सायरा बानो
सायरा बानो
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पूरा नाम | सायरा बानो |
जन्म | 23 अगस्त, 1944 |
जन्म भूमि | भारत |
अभिभावक | माँ- नसीम बानो |
पति/पत्नी | दिलीप कुमार |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेत्री |
मुख्य फ़िल्में | जंगली, हेरा फेरी, पड़ोसन, गोपी, विक्टोरिया नं 203 |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सायरा बानो की माँ नसीम बानो भी अपने समय की मशहूर अभिनेत्री रही हैं। |
अद्यतन | 14:32, 3 नवम्बर 2012 (IST)
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सायरा बानो (अंग्रेज़ी: Saira Banu, जन्म: 23 अगस्त, 1944) हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। बॉलीवुड में ऐसे कई सितारे हैं जो बेशक बॉक्स-ऑफिस के लिहाज से औसत हों पर जब बात दर्शकों के बीच पैठ जमाने की हो तो वह सबसे आगे होते हैं, ऐसी ही एक अदाकारा हैं सायरा बानो। अपने समय की सबसे ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक सायरा बानो को लोग उनकी अदाकारी कम और उनकी ख़ूबसूरती के लिए ज्यादा पहचानते हैं।
जीवन परिचय
सायरा बानो का जन्म 23 अगस्त, 1944 को हुआ था। उनकी मां अभिनेत्री नसीम बानो भी अपने समय की मशहूर अभिनेत्री रही हैं। उनका अधिकतर बचपन लंदन में बीता जहां से पढ़ाई खत्म करके वह भारत लौटीं। स्कूल से ही उन्हें अभिनय से लगाव था और स्कूल में भी उन्हें अभिनय के लिए कई पदक मिले थे।
माँ-बेटी : नसीम-सायरा
सायरा बानो के बारे में विस्तार से जाने के पहले तीस के दशक की ग्लैमरस नायिका नसीम बानो को जानना ज़्यादा जरूरी है। उस दौर में फ़िल्मों में आने वाली लड़कियाँ प्रायः निचले तबकों से हुआ करती थी। ऊँचे-रईस खानदान की नसीम ने जब फ़िल्मों में आने की जिद की, तो परिवार का विरोध झेलना पड़ा। लेकिन सोहराब मोदी जैसे निर्माता-निर्देशक ने नसीम को फ़िल्म हेमलेट में ओफिलिया के रोल का ऑफर दिया, तो सबका गुस्सा काफूर हो गया। नसीम की किस्मत जागी फ़िल्म 'पुकार' से। जहाँगीर के न्याय पर आधारित इस फ़िल्म में नसीम ने नूरजहाँ का किरदार चन्द्रमोहन के साथ निभाया था। अपनी ही आवाज गाना भी गाया था- 'ज़िंदगी का साज भी क्या साज है, बज रहा है और बेआवाज है।' नसीम तीस के दशक की तमाम तारिकाओं में सबसे अधिक हसीन और शोख थी। इसीलिए उन्हें ब्यूटी-क्वीन के नाम से प्रचारित किया जाता था। जब सायरा बानो को फ़िल्मों में लांच किया गया, तो माँ का ताज उनके सिर पर रखा गया। नसीम बानो की उल्लेखनीय फ़िल्मों में चल-चल रे नौजवान, उजाला, बेगम और चाँदनी रात प्रमुख हैं।[1]
कैरियर की शुरुआत
17 साल की उम्र में ही सायरा बानो ने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत की। 1961 में वह शम्मी कपूर के साथ फ़िल्म ‘जंगली’ में पहली बार पर्दे पर नजर आईं। फ़िल्म बहुत हिट रही और इसने सायरा बानो को भी बॉलीवुड में अच्छी शुरुआत दिलाई। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। इसके बाद सायरा बानो ने कई हिट फ़िल्मों में काम किया। 60 और 70 के दशक में सायरा बानो एक सफल अभिनेत्री की तरह बॉलीवुड में जगह बना चुकी थीं। लेकिन साल 1968 की फ़िल्म ‘पड़ोसन’ ने उन्हें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। इस एक फ़िल्म ने उनके कैरियर के लिए टर्निग-प्वॉइंट का काम किया। इसके बाद उन्होंने ‘गोपी’, ‘सगीना’, ‘बैराग’ जैसी हिट फ़िल्मों में अपने पति दिलीप कुमार के साथ काम किया। ‘शागिर्द’, ‘दीवाना’, ‘चैताली’ (Chaitali) जैसी फ़िल्मों में सायरा बानो का अभिनय बहुत अच्छा रहा।[2]
प्रसिद्ध फ़िल्में
- जंगली (1961)
- शादी (1962)
- ब्लफ़ मास्टर (1963)
- दूर की आवाज (1964)
- आई मिलन की बेला (1964)
- एप्रिल फूल (1964)
- ये ज़िंदगी कितनी हसीन है (1966)
- प्यार मोहब्बत (1966)
- शागिर्द (1966)
- दीवाना (1967)
- अमन (1967)
- पड़ोसन (1968)
- झुक गया आसमान (1968)
- आदमी और इंसान (1969)
- पूरब और पश्चिम (1970)
- गोपी (1970)
- बलिदान (1971)
- विक्टोरिया नं. 203 (1972)
- दामन और आग (1973)
- आरोप (1973)
- ज्वार भाटा (1973)
- सगीना (1974)
- रेशम की डोरी (1974)
- पैसे की गुड़िया (1974)
- साजिश (1975)
- चैताली (1975)
- आखरी दाँव (1975)
- जमीर (1975)
- कोई जीता कोई हारा (1976)
- बैराग (1976)
- आरंभ (1976)
- हेरा फेरी (1976)
- मेरा वचन गीता की कसम (1977)
- काला आदमी (1978)
- देश द्रोही (1980)
- दुनिया (1984)
- फैसला (1988
सायरा और राजेन्द्र कुमार
सन् 1960 के दशक में सायरा की कई सुपरहिट फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने लगी थी। उन दिनों राजेन्द्र कुमार को जुबिली कुमार के नाम से पुकारा जाने लगा था। राजेन्द्र के अभिनय में दिलीप साहब की पूरी परछाई समाई हुई थी। सायरा का दिल राजेन्द्र पर फिदा हो गया, जबकि वे तीन बच्चों वाले शादीशुदा व्यक्ति थे। माँ नसीम को जब यह भनक लगी, तो उन्हें अपनी बेटी की नादानी पर बेहद गुस्सा आया। उन्हीं दिनों उन्होंने दिलीप कुमार के पाली हिल वाले बंगले के पास ज़मीन ख़रीदकर घर बनवा लिया था। सायरा का दिलीप के घर आना-जाना और बहनों से मेल-मिलाप जारी था। नसीम ने पड़ोसी दिलीप साहब की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वे समझा दें ताकि राजेन्द्र कुमार से पीछा छूटे। बेमन से दिलीप कुमार ने यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे और शादी का तो दूर-दूर तक इरादा नहीं था। जब दिलीप साहब ने सायरा को समझाया कि राजेन्द्र के साथ शादी का मतलब है पूरी ज़िंदगी सौतन बनकर रहना और तकलीफें सहना। तब पलटकर सायरा ने दिलीप साहब से सवाल किया कि क्या वे उससे शादी करेंगे? सवाल से अचकचाए दिलीप उस समय तो कोई जवाब नहीं दे पाए।[1]
विवाह
बॉलीवुड में जब भी प्रेम कहानियों और रोमांटिक जोड़ियों की बात आती है तो सायरा बानो और दिलीप कुमार का ज़िक्र ज़रूर होता है। दोनों की मुलाकात, प्यार और फिर शादी की कहानी बिल्कुल फ़िल्मी हैं। सायरा बानो ने 1966 में 22 साल की उम्र में दिलीप कुमार से शादी की थी और उस समय दिलीप कुमार खुद 44 साल के थे। दूल्हे दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और दाएँ-बाएँ राज कपूर तथा देव आनंद नाच रहे थे।[1] उम्र का यह फासला कभी भी इन दोनो के प्यार के मध्य नहीं आया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सायरा बानो : ब्यूटी क्वीन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 3 नवम्बर, 2012।
- ↑ हुस्न और अभिनय का मेल : सायरा बानो (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 3 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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