शान्तिनाथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण (Text replacement - "स्वरुप" to "स्वरूप")
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

शान्तिनाथ जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर थे। शान्तिनाथ जी का जन्म हस्तिनापुर के इक्ष्वाकु वंश के राजा विश्वसेन की धर्मपत्नी अचीरा के गर्भ से ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भरणी नक्षत्र में हुआ था। जैन अनुयायियों के अनुसार भगवान शान्तिनाथ अवतारी पुरुष थे। उनके जन्म से ही चारों ओर शान्ति का राज्य स्थापित हो गया था और वे शान्ति, अहिंसा, करुणा के स्वरूप और अनुशासनप्रिय थे।

  • शान्तिनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न मृग था।
  • इनके यक्ष का नाम गरूड़ और यक्षिणी का नाम निर्वाणा देवी था।
  • जैनियों के मतानुसार शान्तिनाथ के गणधरों की कुल संख्या 62 थी, जिनमें चक्रायुध स्वामी इनके प्रथम गणधर माने गये हैं।
  • शान्तिनाथ ने हस्तिनापुर में ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को दीक्षा की प्राप्ति की थी।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात एक वर्ष तक कठिन तप करने के बाद हस्तिनापुर में ही 'नंदी वृक्ष' के नीचे पौष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को शान्तिनाथ को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
  • कई वर्षों तक सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सम्मेद शिखर पर शान्तिनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री शांतिनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

संबंधित लेख