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- बस एक चान्स -आदित्य चौधरी
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- बसंत (i) -नज़ीर अकबराबादी
- बसंत (ii) -नज़ीर अकबराबादी
- बसंत (iii) -नज़ीर अकबराबादी
- बसंत की रात -गोपालदास नीरज
- बसंत कुमार दास
- बसंत के झरोखे खुले हुए हैं -नीलम प्रभा
- बसंत पंचमी
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- बसन्त (रमैनी)
- बसन्त आ गया पर कोई उत्कण्ठा नहीं -विद्यानिवास मिश्र
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- बहु प्रकार भूषन पहिराए
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- बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु
- बहु बासना मसक हिम रासिहि
- बहु बिधि कर बिलाप जानकी
- बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा
- बहु बिधि खल सीतहि समुझावा
- बहु बिधि मोहि प्रबोधि सुख देई
- बहु बिधि संभु सासु समुझाई
- बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन
- बहु राम लछिमन देखि मर्कट
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- बहुत कठिन है डगर पनघट की -अमीर ख़ुसरो
- बहुत कीन्ह प्रभु लखन
- बहुत दिन बीते पिया को देखे -अमीर ख़ुसरो
- बहुत दिवस बीते एहि भाँती
- बहुत फ़ज़ीता है -आदित्य चौधरी
- बहुत बड़ा पाठ -महात्मा गाँधी
- बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ
- बहुत मिला न मिला ज़िन्दगी से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह
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- बहुबिधि करत मनोरथ
- बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला
- बहुबिधि भूप सुता समुझाईं
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- बहुरि नहिं आवना या देस -कबीर
- बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ
- बहुरि बच्छ कहि लालु
- बहुरि बिचारि परस्पर कहहीं
- बहुरि बिलोकि बिदेह सन
- बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी
- बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं
- बहुरि महाजन सकल बोलाए
- बहुरि मुनिन्ह हिमवंत
- बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाईं
- बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा
- बहुरि राम छबिधाम बिलोकी
- बहुरि राम जानकिहि देखाई
- बहुरि राम पद पंकज धोए
- बहुरि राम सब तन
- बहुरि राममायहि सिरु नावा
- बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा
- बहुरि विभीषन भवन सिधायो
- बहुरि सपरिजन भरत कहुँ
- बहुरि सोचबस भे सियरवनू
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