जसवंत सिंह

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जसवंत सिंह एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जसवंत सिंह (बहुविकल्पी)


जसवंत सिंह
जसवंत सिंह
जसवंत सिंह
पूरा नाम जसवंत सिंह
जन्म 3 जनवरी, 1938
जन्म भूमि गांव- जसोल, बाड़मेर, राजस्थान
अभिभावक पिता- ठाकुर सरदारा सिंह, माता- कुंवर बाई सा
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ और लेखक
पार्टी भारतीय जनता पार्टी
पद पूर्व केन्द्रीय मंत्री
शिक्षा बीए, बीएससी
विद्यालय मेयो कॉलेज, अजमेर
भाषा हिंदी
विशेष योगदान विदेशमंत्री के रूप में उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने का भरसक प्रयास किया था।
संबंधित लेख भाजपा, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी
अन्य जानकारी जसवंत सिंह ने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून और खड़गवासला से भी सैन्य प्रशिक्षण लिया। वे पंद्रह वर्ष की उम्र में भारतीय सेना में शामिल हो गए।

जसवंत सिंह (अंग्रेज़ी: Jaswant Singh, जन्म- 3 जनवरी, 1938, बाड़मेर, राजस्थान) एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता हैं। वे अपनी नम्रता और नैतिकता के लिए जाने जाते है। वे उन गिने-चुने नेताओं में से हैं, जिन्हें भारत के रक्षामंत्री, वित्तमंत्री और विदेशमंत्री बनने का अवसर मिला। जसवंत सिंह एक आदर्शवादी व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। जब उन्हें विदेश नीति का कार्यभार सौपा गया था, तब उन्होंने बड़ी कुशलता से भारत और पाकिस्तान के बीच के तनाव को कम किया था। उनकी लेखनी में उनकी परिपक्वता और आदर्शो के प्रति उनका आदर साफ़ झलकता है। जसवंत सिंह को लोगों से घुलना-मिलना पसंद है और वे अस्पताल, संग्रहालय और जल संरक्षण जैसी कई परियोजनाओं के ट्रस्टी भी रहे। 7 अगस्त, 2014 को अपने निवास स्थान पर गिरने के कारण जसवंत सिंह कोमा में चले गए, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य ख़राब ही चल रहा है।[1]

परिचय

पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह का जन्म 3 जनवरी 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में राजपूत परिवार में हुआ। पिता का नाम 'ठाकुर सरदारा सिंह' और माता 'कुंवर बाई सा' थीं। उन्होंने मेयो कॉलेज अजमेर से बी.ए., बी.एससी. करने के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून और खड़गवासला से भी सैन्य प्रशिक्षण लिया। उन्हें संगीत सुनना, शतरंज तथा गोल्फ खेलना भी बहुत पसंद है। वे पंद्रह वर्ष की उम्र में ही भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह के करीबी जसवंत सिंह 1960 के दशक में भारतीय सेना में अधिकारी थे। वे एक सफल राजनितिज्ञ रहे हैं और इसके साथ-साथ उन्होंने पारिवारिक जीवन में भी सामंजस्य बनाये रखा। उनके परिवार में पत्नी शीतल कुमारी और दो बेटे हैं।

राजनैतिक जीवन

जसवंत सिंह ने अपना राजनैतिक जीवन खुद बनाया। वे वाजपेयी सरकार (16 मई, 1996 से 1 जून, 1996) में वित्तमंत्री रहे। बाद में वे वाजपेयी सरकार में विदेशी मंत्री थे और एक बार फिर वित्त बने। तहलका खुलासे के बाद उन्हें एन.डी.ए सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया था। सन 1998 में भारत द्वारा परमाणु परिक्षण किये जाने के बाद भारत-अमेरिका के रिश्तो में जो दरार आई, उसे जसवंत सिंह ने अपने कौशल से भरने की कोशिश की। जसवंत सिंह के तत्कालीन अमेरिकन प्रतिरूप स्ट्रोब टैलबोट के मुताबिक वे एक बेहतरीन वार्ताकार और कूटनीतिज्ञ हैं। जसवंत सिंह भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक प्रभावशाली नेताओं में से रहे हैं। वे छह बार सांसद रह चुके हैं। संसद में वे आकलन समिति, पर्यावरण-वन समिति और ऊर्जा समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जसवंत सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। सन 1998 और 1999 में जसवंत सिंह को भारत का विदेशी मंत्री नियुक्त किया गया था। सन 2002 में पुनः उनकी नियुक्ति भारत के वित्तमंत्री के पद पर की गई। जसवंत सिंह ने कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों और सुरक्षा एवं विकास के मुद्दों पर कई किताबें लिखी हैं।

जब वे विदेश मंत्री थे, तब दो आतंकवादियों को कंधार, अफ़ग़ानिस्तान सुरक्षित पहुँचाने के उनके फैसले की विविध राजनैतिक पक्ष द्वारा कड़ी आलोचना भी हुई थी। दो आतंकवादियो को इंडियन एयरलाइन्स के हवाई जहाज को अपहरण कर बंधक बनाये हुए यात्रिओं के बदले भारत सरकार द्वारा छोड़ दिया गया था। सन 2009 में जसवंत सिंह ने पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग सीट से बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था। अगस्त, 2009 में पार्टी से निष्कासित होने के बाद 25 जून, 2010 को जसवंत सिंह बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और लालकृष्ण आडवाणी की उपस्थिति में फिर से बीजेपी में शामिल कर लिए गए।[1]

लेखन कार्य

2009 को भारत विभाजन पर उनकी किताब 'जिन्ना-इंडिया', 'पार्टिशन', 'इंडेपेंडेंस' पर खासा बवाल हुआ। नेहरू-पटेल की आलोचना और जिन्ना की प्रशंसा के लिए उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। कुछ दिनों बाद लालकृष्ण आडवाणी के प्रयासों से पार्टी में उनकी सम्मानजनक वापसी भी हो गई। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में वे पार्टी से बाड़मेर से टिकट भी प्राप्त नहीं कर पाए। उन्हें अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए एक बार फिर छह साल के लिए पार्टी से ‍निष्काषित कर दिया गया। चुनाव में उन्हें कर्नल सोनाराम के हाथों हार का सामना करना पड़ा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 जसवंत सिंह (हिंदी) hindi.culturalindia.net। अभिगमन तिथि: 06 सितम्बर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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पंद्रहवीं लोकसभा सांसद