टुक हिर्सो-हवा[1] को छोड़ मियां, मत देस-बिदेस फिरे मारा
क़ज़्ज़ाक[2] अजल[3] का लूटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर[4] क्या गौनें पल्ला सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग, धुआं और अंगारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा
ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद[5], गरी क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा
हर मंज़िल में अब साथ तेरे, ये जितना डेरा-डांडा है
जर, दाम, दिरम का भांडा है, बन्दूक, सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों-मुल्कों हांडा है
फिर हांडा है ना भांडा है, ना हलवा है ना भांडा है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
जब चलते-चलते रस्ते में, ये गोन तेरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर, फिर घास न चरने आवेगी
ये खेप जो तूने लादी है, सब हिस्सों में बट जावेगी
घी पूत, जंवाई, पोता क्या, बंजारिन पास न आवेगी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा
ये धूम-धड़क्का साथ लिये, क्यों फिरता है जंगल-जंगल
इक तिनका साथ न जावेगा, मौकूफ हुआ जब अन्न ओर जल
घर-बार अटारी, चौपारी, क्या खासा, तनसुख है मसलन
क्या चिलमन, पर्दे, फर्श नये, क्या लाल पलंग और रंगमहल
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
क्यों जी पर बोझ उठाता है, इन गोनों भारी-भारी के
जब मौत का डेरा आन पड़ा, तब दूने हैं व्योपारी है
क्या साज जड़ाऊ, जर, जेवर, क्या गोटे थान कनारी के
क्या घोड़े जीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अंबारी के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
हर आन नफा ओर टोटे हैं, क्यों मरता फिरता है बन-बन
टुक गाफिल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी, बांदी, दाई, दवा, क्या बन्दा, चेला नेक चलन
क्या मंदिर, मस्जिद, लाल कुंआ क्या खेती-बाड़ी फूलचमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब छोड़ चलेगा बंजारा।