भारोपीय भाषा परिवार
भारोपीय भाषा परिवार विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में सर्वप्रमुख भाषा परिवार है। इसके बोलने वालों की संख्या विश्व में सबसे ज़्यादा है। इस भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएँ संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, बंगाली, फ़ारसी, ग्रीक, लेटिन, अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, पुर्तग़ाली और इतालवी इत्यादि हैं।
विस्तृत क्षेत्र
भारत में आदिवासियों द्वारा भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएँ हिन्दी भाषी प्रदेशों में विशेष रूप से बोली जाती हैं। हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य भारोपीय भाषाओं के क्षेत्र गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। यहाँ पर पाये जाने वाले आदिवासी भी भारोपीय परिवार की ही भाषाएँ बोलते हैं। आदिवासी भाषाओं में भारोपीय भाषा परिवार की सबसे अधिक व्यवहृत भाषा 'भीली' है, जो मुख्य रूप से भीलों और उसके उपवर्गों द्वारा तो व्यवहार में लाई ही जाती है, पर भील क्षेत्र के गैर आदिवासी भी इसका प्रयोग करते हैं। 'भीली' बोलने वालों की संख्या सन 1961 में 24,39,611 आँकी गई थी।
भील, मीणा और मिलाला जहाँ भीली भाषा का प्रयोग करते हैं, वहीं भुंइयाँ, भुमिया, कुमार, धोबा और हल्बा छत्तीसगढ़ी बोलते हैं। अगरिया, बिंझवार और कोल भी हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। चकमा बाङ्मला भाषा का प्रयोग करते हैं तथा ब्रह्मपुत्र की घाटी की कुछ जनजातियाँ असमिया भाषा का प्रयोग करते हैं। भारोपीय भाषाओं को व्यवहृत करने वाले अधिकतर आदिवासी कोल समूह के हैं। इनके बाद द्रविड़ और मंगोल जाति के आदिवासियों का क्षेत्र आता है।
विशेषताएँ
भारोपीय भाषा परिवार की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- यह विश्व के बड़े भाग में बोला जाता है।
- अन्य परिवारों की तुलना में इसमें भाषाओं और बोलियों की संख्या बहुत अधिक है।
- साहित्य रचना के क्षेत्र में भी इस परिवार की भाषाएँ अग्रणी हैं।
- इस परिवार की भाषाओं तथा बोलियों का विश्लेषण विश्व में सर्वाधिक हुआ है।
- भाषा-विज्ञान के विकास में इस परिवार के विद्वानों, जैसे- पाणिनी, भर्तृहरि, ससूर, ब्लूमफ़ील्ड, चॉम्स्की आदि ने ही सर्वाधिक कार्य किया है।
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