संविधान संशोधन- 93वाँ
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संविधान संशोधन- 93वाँ
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विवरण | 'भारतीय संविधान' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है। |
संविधान लागू होने की तिथि | 26 जनवरी, 1950 |
93वाँ संशोधन | 2006 |
संबंधित लेख | संविधान सभा |
अन्य जानकारी | 'भारत का संविधान' ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारत में संसद नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है। |
भारत का संविधान (93वाँ संशोधन) अधिनियम, 2006
- भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
- बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्रों और सामाजिक तथा शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए अन्य वर्गों के नागरिकों के लिए व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
- शिक्षा संस्थानों में, अनुसूचित जाति और जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा (4) के प्रवधानों के तहत की गई है।
- इस समय सहायता प्राप्त अथवा प्रशासन द्वारा संचालित संस्थानों में विशेष तौर पर व्यावसायिक शिक्षा के लिए जो सीटें उपलब्ध हैं वे गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थानों की तुलना में सीमित हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 30 की धारा (1) के प्रावधानों के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का अधिकार है।
- अल्पसंख्यक वर्गों को संस्थानों की स्थापना और उसके संचालन के बारे में जो अधिकार मिले हुए हैं, उनकी रक्षा करना आवश्यक है।
- इसके फलस्वरूप जिन संस्थानों को सरकार ने अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है, उन्हें इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
- सामाजिक और शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए वर्गों के नागरिकों, अर्थात अनुसूचित जाति व जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों को, अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर बाकी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिला देने के मामले में अनुच्छेद 15 के प्रावधानों का विस्तार किया गया है।
- अनुच्छेद 15 की नयी धारा (5) के तहत संसद तथा राज्यों की विधायिकाएँ ऊपर दिए गए उद्देश्य के लिए समुचित क़ानून बना सकती हैं।
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