शक्ति सामंत
शक्ति सामंत
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पूरा नाम | शक्ति सामंत |
जन्म | 13 जनवरी, 1926 |
जन्म भूमि | बर्धमान नगर, बंगाल |
मृत्यु | 9 अप्रैल, 2009 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | निर्माता-निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | हावड़ा ब्रिज, अमर प्रेम, आराधना, कटी पतंग, कश्मीर की कली, अमानुष आदि |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफेयर पुरस्कार (तीन बार) सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म बनाने के लिए |
नागरिकता | भारतीय |
शक्ति सामंत (अंग्रेज़ी: Shakti Samanta, जन्म: 13 जनवरी, 1926 - मृत्यु: 9 अप्रैल 2009) एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक थे। शक्ति सामंत ने हावड़ा ब्रिज, अमर प्रेम, आराधना, कटी पतंग, कश्मीर की कली, अमानुष जैसी यादगार फ़िल्में बनाईं।
जीवन परिचय
शक्ति सामंत का जन्म 13 जनवरी, 1926 को बंगाल के बर्धमान नगर में हुआ था। उनके पिता एक इंजीनियर थे जिनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उस वक़्त शक्ति सामंत केवल डेढ़ साल के थे। पढ़ाई के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के बदायूँ में उनके चाचा के पास भेज दिया गया। देहरादून से अपनी 'इंटरमिडीयट' पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) जाकर 'इंजिनीयरिंग एंट्रान्स' की परीक्षा दी और अव्वल भी आये। लेकिन जब वो भर्ती के लिए गये तो उन्हें यह कह कर वापस कर दिया गया कि वह परीक्षा केवल बंगाल, बिहार और ओड़िशा के छात्रों के लिए थी और वो उत्तर प्रदेश से आये हुए थे। दुर्भाग्य यहीं पे ख़तम नहीं हुई। जब वो वापस उत्तर प्रदेश गये तो वहाँ पर सभी कालेजों में भर्ती की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी थी। उनका एक साल बिना किसी वजह के बरबाद हो गया। उनके चाचा के कहने पर शक्ति उनके साथ उनके काम में हाथ बँटाने लग गये। साथ ही साथ वो थियटर और ड्रामा के अपने शौक को भी पूरा करते रहे। एक रात जब वो थियटर के रिहर्सल से घर देर से लौटे तो उनके चाचा ने उन्हें कुछ भला बुरा सुनाया। इन्हें उनका वह बर्ताव पसंद नहीं आया और उन्होंने अपने चाचा का घर हमेशा के लिए छोड़ दिया।[1]
कॅरियर की शुरूआत
अपने चाचा के घर से निकलने के बाद शक्ति मुंबई के आस-पास काम की तलाश कर रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनका अंतिम मुक़ाम यह कला-नगरी ही है। उन्हें दापोली में एक 'ऐंग्लो हाई स्कूल' में नौकरी मिल गई। यहाँ से मुंबई स्टीमर से एक घंटे में पहुँची जा सकती थी। उस स्कूल के छात्र ज़्यादातर अफ़्रीकन मुस्लिम थे और 23-24 साल की आयु के थे, जब कि वो ख़ुद 21 साल के थे। शक्ति ने देखा कि स्कूल में छात्रों की चहुँमुखी विकास के लिए साज़-ओ-सामान का बड़ा अभाव है। उन्होंने स्कूल के प्राधानाचार्य से इस बात का ज़िक्र किया और छात्रों के लिए खेल-कूद के कई चीज़ें खरीदवाये। छात्र शक्ति के इस अंदाज़ से मुखातिब हुए और उनके अच्छे दोस्त बन गये। अपने चाचा के साथ काम करते हुए शक्ति को महीने के 3000 रुपये मिलते थे, जबकि यहाँ उन्हें केवल 130 रुपये मिलते। उसमें से 30 रुपये खर्च होते और 100 रुपय वो बचा लेते। फ़िल्म जगत में कुछ करने की उनकी दिली तमन्ना उन्हें हर शुक्रवार मुंबई खींच ले जाती। शुक्रवार शाम को वो स्टीमर से मुंबई जाते, वहाँ पर काम ढ़ूंढ़ते और फिर सोमवार की सुबह वापस आ जाते। वो कई फ़िल्म निर्माताओं से मिले, लेकिन वह राजनैतिक हलचल का समय था। देश के बँटवारे के बाद बहुत सारे कलाकार पाकिस्तान चले गये थे। फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए बुरा वक़्त चल रहा था। शक्ति अंत में जाकर दादा मुनि अशोक कुमार से मिले, जो उनके पसंदीदा अभिनेता भी थे, और जो उन दिनो 'बॉम्बे टॉकीज़' से जुड़े हुए थे। दादामुनि ने उन्हें इस शर्त पर सहायक निर्देशक के तौर पर 'बॉम्बे टॉकीज़' में रख लिया कि उन्हें कोई तनख्वाह नहीं मिलेगी, सिवाय दोपहर के खाने और चाय के। शक्ति राज़ी हो गये। उत्तर प्रदेश में रहने की कारण उनकी हिंदी काफ़ी अच्छी थी। इसलिए वहाँ पर फ़णी मजुमदार के बांग्ला में लिखे चीज़ों को वो हिंदी में अनुवाद किया करते। इस काम के लिए उन्हें पैसे ज़रूर दिये गये। कुछ दिनो के बाद शक्ति ने अशोक कुमार से अपने दिल की बात कही कि वो मुंबई दरसल अभिनेता बनने आये हैं। पर उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व को समझकर दादामुनि ने उनसे अभिनय में नहीं बल्कि फ़िल्म निर्माण के तक़नीकी क्षेत्र में हाथ आज़माने के लिए कहा।[1]
अभिनय और निर्देशन
शक्ति सामंत के दिल में अभिनय करने की चाहत शुरू से ही थी। वो फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल निभाकर इस शौक को पूरा कर लेते थे। उनके अनुसार उन्हे हर फ़िल्म में पुलिस इंस्पेक्टर का रोल दे दिया जाता था और एक ही संवाद हर फ़िल्म में उन्हें कहना पड़ता कि "फ़ॉलो कार नम्बर फ़लाना, इंस्पेक्टर फ़लाना स्पीकींग"। फ़िल्म जगत से जुड़े रहने की वजह से कई बड़ी हस्तियों से उनकी जान-पहचान होने लगी थी। दो ऐसे बड़े लोग थे गुरु दत्त और लेखक ब्रजेन्द्र गौड़। गौड़ साहब को फ़िल्म 'कस्तुरी' निर्देशित करने का न्योता मिला, लेकिन किसी दूसरी कंपनी की फ़िल्म में व्यस्त रहने की वजह से इस दायित्व को वो ठीक तरह से निभा नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्होंने शक्ति सामंत से उन्हें इस फ़िल्म में उनकी मदद करने को कहा। सामंत साहब ने इस काम के 250 रुपये लिए थे। किसी फ़िल्म से यह उनकी पहली कमाई थी। 'कस्तुरी' (1954) में संगीत पंकज मलिक का था।[1]
पहली फ़िल्म 'इंस्पेक्टर'
गीतकार और निर्माता एस. एच. बिहारी तथा लेखक दरोगाजी 'इंस्पेक्टर' नामक फ़िल्म के निर्माण के बारे में सोच रहे थे। फ़िल्म को 'प्रोड्यूस' करवाने के लिए वो लोग नाडियाडवाला के पास जा पहुँचे। नाडियाडवाला ने कहा कि इस कहानी पर सफल फ़िल्म बनाने के लिए मशहूर और महँगे अभिनेतायों को लेना पड़ेगा। बजट का संतुलन बिगड़ न जाये इसलिए उन लोगों ने इस फ़िल्म के लिए किसी नये निर्देशक को नियुक्त करने की सोची ताकी निर्देशक के लिए ज़्यादा पैसे न खर्चने पड़े। और इस तरह से शक्ति सामंत ने अपनी पहली फ़िल्म 'इंस्पेक्टर' का निर्देशन किया जो सन 1956 में पुष्पा पिक्चर्स के बैनर तले रिलीज़ हुई। फ़िल्म 'हिट' रही और इस फ़िल्म के बाद उन्हें फिर कभी पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। इस फ़िल्म के गाने भी ख़ासा पसंद किये गये। हेमन्त कुमार इस फ़िल्म के संगीतकार थे। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी होगा कि शक्ति सामंत ने काम तो पहले 'इंस्पेक्टर' का ही शुरु किया था लेकिन उनकी दूसरी फ़िल्म 'बहू' (1955) पहले प्रदर्शित हो गई।[1]
प्रसिद्ध फ़िल्में
निर्देशक के रूप में[2] | निर्माता के रूप में |
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सम्मान और पुरस्कार
शक्ति सामंत को तीन बार सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म बनाने के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। फ़िल्में थीं आराधना (1969), अमानुष (1975) और अनुराग (1972)।
निधन
अपनी कला और प्रतिभा के ज़रिये फ़िल्म जगत में पहचान बनाने वाले सुप्रसिद्ध निर्माता एवं निर्देशक शक्ति सामंत 9 अप्रैल, 2009 को मुंबई में 83 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह कर अपनी अनंत यात्रा पर चले गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 चटर्जी, सुजॉय। सफल 'हुई' तेरी आराधना...शक्ति सामंत पर विशेष (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्द युग्म आवाज़। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2012।
- ↑ शक्ति सामंत : फिल्मोग्राफी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 8 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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