नन्दा

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नन्दा (जन्म- 8 जनवरी, 1938, कोल्हापुर, ब्रिटिश भारत) भारतीय फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही हैं। उन्होंने हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में विशेष रूप से कार्य किया। अपने समय की ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों में नन्दा का नाम भी लिया जाता है। चेहरे पर भोलापन, बड़ी-बड़ी आँखें, गुलाबी होंठ, ये सब नन्दा की विशेषताएँ थीं। 60 और 70 के दशक की इस सुन्दर और मासूम अदाकारा ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरूआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी। बाद में वे सफल नायिका बनीं और फिर चरित्र अभिनेत्री। अपने संवेदनशील अभिनय से उन्होंने कई फिल्मों में अपनी भूमिकाओं को बखूबी जीवंत किया।

जन्म

नन्दा का जन्म 8 जनवरी, सन 1938 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। इनके पिता का नाम विनायक दामोदर था, जो मराठी फ़िल्मों के एक सफल अभिनेता और निर्देशक थे। विनायक दामोदर 'मास्टर विनायक' के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। नन्दा अपने घर में सात भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनको अपने पिता का प्यार अधिक समय तक नहीं मिल सका। उनकी बाल्यावस्था में ही पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद नन्दा के परिवार ने बड़ा कठिन समय व्यतीत किया।

फ़िल्मों में प्रवेश

नृत्य और अभिनय का शौक नन्दा को बचपन से ही था। जब वे मात्र छ: साल की थीं, तभी उनके पिता ने उन्हें अपनी मराठी फिल्म में काम करने को कहा था। पहले तो नन्दा ने इनकार कर दिया, लेकिन बाद में माँ के समझाने पर वे राजी हो गईं। इस प्रकार नन्दा ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की। उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1950 में आई फ़िल्म 'जग्गु' में बतौर बाल कलाकार के रूप में काम किया।

नायिका के रूप में प्रतिष्ठित

पिता की मृत्यु के बाद इनके घर की माली हालत काफ़ी खराब हो गई और नन्दा को अपने भाई-बहनों के साथ इनके चाचा के पास भेज दिया गया। इनके चाचा हिन्दी और मराठी फिल्मों के सुप्रसिद्ध फिल्मकार वी. शांताराम थे। उनके घर जाना भी एक अच्छा शगुन था। इनके चाचा ने नन्दा को प्रेरित किया और इस योग्य बनाया कि वे घर के हालात को संभाल सकें। उन्होंने ही पहली बार नन्दा को एक अच्छी और बड़ी भूमिका अपनी फिल्म "तूफान और दीया" में दी और शानदार ढंग से परदे पर पेश किया। यह फिल्म बेहद सफल रही। 'तूफान और दीया' की सफलता से नन्दा भारतीय सिनेमा में नायिका के रूप में प्रतिष्ठित हो गईं। इस फिल्म में काम करने और इसकी सफलता की जहाँ नन्दा की बेहद खुशी थी, वहीं इस बात का दुख भी था कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही पिता का देहांत हो गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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