भारी कहौं तो बहु डरौं, हलका कहूं तौ झूठ । मैं का जाणौं राम कूं, नैनूं कबहूँ न दीठ ॥1॥ दीठा है तो कस कहूँ, कह्या न को पतियाय । हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरषि-हरषि गुण गाइ ॥2॥ पहुँचेंगे तब कहैंगे ,उमड़ैंगे उस ठांइ । अजहूँ बेरा समंद मैं, बोलि बिगूचैं कांइ ॥3॥