तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
| |
विवरण | भगवान विष्णु का प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के तिरुपति में स्थित है। |
राज्य | आंध्र प्रदेश |
ज़िला | चित्तूर |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 13°40′59″; पूर्व- 79°20′49″ |
मार्ग स्थिति | तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर चेन्नई से 150 किलोमीटर, हैदराबाद से 500 किलोमीटर और बेंगलोर से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | कई शताब्दी पूर्व बने तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर की सबसे ख़ास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अदभुत संगम है। |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। |
रेनिगुंता हवाई अड्डा | |
तिरुपति रेलवे स्टेशन | |
श्री वेंकटेश्वर बस स्टेशन, बालाजी लिंक बस स्टेशन, सप्तगिरि लिंक बस स्टेशन, श्री पद्मावती बस स्टेशन | |
ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और बस | |
क्या देखें | स्वामी मंदिर, पद्मावती मंदिर, गोविंदराजस्वामी मंदिर, चंद्रगिरी क़िला |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
क्या ख़रीदें | चंदन की लकड़ी से बनाई गई भगवान वेंकटेश्वर और पद्मावती की मूर्तियाँ |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
भाषा | तेलुगु और अंग्रेज़ी |
अन्य जानकारी | तिरुमला के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वर का यह मन्दिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है। |
भगवान विष्णु का प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के तिरुपति में स्थित है। तिरुमला के सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना श्री वेंकटेश्वर मन्दिर यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। इसलिए इसे सात पर्वतों का मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।
मन्दिर की प्रसिद्धि
इस मन्दिर में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्तजन दर्शनों के लिए आते हैं। कई शताब्दी पूर्व बने इस मन्दिर की सबसे ख़ास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अदभुत संगम है। चूँकि, तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है, इसलिए यहाँ स्थित वेंकटेश्वर मन्दिर को दुनिया में सबसे अधिक पूजनीय स्थल कहा गया है।
श्रद्धालुओं का आगमन
प्रतिदिन इस मन्दिर में एक से दो लाख श्रद्धालु आते हैं, जबकि किसी ख़ास अवसर या त्योहार जैसे सालाना रूप से आने वाले ब्रह्मोत्सवम में श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 5 लाख तक पहुँच जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, इस मन्दिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में ही भगवान बसते हैं और वे यहाँ समूचे कलियुग में विराजमान रहेंगे। वैष्णव परम्पराओं के अनुसार यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मन्दिर के निर्माण में ख़ास योगदान रहा है।
मान्यताएँ
चूँकि भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, इसलिए धारणा है कि प्रभु श्री विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। मन्दिर से सटे पुष्करणी पवित्र जलकुण्ड के पानी का प्रयोग केवल मन्दिर के कार्यों, जैसे भगवान की प्रतिमा को साफ़ करने, मन्दिर परिसर का साफ़ करने आदि के कार्यों में ही किया जाता है। इस कुण्ड का जल पूरी तरह से स्वच्छ और कीटाणुरहित है। श्रद्धालु ख़ासकर इस कुण्ड के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि वैकुण्ठ में विष्णु इसी कुण्ड में स्नान किया करते थे। यह भी माना जाता है कि जो भी इसमें स्नान कर ले, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और सभी सुख प्राप्त होते हैं। बिना यहाँ डुबकी लगाए कोई भी मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। डुबकी लगाने से शरीर और आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाते हैं। दरअसल, तिरुमला के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वर का यह मन्दिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्रि के नाम से प्रसिद्ध है।
जो भक्त व श्रद्धालु वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, उनके सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात् व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। जो भी तिरुपति आता है, प्रभु वेंकटेश्वर के दर्शन के बिना वापस नहीं जाता। भक्तों की लम्बी कतार देखकर इस मन्दिर की प्रसिद्धि का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है। पुराणों के अनुसार, कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही मुक्ति सम्भव है। माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन करने वाले प्रत्येक भक्त को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। दर्शन करने वाले भक्तों के लिए विभिन्न स्थानों तथा बैकों से एक विशेष पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से श्रद्धालु भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर सकते हैं।
साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक
यहाँ पर बिना किसी भेदभाव व रोकटोक के किसी भी जाति व धर्म के लोग आ-जा सकते हैं, क्योंकि इस मन्दिर का पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुला है। मन्दिर परिसर में ख़ूबसूरती से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मन्दिर हैं, जिसका आप दर्शन कर सकते हैं। परिसर में कृष्ण देवर्या मंडपम आदि भी बने हुए हैं। मन्दिर के दर्शन के लिए तिरुमला पर्वतमाला पर पैदल यात्रियों के चढ़ने के लिए तिरुमला तिरुपती देवस्थानम नामक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाहत पूरी की जा सकती है।
यात्रा का क्रम
पहले कपिल तीर्थ में स्नान करके कपिलेश्वर का दर्शन करना चाहिए। फिर ऊपर जाकर भगवान वेंकटेश के दर्शन करना चाहिए। वहाँ से नीचे आकर गोविंद राज तथा तिरुञ्चानूर में पद्मावती के दर्शन करने चाहिए।
कपिलतीर्थ- यह पैदल मार्ग में है। मोटर बस की यात्रा में नहीं मिलता। यह सरोवर है। यहाँ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। पूर्व भाग में कपिलेश्वर शिव मंदिर है। श्रीबालाजी जहाँ हैं, उस पर्वत का नाम वेंकटाचल है और ऊपर की बस्तो को तिरुमलै कहते हैं। कहते हैं कि भगवान शेष ही यहाँ पर्वत रूप में है। पैदल मार्ग में तिरुपति से 4 मील दूर नृसिंह भगवान का मंदिर तथा आगे श्रीरामानुजाचार्य का मंदिर मिलता है। नीचे जो शहर है, उसका नाम तिरुपति है। मोटर बसों का मार्ग 15 मील का है। वे मंदिर से थोड़ी दूर पर खड़ी होती हैं।
कल्याणकट्ट- तीर्थराज प्रयाग की भांति वेकटाचल पर भी मुंडन संस्कार प्रधान माना जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ भी एक लट कटवा देती हैं। इसके लिए कल्याणकट्ट नामक यह स्थान है। कार्यालय में निश्चित शुल्क देकर चिट्ठी लेनी पड़ती है। तब यहाँ नियुक्त नाई मुंडन करते हैं।
स्वामि पुष्करिणी- श्रीबालाजी के मंदिर के समीप ही यह विस्तृत सरोवर है। इसमें स्नान करके ही मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। कहा जाता है कि वाराहावतार के समय भगवान वाराह के आदेश से गरुड़ जी वैकुंठ से यह पुष्करिणी उनके स्नानार्थ ले आये। इसका स्नान समस्त पाप नाशक है। पुष्करिणी के मध्य के मण्डप में दशावतारों की मूर्तियाँ खुदी हैं।
वराह मंदिर- नियम यह है कि पहले भगवान वराह का दर्शन करके तब बालाजी का दर्शन किया जाए। स्वामि पुष्करिणी के पश्चिम पुष्करिणी घेरे में ही यह मंदिर है। इसके समीप ही एक श्रीराधा-कृष्ण का मंदिर भी है।
श्रीबालाजी (वेंकटेश्वर)- यह मंदिर तीन परकोटों के भीतर है। जगमोहन से 4 द्वार पार करने पर पाँचवें में श्रीबालाजी[1] की मूर्ति है। शंख, चक्र, गदा पद्मधारी यह 7 फुट ऊँची मूर्ति है। दोनों ओर श्रीदेवी तथा भूदेवी हैं। द्वितीय द्वार को पार करने पर प्रदक्षिणा में योग नृसिंह श्रीवरदराज (विष्णु) श्रीरामानुजाचार्य, सेनापति, गरुड़ तथा रसोई में बकुल मालिका के मंदिर हैं।
श्रीबालाजी का एक दर्शन प्रभात में, एक मध्याह्न में तथा एक रात्रि में होता है। इन सामुहिक दर्शनों के अतिरिक्त अन्य दर्शन हैं- जिनमें अर्चना होती है। उनका शुल्क निश्चित है।
अन्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल
आकाश गंगा- बालाजी से दो मील पर एक झरने का जल कुंड में एकत्र होता है। उसमें स्नान किया जाता है।
पापनाशन तीर्थ- आकाश गंगा से 1 मील आगे। यहाँ एक प्रपात है। जंजीर पकड़कर स्नान करना पड़ता है।
वैकुण्ठ तीर्थ- बालाजी से दो मील पूर्व पर्वत में वैकुण्ठ गुफा से जलधारा निकलती है।
पाण्डव तीर्थ- बालाजी से दो मील उत्तर पश्चिम एक झरना है। यहाँ द्रोपदी सहित पाण्डवों की मूर्तियाँ हैं।
जाबालि तीर्थ- पाण्डव तीर्थ से एक मील आगे झरना है।
तिरुपति- तिरुमलै पर श्रीबालाजी के दर्शन करके नीचे उतर आने पर तिरुपति बाज़ार में श्रीगोविंदराज का विशाल मंदिर है। इसमें मुख्य मूर्ति शेषशायी नारायण की है। इसकी प्रतिष्ठा श्रीरामानुजाचार्य ने की है। यहाँ श्रारामानुजाचार्य की गद्दी है। यहाँ के आचार्य श्रीवेंकटाचार्य कहलाते हैं। मंदिर में भीतर 15 छोटे मंदिर और हैं। इन्हीं में श्रीगोदा अम्बा का मंदिर है। तिरुपति बाज़ार में दूसरा बड़ा मंदिर श्रीकोदण्डराम मंदिर है।
तिरुच्चानूर- तिरुपति से 3 मील पर यह बस्ती है। इसे मंगापट्टनम भी कहते हैं। पद्म सरोवर नाम का यहाँ पुण्य तीर्थ है। उसके समीप ही पद्मावती मंदिर है। उनको यहाँ अववेलु मंगम्मा कहते हैं।
विशेष
श्रीबालाजी की मूर्ति पर एक स्थान पर चोट का चिह्न है। वहाँ दवा लगाई जाती है। कहते हैं कि एक भक्त नीचे से प्रतिदिन दूध लाता था। वृद्ध होने पर वह असमर्थ हो गया तो स्वयं बालाजी चुपचाप जाकर उसकी गाय का दूध पी आते थे गाय को दूध न देते देख भक्त ने छिपकर देखा और मानववेष में बालाजी दूध पीने लगे तो डंडा मारा। उसी समय प्रगट होकर उसे भगवान ने दर्शन दिये। मूर्ति में वह डंडा लगाने का चिह्न अभी है। मंदिर में मध्याह्न दर्शन के पश्चात् प्रसाद बिकता है। दर्शनार्थी को भात-प्रसाद निःशुल्क मिलता है।
पौराणिक कथा
आकाश राज से यहाँ पुत्री रूप में स्वयं लक्ष्मी जी ने जन्म लिया। पद्मसरोवर में कमल पुष्प में प्रगट हुई। आकाश राज ने उन्हें केवल पुत्री रूप में पाला। बड़ी होने पर उनका विवाह श्रीवेंकटेश स्वामी (बालाजी) के साथ हुआ[2]।
चित्र वीथिका
-
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
-
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
-
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख