पतझर -रांगेय राघव

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पतझर भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकारों और साहित्यकारों में गिने जाने वाले रांगेय राघव द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास 1 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हुआ था, इसका प्रकाशन 'राजपाल प्रकाशन' द्वारा किया गया। इस उपन्यास में एक युवक और युवती के प्रेम को आधार बनाया गया है।

  • पतझर के मौसम में वृक्ष के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनकी जगह नए पत्ते उग आते हैं। उसी प्रकार पुरानी विचारधाराएँ समय के साथ-साथ अपना महत्त्व खोने लगती हैं और उनके स्थान पर नई विचारधाराएँ जन्म लेती हैं।
  • रांगेय राघव के उपन्यास 'पतझर' की कथा में एक युवक और युवती के प्रेम को आधार बनाकर आदिम युग से आज तक की सभ्यता, संस्कृति को दिखाया गया है।
  • इस उपन्यास के माध्यम से प्रेम के संदर्भ में उठने वाले प्रश्नों को उठाया गया है, जैसे- क्या प्रेम शाश्वत है? क्या प्रेम अपना आधार आप ही है? और क्या प्रेम जीवन, परिवार और सन्तान की अपेक्षा नहीं रखता?
  • रांगेय राघव की रचनाओं में पात्र हमेशा जीवन्त होते हैं। चाहे वे दार्शनिक हों, डाक्टर हों, कलाकार हों या फिर किसान। यही कारण है कि 'पतझर' उपन्यास के पात्र पाठक से सहज ही तालमेल बैठा लेते हैं, जो लेखक की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
  • रांगेय राघव ने अपनी अन्य रचनाओं की तरह ही इस उपन्यास का कथानक भी आम जनजीवन से ही तलाशा है।
  • नई और पुरानी पीढ़ी का टकराव हर काल और हर समुदाय में आ रहा है। इसी कालातीत विषय को केन्द्र में रख कर 'पतझर' उपन्यास की कहानी आगे बढ़ती है।
  • प्यार के प्रति विशेष कर अंतर्जातीय प्रेम-संबंधों को लेकर समाज का दृष्टिकोण हमेशा से संकीर्ण रहा है। उनके खोखले आदर्शों और मान्यताओं के चलते उनकी संतानें किस तरह कुण्ठा और हताशा भरा जीवन जीने को विवश होती हैं, इसी को रांगेय राघव ने अपनी अनूठी शैली में अभिव्यक्त किया है।


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