श्रुतायुध

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श्रुतायुध महाभारत द्रोणपर्व के अनुसार एक राजा थे।[1] उन्हें वरुण और पर्णाशा का पुत्र कहा गया है। इनके पास एक ऐसी गदा थी, जो युद्धकर्त्ता पर फेंकने से उसका नाश अवश्य करती थी, किंतु युद्ध न करने वाले पर चलाने से उसका उल्टा ही फल होता था और वह गदा चलाने वाले के ही प्राण हर लेती थी। श्रुतायुध को यह गदा उनके पिता वरुण ने दी थी।

जन्म तथा दिव्य गदा की प्राप्ति

वीर राजा श्रुतायुध वरुण के पुत्र थे। शीतसलिला महानदी पर्णाशा उनकी माता थीं। पर्णाशा अपने पुत्र के लिये वरुण से बोली- "प्रभो। मेरा यह पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्‍य हो।" तब वरुण ने प्रसन्‍न होकर कहा- "मैं इसके लिये हितकारक वर के रूप में यह दिव्‍य अस्‍त्र प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा तुम्‍हारा यह पुत्र अवध्‍य होगा। सरिताओं में श्रेष्‍ठ पर्णाशे! मनुष्‍य किसी प्रकार भी अमर नहीं हो सकता। जिन लोगों ने यहां जन्‍म लिया है, उनकी मृत्‍यु अवश्‍यम्‍भावी है। तुम्‍हारा यह पुत्र इस अस्‍त्र के प्रभाव से रणक्षैत्र में शत्रुओं के लिये सदा ही दुर्धर्ष होगा। अत: तुम्‍हारी मानसिक चिन्‍ता निवृत हो जानी चाहिये।" ऐसा कहकर वरुण देव ने श्रुतायुध को मन्‍त्रोंपूर्वक वह गदा प्रदान की, जिसे पाकर वे सम्‍पूर्ण जगत में दुर्जय वीर माने जाते थे। गदा देकर भगवान वरुण ने उनसे पुन: कहा- "वत्‍स! जो युद्ध न कर रहा हो, उस पर इस गदा का प्रहार न करना; अन्‍यथा यह तुम्‍हारे ऊपर ही आकर गिरेगी। शत्तिशाली पुत्र! यह गदा प्रतिकूल आचरण करने वाले प्रयोक्ता पुरुष को भी मार सकती है।"

अर्जुन से सामाना

महाभारत युद्ध में शत्रुसूदन अर्जुन बड़ी उतावली के साथ शत्रु-सेनाओं को पीड़ा दे रहे थे। जब कृतवर्मा उनके समक्ष आये, तब सम्बंधों का विचार करके अर्जुन ने उनका वध नहीं किया। अर्जुन को इस प्रकार आगे बढ़ते देख शूरवीर राजा श्रुतायुध अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे और अपना विशाल धनुष हिलाते हुए उन पर टूट पड़े। उन्‍होंने अर्जुन को तीन और श्रीकृष्ण को सत्‍तर बाण मारे। फिर अत्‍यन्‍त तीखे क्षुरप्र से अर्जुन की ध्‍व्‍जा पर प्रहार किया। तब अर्जुन ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर अंकुशों से महान गजराज को पीड़ित करने की भांति झुकी हुई गांठ वाले नब्‍बे बाणों से राजा श्रुतायुध को चोट पहुंचायी।[2] उस समय राजा श्रुतायुध पाण्‍डुकुमार अर्जुन के उस पराक्रम को न सह सके। अत: उन्‍होंने अर्जुन को सतहत्‍तर बाण मारे। तब अर्जुन ने उनका धनुष काटकर उनके तरकस के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर कुपित हो झुकी हुई गांठ वाले सात बाणों द्वारा उनकी छाती पर प्रहार किया। फिर तो राजा श्रुतायुध ने क्रोध से अचेत होकर दूसरा धनुष हाथ में लिया और इन्‍द्रकुमार अर्जुन की भुजाओं तथा वक्ष:स्‍थल में नौ बाण मारे। यह देख शत्रुदमन अर्जुन ने मुस्‍कराते हुए ही श्रुतायुध को कई हज़ार बाण मारकर पीड़ित कर दिया। साथ ही उन महारथी एवं महाबली वीर ने उनके घोडों और सारथि को भी शीघ्रतापूर्वक मार डाला और सत्‍तर नाराचों से श्रुतायुध को भी घायल कर दिया।

मृत्यु

जैसा कि पिता वरुण ने श्रुतायुध से कहा था कि इस गदा का प्रयोग जो युद्ध न कर रहा हो उस पर मत करना, उन्होंने पिता वरुण के इस आदेश का पालन नहीं किया और उस वीरघातिनी गदा के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को चोट पहुंचायी। पराक्रमी श्रीकृष्‍ण ने अपने हष्‍ट–पुष्‍ट कंधे पर उस गदा का आघात सह लिया। परंतु जैसे वायु विन्‍ध्‍यपर्वत को नहीं हिला सकती है, उसी प्रकार वह गदा श्रीकृष्‍ण को कम्पित न कर सकी। जैसे दोषयुक्त आभिचारिक क्रिया से उत्‍पन्‍न हुई कृत्‍या उसका प्रयोग करने वाले यजमान का ही नाश कर देती है, उसी प्रकार उस गदा ने लौटकर वहां खड़े हुए अमर्षशील वीर श्रुतायुध को मार डाला। वीर श्रुतायुध का वध करके वह गदा धरती पर जा गिरी। लौटी हुई उस गदा को और उसके द्वारा मारे गये वीर श्रुतायुध को देखकर कौरव सेना में महान हाहाकार मच गया। शत्रुदमन श्रुतायुध को अपने ही अस्‍त्र से मारा गया देख यह बात ध्‍यान में आयी कि श्रुतायुध ने युद्ध न करने वाले श्रीकृष्‍ण पर गदा चलायी थी। इसीलिये उस गदा ने उन्‍हीं का वध किया। वरुण देव ने जैसा कहा था, युद्ध भूमि में श्रुतायुध की उसी प्रकार मृत्‍यु हुई। वे सम्‍पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते प्राणशून्‍य होकर पृथ्‍वी पर गिर पड़े। गिरते समय पर्णाशा के प्रिय श्रुतायुध आंधी के उखाड़े हुए अनेक शाखाओं वाले वृक्ष के समान प्रतीत हो रहे थे।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 140 |

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