लेखा देणां सोहरा, जे दिल सांचा होइ ।
उस चंगे दीवान में, पला न पकड़ै कोइ ॥1॥
साँच कहूं तो मारिहैं, झूठे जग पतियाइ ।
यह जग काली कूकरी, जो छेड़ै तो खाय ॥2॥
यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज ।
सांचै मारे झूठ पढ़ि, क़ाज़ीकरै अकाज ॥3॥
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जिस हिरदे में सांच है, ता हिरदै हरि आप ॥4॥
प्रेम-प्रीति का चोलना, पहिरि कबीरा नाच ।
तन-मन तापर वारहूँ, जो कोइ बोलै सांच ॥5॥
क़ाज़ीमुल्लां भ्रंमियां, चल्या दुनीं कै साथ ।
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथ ॥6॥
साईं सेती चोरियां, चोरां सेती गुझ ।
जाणैंगा रे जीवणा, मार पड़ैगी तुझ ॥7॥
खूब खांड है खीचड़ी, माहि पड्याँ टुक लूण ।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गल कटावे कूण ॥8॥