माघ पूर्णिमा

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माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा हिन्दू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है। वैसे तो हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। माघ नक्षत्र के नाम पर 'माघ पूर्णिमा' की उत्पत्ति होती है। माघ माह में देवता-पितरगण सदृश होते हैं। पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा और श्रेष्ठता सर्वविदित है। पितरों के लिए तर्पण भी हज़ारों साल से चला आ रहा है।[1] इस दिन सुवर्ण, तिल, कम्बल, पुस्तकें, पंचांग, कपास के वस्त्र और अन्नादि दान करने से सुकृत्य मिलता है।

धार्मिक मान्यता

माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। सूर्य मकर राशि में आ जाता है। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। नतीजतन इसी दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप-तप दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का पुण्य अक्षुण हो जाता है।[2]

कल्पवास की पूर्णता

'माघ पूर्णिमा' कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक माह की तपस्या इस तिथि को समाप्त हो जाती है। कल्पवासी अपने घरों को लौट जाते हैं। स्वाभाविक है कि संकल्प की संपूर्ति का संतोष एवं परिजनों से मिलने की उत्सुकता उनके हृदय के उत्साह का संचार है। इसीलिये यह स्नान पर्व आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है।

पौराणिक प्रसंग

शास्त्रों में एक प्रसंग है कि "भरत ने कौशल्या से कहा कि 'यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वो वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो।' यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया।" इस तथ्य से ही इन अक्षुण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है।[2]

माघ स्नान

'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं, अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्श मात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं। इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व होता है। भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। माघ पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए। तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है।

महत्त्व

'माघ पूर्णिमा' को 'माघी पूर्णिमा' के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस पूर्णिमा के हिन्दू धर्म में कई महत्त्व बताये गए हैं-

  • इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एंव संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्वता प्राप्त होती है।
  • किसी भी व्यक्ति द्वारा इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है।
  • 'ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए।
  • इस दिन से ही होली का डांडा गाड़ा जाता है।

पूजन

माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी का पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है। सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है।[3]

माघ पूर्णिमा-2015

वर्ष 2015 में 3 फ़रवरी के दिन पड़ने वाली माघ पूर्णिमा को दुर्लभ संयोग बन रहा है। छह साल बाद फिर से माघ पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र और रवि योग का त्रिवेणी संयोग बना है। इस दिन लाखों लोग तीर्थ स्थलों पर पवित्र नदियों में डुबकिया लगाएंगे। 'ललिता' और 'रविदास जयंती' भी होगी और होली के एक माह पहले ही होली का डांडा गली, चौराहों पर गाड़ा जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार 3 फ़रवरी, मंगलवार को माघ पूर्णिमा दिवस पर्यंत रहेगी। पुष्य नक्षत्र सुबह 7 से रात 8 बजे तक 13 घंटे रहेगा। मंगलकारी रवि योग भी सूर्योदय से दोपहर 12.37 तक होगा। इस दिन 'माघ स्नान' का समापन होता है। मान्यता है कि इस दिन देवता भी स्नान के लिए धरती पर आते हैं। माघ पू्‌र्णिमा, पुष्य नक्षत्र और रवि योग का त्रिवेणी संयोग 6 साल बाद बन रहा है। इससे पहले यह संयोग 2009 में बना था। माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र का आना मंगलकारी योग है। पुष्य नक्षत्र में चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होता है। इस दिन किए गए कार्य में सफलता प्राप्त होती है।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुण्य प्रदायिनी माघ पूर्णिमा (हिन्दी) जागरण। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  2. 2.0 2.1 पुष्य नक्षत्र के साथ माघ पूर्णिमा का संयोग जानिए महत्व (हिन्दी) अमर उजाला.कॉम। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  3. दान-पुण्य की माघ पूर्णिमा (हिन्दी) हिन्दुमार्ग। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  4. तीन फ़रवरी माघ पूर्णिमा पर बन रहा दुर्लभ संयोग (हिन्दी) पल-पल इण्डिया। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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