श्री कालाहस्ती मन्दिर
श्री कालाहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के पास स्थित श्रीकालाहस्ती नामक जगह पर स्थापित है। इसे 'दक्षिण का कैलाश व काशी' कहा जाता है। यह मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णमुखी नदी के तट पर बसा है। इस मन्दिर को 'राहू-केतु मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर लोग राहु की पूजा व उसकी शांति हेतु आते हैं। प्राय: लोग इस मन्दिर के लिए 'कालहस्ती' शब्द का भी प्रयोग करते हैं। यह मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों मे से एक है।
कथा
श्री कालाहस्ती के नाम से पहचाना जाने वाला यह तीर्थ स्थल दक्षिण का प्रमुख धार्मिक क्षेत्र है। भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थ स्थानों में इस स्थान का विशेष महत्त्व है। श्री कालहस्ती के बारे मे धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। स्कंदपुराण, शिवपुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में इसके विषय में प्रमुख रूप से उल्लेख किया गया है। स्कंदपुराण में दर्शाया गया है कि इस स्थान पर अर्जुन ने प्रभु श्री कालाहस्ती के दर्शन किए, उसके पश्चात अर्जुन को भारद्वाज मुनी के भी दर्शन हुए थे।
एक अन्य कथानुसार इसी जगह पर तीन पशुओं द्वारा भगवान शिव की अराधना का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है की एक बार एक मकड़ी, सर्प तथा हाथी ने यहाँ शिवलिंग को पुजा, जिसमें मकडी़ ने शिवलिंग की पूजा करते समय उसके उपर जाल का निर्माण किया तथा सर्प ने शिवलिंग से लिपटकर पुजा की और हाथी ने जल द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया था। इनकी भक्ति देखकर भगवान शिव ने इन्हें मुक्ति का वरदान दिया व इस जगह का नाम भी इन पशुओं के नाम, जो 'श्री' यानी मकड़ी, 'काला' यानी सर्प तथा 'हस्ती' यानी हाथी के नाम पर रखा गया। यहाँ पर इन तीनों पशुओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि कणप्पा नामक एक आदिवासी ने यहाँ पर शिव आराधना की थी।
प्राकृतिक सौन्दर्य
कालाहस्ती मंदिर मे देश भर से आए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस जगह का वातावरण प्रकृति के मनोहर रूप को अपने में समाए हुए है। काफ़ी विशाल घेरे मे फैला यह मंदिर स्वर्णमुखी नदी के किनारे से पहाड़ की तलहटी तक पसरा हुआ है। मंदिर से तिरूमलय पर्वत श्रृंखला का बहुत ही सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है। यहाँ के और भी अन्य खूबसूरत नजारे इस जगह को आकर्षक बना देते हैं।
स्थापत्य कला
लगभग दो हज़ार वर्षों से श्री कालाहस्ती मन्दिर अपने महत्त्व से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। मंदिर की बनावट एवं सुंदरता उसके गौरव का बखान करती हुई दिखाई देती है। मंदिर के चारों ओर बड़ा ही मनोरम वातावरण स्थापित है। कैलाश या काशी के रूप में माना जाने वाला यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर का शिखर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है, जिस पर सफ़ेद रंग का आवरण है। मंदिर में तीन भव्य गोपुरम हैं। इसके साथ ही मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है, जो स्थापत्य की दृष्टि से अद्वितीय है। मंदिर के अंदर कई शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर में भगवान कालहस्तीश्वर व देवी ज्ञानप्रसूनअंबा भी विराजमान हैं। मंदिर का भीतरी भाग पाँचवीं शताब्दी का बना माना जाता है तथा बाहरी भाग बाद में बारहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ।
अन्य दार्शनिक स्थल
मंदिर के आस-पास कई अन्य मंदिर भी स्थापित हैं, जिनमें से मणिकणिका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, कणप्पा मंदिर, कृष्णदेवार्या मंडप, श्री सुकब्रह्माश्रमम, वैय्यालिंगाकोण, जिसे सहस्त्र लिंगों की घाटी कहा जाता है। इसके साथ ही पहाड़ों पर स्थित मंदिर व दक्षिण काली मंदिर प्रमुख हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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