रामस्वामी वेंकटरमण

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रामस्वामी वेंकटरमण

रामास्वामी वेंकटरमण अथवा आर. वेंकटरमण (जन्म- 4 दिसम्बर, 1910 मद्रास - मृत्यु- 27 जनवरी, 2009 नई दिल्ली) भारत के आठवें राष्ट्रपति थे। इसके पूर्व उपराष्ट्रपति पद भी इनके ही पास था। यह 77 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति बने। इससे पूर्व उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने वाले डॉक्टर राधाकृष्णन, डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन और वी.वी. गिरि ही थे। इनका क्रम चौथा रहा। यह बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। इनके चेहरे पर सदैव मुस्कान रहती थी। उन्होंने 25 जुलाई, 1987 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। यह एक संयोग था कि 35 वर्ष पूर्व जब देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण की थी, तब श्री वेंकटरमण भी राष्ट्रपति भवन के उसी कक्ष में मौजूद थे। उस समय किसने सोचा था कि 35 वर्ष बाद इस इतिहास को दोहराने वाला व्यक्ति भी उस घड़ी वहीं मौजूद है।

जीवन परिचय

जन्म

रामास्वामी वेंकटरमण का जन्म 4 दिसम्बर, 1910 को राजारदम गाँव में हुआ था, जो मद्रास[1] के तंजावुर ज़िले में पड़ता है। अब यह तमिलनाडु के नाम से जाना जाता है। इनके पिता का नाम रामास्वामी अय्यर था। इनके पिता तंजावुर ज़िले में वकालत का पेशा करते थे।

विद्यार्थी जीवन

रामास्वामी वेंकटरमण की प्राथमिक शिक्षा तंजावुर में सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने अन्य परीक्षाएँ भी सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास से प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद इनके सामने दो विकल्प थे-ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी करें अथवा स्वतंत्र रूप से वकालत करें। इन्होंने दूसरा विकल्प चुना और 1935 ई. में मद्रास उच्च न्यायालय में नामांकन करवा लिया। यह अंग्रेज़ों के दास बनकर उनकी ग़ुलामी नहीं करना चाहते थे।

दाम्पत्य जीवन

श्री रामास्वामी वेंकटरमण का विवाह 1938 ई. में जानकी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। इनका पारिवारिक जीवन भरा-पूरा रहा है। इन्हें तीन पुत्रियों तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। इनकी तीन बेटियाँ क्रमश: पद्मा, लक्ष्मी एवं विजया हैं। लेकिन पुत्र के सम्बन्ध में वेंकटरमण को दुर्भाग्यशाली कहा जा सकता है। इनके पुत्र की 17 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी। यह परिवार के लिए एक बड़ी त्रासदी थी और इस शोक से मुक्त हो पाना आसान नहीं था। वक्त के पंजे जो घाव देते हैं, वह वक्त के मरहम से ही भर जाते हैं। लेकिन कुछ जख्मों के निशान अमिट रहते हैं। पुत्र की मौत भी ऐसा ही जख्म था।

व्यावसायिक जीवन

विधि व्यवसाय में स्वयं को स्थापित करने वाले रामास्वामी वेंकटरमण अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए हत्या के एक मुकदमें को उदाहरण स्वरूप पेश किया जा रहा है। वस्तुत: तमिलनाडु के युवा लड़कों के झुण्ड ने आवेश में आकर एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी थी। उन युवाओं को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। सी. राजगोपालाचारी उनकी कम उम्र को आधार बनाकर फाँसी की सजा बख्शवाने के लिए अपील कर चुके थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं प्राप्त हुई थी।

फाँसी की सजा का दिन भी निर्धारित कर दिया गया। लेकिन रामास्वामी वेंकटरमण ने ब्रिटिश वकील की सहायता से इंग्लैण्ड की पुनरीक्षण कौंसिल के समक्ष प्रार्थना पेश करने में सफलता प्राप्त कर ली। चूंकि मामला इंग्लैण्ड की प्रिवी कौंसिल के समक्ष विचाराधीन था, इस कारण भारत सरकार अपने विधिक आदेशों की पूर्ति नहीं कर सकती थी, लिहाजा सजा पर रोक लगा दी गई। उस समय सी. राजगोपालाचारी भारत के श्रेष्ठतम वकीलों में से एक थे और वह भी ऐसा नहीं कर पाये थे। तब सी. राजगोपालाचारी ने रामास्वामी वेंकटरमण की प्रशंसा की थी। इन्हें 1946 में भारत सरकार द्वारा वकीलों के उस पैनल में भी स्थान दिया गया, जो मलाया और सिंगापुर में सुभाष चन्द्र बोस एवं भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों के बचाव हेतु नियुक्त किया गया था। इन स्वतंत्रता सैनानियों पर यह आरोप था कि उन्होंने दोनों स्थानों पर जापानियों की मदद की थी। इससे यह साबित हो जाता है कि वेंकटरमण काफ़ी प्रतिभाशाली थे।

ग़रीबों के सहायक एवं मित्र

कुशल वकील होने के अतिरिक्त वह ट्रेड यूनियन में भी सक्रिय रूप से भाग लेते थे। तमिलनाडु में लोग इन्हें श्रम एवं क़ानून के दोहरे ज्ञाता के रूप में जानते हैं। वहाँ के लोगों का यह भी मानना था कि रामास्वामी वेंकटरमण ग़रीबों के सहायक एवं मित्र हैं। वह कई यूनियनों के साथ गहरे से जुड़े हुए थे। कृषि कार्य करने वाले व्यक्तियों, रियासत के कर्मचारियों, बंदरगाह कर्मियों, रेलवे कर्मचारियों और कार्यशील पत्रकारों की यूनियन के साथ भी इनके आत्मीय सम्बन्ध थे।

राजनीतिक जीवन

तंजावुर ज़िले की कृषि दशाओं पर भी राधास्वामी वेंकटरमण की सीधी निगाह थी। वह स्थितियों को सुधारने के पक्षधर भी रहे। इन्होंने 1952 में धातु व्यापार समिति के अधिवेशन में भी शिरकत की, जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के तत्वावधान में आयोजित किया गया था। विधि एवं ट्रेड यूनियन में इनकी संलिप्तता से इन्हें काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वकालत और ट्रेड यूनियनों के सम्पर्क में रहने के कारण यह राजनीति की ओर भी आकर्षित हुए।

स्वाधीनता संग्राम में सक्रियता

श्री वेंकटरमण ने भारत की स्वतंत्रता के लिए विधिक रूप से योगदान दिया। लेकिन 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय वह पूरी तरह से स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय हो गये। इन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ़्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया। 1944 में रिहाई के बाद यह सरकार के विविध मामलों में अधिक रुचि रखने लगे। इसी वर्ष कामराज के साथ मिलकर इन्होंने तमिलनाडु कांग्रेस समिति में श्रमिक प्रभाव की स्थापना की। इसके प्रभारी के तौर पर यह समिति के कार्यालय में कार्य करते रहे। शीघ्र ही वह सफल ट्रेड यूनियन लीडर के रूप में स्थापित हो गए।

'श्रम क़ानून' पत्रिका का आरंभ

रामास्वामी वेंकटरमण कर्मचारियों के हित में विविध लड़ाई भी लड़ते थे और उनकी समस्याओं का समाधान भी करते थे। वह वार्तालाप एवं आपसी तालमेल से समस्याएँ निपटाते थे। लेकिन जब क़ानूनी मुकाबला करना ही कर्मचारी के हित में शेष रहता था तो यह क़ानूनी लड़ाई लड़ते थे। 1949 में इन्होंने 'श्रम क़ानून' पत्रिका का आरम्भ किया। इस पत्रिका को श्रम क़ानून पत्रकारिता में विशिष्ट पहचान प्राप्त हुई। यद्यपि अनेक पत्रकारों से मधुर सम्बन्ध थे, तथापि वह चाहते थे कि पत्रकारों को ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों की पूर्ति करनी चाहिए और पत्रकारिता के सिद्धान्तों को अपने कर्मक्षेत्र का अभिन्न अंग बनाना चाहिए।

कांग्रेस संसदीय समिति में योगदान

रामास्वामी वेंकटरमण 1947 से 1950 तक मद्रास प्रोविंशल बार फ़ेडरेशन के सचिव रहे। 1951 में इन्होंने अपना नामांकन उच्चतम न्यायालय में कराया। 1953-1954 में यह कांग्रेस संसदीय दल के सचिव भी रहे। इन्होंने प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी सम्बन्धी नीतियों का सदैव समर्थन किया और कांग्रेस संसदीय समिति में रहते हुए अपना विशिष्ट योगदान भी दिया। भारतीय संविधान में अभिव्यक्त नागरिक के सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार (आर्टिकल-31) के निर्धारण में भी यह निमित्त बने और इनकी यशस्वी भूमिका रही। श्री टी.टी. कृष्णामाचारी यह चाहते थे कि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र को विकास की दृष्टि से अलग-अलग रखना चाहिए। लेकिन रामास्वामी वेंकटरमण ने इस दृष्टिकोण का विरोध करते हुए पण्डित नेहरू को सहमत किया कि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिए विकास की समान नीति होनी चाहिए। तब पण्डित नेहरू ने रामास्वामी वेंकटरमण का साथ दिया और संसद में पेश हो चुके विधेयक में आवश्यक संशोधन कराए। इनकी एक प्रशंसनीय उपलब्धि देश के कपड़ा मिलों को राष्ट्रीयकृत कराने को लेकर भी थी।

सांसद और मंत्री पद

श्री वेंकटरमण को पदों की लालसा कभी नहीं रही, यद्यपि 1957 के चुनावों में यह सांसद बन गये थे। इन्होंने लोकसभा की सदस्यता त्याग दी और मद्रास राज्य सरकार में मंत्री बनाए गए। इस समय के. कामराज मद्रास के मुख्यमंत्री थे। कामराज ने इनकी राजनीतिक प्रतिभा को निखारा, जब इन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में उद्योग, श्रम, परिवहन, सहकारिता, वाणिज्यिक कर तथा ऊर्जा सम्बन्धी मंत्रालय 1957 से 1967 तक सौंपे गए। 2 अक्टूबर, 1975 को कामराज की मृत्यु से पूर्व तक यह उनके सहायक मित्र बने रहे।

तमिलनाडु की औद्यागिक क्रान्ति के शिल्पकार

वेंकटरमण तमिलनाडु की औद्यागिक क्रान्ति के शिल्पकार माने जाते हैं। इन्होंने ही कामराज को प्रेरित किया था कि, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाए, ताकि तमिलनाडु भारत की औद्योगिक हस्ती बन सके। यही कारण है कि इन्हें 'तमिलनाडु उद्योगों का जनक' कहा जाता है। उन्होंने ही लम्बी बस सेवाओं का आरम्भ तमिलनाडु में किया था। यदि वह तमिलनाडु की सरकार में नहीं होते तो केन्द्र में पण्डित नेहरू की सरकार में मंत्री होते।

सत्ता परिवर्तन के बाद

1967 में तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। तब श्री वेंकटरमण को दिल्ली में योजना आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया, साथ ही उद्योग, श्रम, संचार एवं रेलवे, ऊर्जा तथा यातायात के विषय भी इनके हवाले किये गए। वह इन कार्यालयों में 1971 तक रहे। इस दौरान इन्हें लोकसभा से अलग रखा गया। ऐसे में वह खाली समय में सी. राजगोपालाचारी द्वारा स्थापित 'स्वराज्य पत्रिका' का सम्पादन करते थे। 1977 में श्रीमती इन्दिरा गांधी के आग्रह पर इन्होंने मद्रास से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। चूंकि यह कुशल वक्ता और संसदीय मामलों के अच्छे जानकार थे, अत: कांग्रेस के सत्ता में न रहने पर इन्होंने विपक्षी सांसद की भूमिका का निर्वहन भली-भाँति किया।

रक्षा मंत्री

1980 में रामास्वामी वेंकटरमण पुन: लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे। इन चुनावों से श्रीमती इन्दिरा गांधी की भी सत्ता में वापसी हुई। तब इन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान प्रदान किया गया। वेंकटरमण 15 जनवरी, 1982 से 2 अगस्त, 1984 तक देश के रक्षा मंत्री रहे। इसके अतिरिक्त इन्हें 16 जनवरी, 1980 से 9 अगस्त, 1981 तक उद्योग मंत्रालय का कार्यभार भी सम्भालना पड़ा। इसी प्रकार 28 जून, 1982 से 2 सितम्बर, 1982 तक इन्होंने गृह मामलों के मंत्रालय का कार्यभार भी वहन किया।

उपराष्ट्रपति

इसके पश्चात् कांग्रेस पार्टी द्वारा श्री रामास्वामी वेंकटरमण को देश का उपराष्ट्रपति नियुक्त करने का निर्णय किया गया। 22 अगस्त, 1984 को इन्होंने उपराष्ट्रपति का पदभार सम्भाल लिया। साथ ही उपराष्ट्रपति के रूप में राज्यसभा के सभापति भी बने। राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में इनके कार्य की सराहना मात्र कांग्रेस द्वारा ही नहीं बल्कि विपक्ष द्वारा भी की गई।

राष्ट्रपति पद पर

उपराष्ट्रपति बनने के लगभग 25 माह बाद कांग्रेस को देश का राष्ट्रपति निर्वाचित करना था। ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल समाप्त होने वाला था। इसी के तहत 15 जुलाई, 1987 को वह भारतीय गणराज्य के आठवें निर्वाचित राष्ट्रपति घोषित किये गए। 24 जुलाई, 1987 को इन्होंने उपराष्ट्रपति से त्यागपत्र दे दिया। 25 जुलाई, 1987 को मध्याह्न 12:15 पर संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर.एस. पाठक ने इन्हें राष्ट्रपति के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस समय श्री वेंकटरमण ने सफ़ेद चूड़ीदार पाजामा और काली शेरवानी धारण कर रखी थी। इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा में शपथ ग्रहण की।

शपथ ग्रहण करने के तुरन्त बाद श्री वेंकटरमण ने कहा-"मैं इस उच्चतम कार्यालय के कर्तव्यों की पूर्ति में कोई त्रुटि नहीं करूंगा और न ही संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग करूंगा। पूर्व राष्ट्रपतियों, यथा-डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, डॉक्टर राधाकृष्णन और डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने जो चमकदार परम्परा स्थापित की है, मैं उसका निर्वहन करूंगा।" जब इनसे सूचना तंत्र के व्यक्ति ने पूछा कि आप राष्ट्रपति के रूप में किस प्रकार कार्य करने वाले हैं, तो इन्होंने बेहद सन्तुलित जवाब दिया-"यह जनता ही तय करेगी कि मेरा कार्यकाल कैसा रहा।"

राष्ट्रपति के रूप में श्री वेंकटरमण के सामने कई प्रकार की कठिनाइयाँ आईं, लेकिन वह राजनैतिक तूफानों से देश को सुरक्षित निकालने में सफल रहे। 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार अल्पमत में आई और उसका पतन हुआ। मई-जून 1991 में राजीव गांधी की हत्या के समय भी देश चुनौतियों से घिरा हुआ था। लेकिन इन्हें जनता पर पूर्ण विश्वास था कि वह कठिनाइयों में भी बुद्धिमानी और राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय देगी।

राष्ट्रपति कार्यकाल

रामास्वामी वेंकटरमण के राष्ट्रपति काल के पाँच वर्षों (25 जुलाई, 1987 से 25 जुलाई 1992 तक) में यह साबित हुआ कि उन परिस्थितियों में उनसे बेहतर कोई अन्य राष्ट्रपति नहीं हो सकता था। यदि उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर दृष्टिपात किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री वेंकटरमण ने प्रत्येक ज़िम्मेदारी का निष्ठा से निर्वहन किया और कभी भी अति महत्त्वकांक्षा अथवा पद की लालसा नहीं दिखाई। उपराष्ट्रपति रहते हुए भी इन्होंने कई ज़िम्मेदारियों का पालन किया।

विदेश यात्रा

श्री वेंकटरमण ने अपने कार्यकाल के दौरान कई देशों की सद्भावना यात्रा की। मई 1992 में यह छह दिवसीय चीन यात्रा पर गए। इसके पूर्व कोई भी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष चीन नहीं गया था।

सम्मान और पुरस्कार

वेंकटरमण को कई विश्वविद्यालयों ने अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किए। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान हेतु इन्हें ताम्रपत्र देकर भी सम्मानित किया गया। समाजवादी देशों की यात्रा का वृत्तान्त लिखने के लिए इन्हें 'सोवियत लैंड प्राइज' दिया गया।

व्यक्तित्व

श्री वेंकटरमण का नाम कभी विवादों में नहीं आया और न ही इन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा। यह स्वयं को राजनीतिज्ञ से ज़्यादा राष्ट्रवादी मानते थे, जिसका कार्य देश की सेवा करना होता है। एक बार इन्होंने कहा था-"राजनीतिज्ञ वह है, जो अगले चुनाव के विषय में सोचता है और राजनेता वह है, जो अगली पीढ़ी के विषय में सोचता है।" श्री वेंकटरमण सभी प्रकार की जातीय विषमताओं को बुरा मानते थे, साथ ही गुटनिरपेक्षता के भी भी हिमायती थे। यह जीवन भर शाकाहरी रहे और कभी शराब का सेवन नहीं किया। वह गांधीवादी विचारधारा के घोर उपासक थे। इन्हें संगीत, संस्कृति और कला से भी काफ़ी लगाव था। 25 जुलाई, 1992 तक यह भारतीय गणराज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण पद पर रहे।

राष्ट्रपति पद के बाद

राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद श्री वेंकटरमण अपने परिवार के सदस्यों के साथ इण्डियन एयरफ़ोर्स के विशेष विमान से तमिलनाडु रवाना हो गए। बाद में इन्होंने एक पुस्तक 'माई प्रेसिडेंशियल ईयर्स' शीर्षक से लिखी। इस पुस्तक में इन्होंने अपने राष्ट्रपतित्व काल के पाँच वर्ष की घटनाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक 671 पृष्ठों की थी। इसके बाद इन्होंने श्रम क़ानून पर भी उपयोगी लेखन कार्य किया। वेंकटरमण अंतर्राष्ट्रीय समझ एवं सद्भाव हेतु दिये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार 'जवाहरलाल नेहरू अवार्ड' की ज्यूरी के सदस्य भी रहे। विकास, शान्ति एवं निशस्त्रीकरण के क्षेत्र में दिये जाने वाले 'इंदिरा गांधी पुरस्कार' की चयन समिति में भी थे। वह जवाहरलाल स्मृति कोष के उपाध्यक्ष और इंदिरा गांधी स्मृति कोष के न्यासी भी रहे। यह गांधीनगर खरवा इंस्टीट्यूट, दिल्ली विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय रूरल इंस्टीट्यूट तथा दिल्ली विश्वविद्यालय एवं पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे।

अंतिम समय

श्री वेंकटरमण ने अच्छी उम्र पाई और जीवन के 98 बसन्त देखने का सौभाग्य प्राप्त किया। 12 जनवरी, 2009 को इन्हें 'यूरोसेप्लिस' की शिकायत होने पर नई दिल्ली के 'आर्मी रिसर्च एण्ड रैफ़रल हॉस्पिटल' में भर्ती कराया गया, लेकिन इनकी स्थिति गम्भीर होती चली गई। 20 जनवरी, 2009 को इनका ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) काफ़ी कम हो गया। साथ ही इन्हें इन्फ़ेक्शन भी हो गया था। 26 जनवरी, 2009 को अपराह्न 2:30 पर शरीर के कई अंगों द्वारा काम बन्द कर देने के कारण इनका अस्पताल में निधन हो गया। इस प्रकार इनके निधन से एक युग का अन्त हो गया। लेकिन भारत माता के इस सच्चे सपूत को देश कभी विस्मृत नहीं कर सकेगा।



भारत के राष्ट्रपति
पूर्वाधिकारी
ज्ञानी ज़ैल सिंह
रामस्वामी वेंकटरमण उत्तराधिकारी
शंकरदयाल शर्मा


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अगस्त 1968 में मद्रास स्टेट को तमिलनाडु में परिवर्तित किया गया था।

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