छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-2

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  • इस खण्ड में साम का भाव साधुतापूर्ण-सदाशयतापूर्ण बताया गया है। 'उद्गीथ' ही साम हे।
  • ऊर्ध्व लोकों में पांच प्रकार से साम की उपासना की जाती है।
  • पृथ्वी को 'हिंकार', अग्नि को 'प्रस्ताव,'अन्तरिक्ष को 'उद्गीथ' और आदित्य को 'प्रतिहार' तथा द्युलोक को 'निधन' माना जाता है।
  • इसी प्रकार अधोमुख लोकों में भी पांच प्रकार से साम की उपासना की जाती है।
  • यहाँ स्वर्ग 'हिंकार' है, आदित्य 'प्रस्ताव' है, अन्तरिक्ष 'उद्गीथ' है, अग्नि 'प्रतिहार' है और पृथिवी 'निधन' है।
  • पंचविध साम की उपासना से ऊर्ध्व और अधोलोकों के समस्त भोग सहज प्राप्त हो जाते हैं।


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