलादेव नेशनल पार्क 1985
9 मानस सेंक्चुरी 1985
10 गोवा के चर्च 1986
11 फ़तेहपुर सीकरी 1986
12 हम्पी अवशेष 1986
13 खजुराहो मंदिर 1986
14 एलिफेंटा की गुफाएँ 1987
15 चोल मंदिर 1987-2004
16 पट्टाडकल के स्मारक 1987
17 सुन्दरवन नेशनल पार्क 1987
18 नंदा देवी और फूलों की घाटी 1988-2005
19 सांची का स्तूप 1989
20 हुमायूं का मक़बरा 1993
21 क़ुतुब मीनार 1993
22 माउन्टेन रेलवे 1999-2005
23 बोधगया का महाबोधी मंदिर 2002
24 भीमबेटका की गुफाएं 2003
25 चम्पानेर-पावरगढ़ पार्क 2004
26 छत्रपति शिवाजी टर्मिनस 2004
27 दिल्ली का लाल क़िला 2007
28 ऋग्वेद की पाण्डुलिपियां 2007

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वनों की स्थिति

भारत में वनों की स्थिति 2003
राज्य[17] भौगोलिक क्षेत्र[18] वन क्षेत्र[19] वास्तविक[20] अनुपात[21]
आन्ध्र प्रदेश 2,75,069 63,821 44,419 16.15
अरुणाचल प्रदेश 83,743 51,540 68,019 81.22
असम 78,438 27,018 27,826 35.47
बिहार 94,163 6,473 5,558 5.91
झारखण्ड 79,714 23,605 22,716 28.49
गोवा 3,702 1,224 2,156 58.23
गुजरात 1,96,022 19,113 14,946 7.63
हरियाणा 44,212 1,558 1,517 3.43
हिमाचल प्रदेश 55,673 37,033 14,353 25.78
जम्मू-कश्मीर 2,22,235 20,230 21,267 9.57
कर्नाटक 1,91,791 43,084 36,449 19.01
केरल 38,863 11,268 15,577 40.08
मध्य प्रदेश 3,08,245 95,221 76,429 24.79
छत्तीसगढ़ 1,35,191 59,772 55,998 41.42
महाराष्ट्र 3,07,713 61,939 46,865 15.23
मणिपुर 22,327 17,418 17,219 77.12
मेघालय 22,429 9,496 16,839 75.07
मिज़ोरम 21,081 16,717 18,430 87.43
नागालैण्ड 16,579 8,629 13,609 82.08
उड़ीसा 1,55,707 58,136 48,366 31.06
पंजाब 50,362 3,084 1,580 3.14
राजस्थान 3,42,239 32,488 15,826 4.63
सिक्किम 7,096 5,841 3,262 45.97
तमिलनाडु 1,30,058 22,877 22,643 17.41
त्रिपुरा 10,486 6,293 8,093 77.18
उत्तर प्रदेश 2,40,928 16,826 14,118 5.85
उत्तराखण्ड 53,483 34,662 24,465 45.74
पश्चिम बंगाल 88,752 11,879 12,343 13.91
अण्डमान एवं निकोबार 8,249 7,171 6,964 84.42
चण्‍डीगढ़ 114 34 15 13.15
दादरा तथा नगर हवेली 491 204 225 45.83
दमन और दीव 112 1 8 7.14
दिल्ली 1,483 85 170 11.46
लक्षद्वीप 32 23 71.87
पुदुचेरी 480 40 8.33

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वेश भूषा

भारत के सभी प्रान्तों की अलग-अलग वेशभूषा है। यह वेशभूषा स्थानीय मौसम तथा आवश्यकतानुसार विकसित हुई है। उदाहरण के लिए, पूरे उत्तर प्रदेश में किसान धोती-कुर्ता पहनते हैं और सिर पर पगड़ी धारण करते हैं। नगर के शिक्षित युवक पेंट-कमीज़ पहनते हैं। महिलाएँ साड़ी या सूट पहनती है। दक्षिण भारत में पुरुषों की धोती का अंदाज बदल जाता है।

भाषा

भारतीय संस्कृति की एकता उसकी भाषा में भी व्यक्त होती है। यहाँ के हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाईयों, सिक्खों, बौद्धों, जैनों की भाषाएँ समान है। एक प्रान्त के सभी निवासी एक-सी भाषा का व्यवहार करते है। पंजाब का मुसलमान यदि पंजाबी बोलता है तो तमिल का मुसलमान तमिल बोलता है। इससे पता चलता है कि चाहे यहाँ के लोगों के धर्म भिन्न हों, परन्तु उनकी संस्कृति समान है। भारत में 18 मान्य राष्ट्रीय भाषाएँ हैं और अनेक बोलियाँ हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है।

नृत्य-संगीत

भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम , ओडिसी , कुचिपुड़ी , कथकली ,मणिपुरी , कत्थक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा , गिददा , नगा , बिहू आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का गरबा हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक से देखा जाता है ! भारत के संगीत को विकसित करने में अमीर खुसरो, तानसेन, बैजू बावरा जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर बिस्मिल्लाह ख़ाँ, जाकिर हुसैन , रविशंकर समान रूप से सम्मानित हैं।

खेल

आधुनिक युग में अनेक प्रकार के खेलकूद हैं, जैसे- हॉकी, फूटबाल, टेनिस, बैडमिन्टन, गोल्फ, बास्केटबॉल, कबड्डी, क्रिकेट आदि। सभी को कोई न कोई खेल पसंद होता है सभी अपनी रूचि के अनुसार विभिन्न खेल खेलते हैं या उन्हें देखकर अपना मनोरंजन करते हैं। सभी खेलों का अपना महत्त्व होता है तथा सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। विभिन्न देशो में अलग - अलग खेल लोकप्रिय हैं, जेसे - यूरोप में फूटबाल और टेनिस विख्यात है, तो अमेरिका में बास्केटबॉल, बेसबॉल और रगबी विख्यात है। भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है।

भारत का संविधान

भारतीय संविधान की मांग

1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी की भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें। इस धारणा को सर्वप्रथम अभिव्यक्ति 1895 में उस "स्वराज्य विधेयक" में मिली, जिसे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। बाद में 1922 में महात्मा गांधी द्वारा यह उदगार व्यक्त किया गया कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार होगा"। महात्मा गांधी के इस उदगार में यह आशय निहित नहीं था कि भारत के संविधान का निर्माण भारतीयों के द्वारा किया आये। उनका केवल यह मत था कि भारतीयों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश संसद भारतीय संविधान को पारित करे। महात्मा गांधी की इस मांग ने भारतीय नेताओं को भारतीय संविधान की मांग के लिए उत्प्रेरित किया। 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए। इसके बाद संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम0 एन0 राय द्वारा किया गया, जिसे 1934 में जवाहर लाल नेहरू ने मूर्त रूप प्रदान किया। नेहरू जी ने कहा कि यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है, तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा थे। सिन्हा के निधन के बाद डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फरवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

भारत का संविधान ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है, ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। भारत में संसद नहीं; बल्कि संविधान सर्वोच्च है। भारत में न्यायालयों को भारत की संसद द्वारा पास किए गए क़ानून की संवैधानिकता पर फ़ैसला करने का अधिकार प्राप्त है।

चित्र

चित्र:Lothal-Archeological-Site.jpg





  1. हरिद्वार के समीप
  2. नरौरा, बुलन्दशहर
  3. झांसी के समीप परिच्छा नामक स्थान से
  4. फ़िरिज़पुर के समीप हुसैनीवाला से
  5. सतलज एवं व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरी के बैराज़
  6. बेल झील के समीप
  7. खडकवासला नामक स्थान से
  8. पश्चिमी घाट पर्वत
  9. कावेरी नदी की शाखा
  10. कावेरी की सहायक नदी
  11. मालाबार ज़िला
  12. पेरियार की सहायक नदी
  13. डेल्टा क्षेत्र में गोदावरी की शाखाएँ
  14. कृष्णा एनीकट से 18 मील ऊपर
  15. पोलवरम नामक स्थान
  16. कृष्णा की सहायक नदी
  17. राज्य/संघ शासित क्षेत्र
  18. वर्ग किमी.
  19. कुल वन क्षेत्र
  20. वास्तविक वनाच्छादित क्षेत्र
  21. कुल भौगोलिक क्षेत्र का वास्तविक वनाच्छादित क्षेत्र