छत्रपति साहू महाराज
छत्रपति साहू महाराज (जन्म- 26 जुलाई, 1874; मृत्यु- 10 मई, 1922) को एक सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रहे। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए। साहू महाराज के शासन के दौरान 'बाल विवाह' पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक 'सत्य शोधक समाज', फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।
जन्म परिचय
छत्रपति साहू महाराज का जन्म 26 जुलाई, 1874 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था।[1]
उनकी शिक्षा राजकोट के 'राजकुमार महाविद्यालय' और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति को अपना शत्रु समझने लगे। उसके राजपुरोहित तक ने कह दिया- आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।
विशेष योगदान
समाज की इस बुराई को दूर करने के लिए साहू जी ने 1911 ई. में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की। कोल्हापुर में सत्यशोधक समाज पाठशाला चलाई। इससे पहले 1873 में ज्योतिबा फुले भी महाराष्ट्र में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना कर चुके थे। जाति-पाति के विरुद्ध इसी आंदोलन को छत्रपति साहू महाराज ने अपनी रियासत से आगे बढ़ाया। 1919 ई. में छत्रपति साहू महाराज डॉ. अम्बेडकर के संपर्क में आए और एक वर्ष बाद मार्च 1920 में कोल्हापुर रियासत में डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में दलितों का एक सम्मेलन हुआ। उस सम्मेलन में छत्रपति साहू महाराज ने यह भविष्यवाणी की थी कि डॉ. अम्बेडकर भारत के प्रथम श्रेणी के नेता के रूप में चमक उठेंगे। छत्रपति साहू महाराज के सहयोग से 1920 में नासिक में ‘विद्या व सतीगृह’ की स्थापना हुई। इस अवसर पर उन्होंने कहा- जाति-भेद से ही जाति-द्वेष पैदा होता है। इसलिए सबसे पहले जाति-भेद समाप्त करना चाहिए। उन्होंने आदिवासियों को गाँवों में बसाने का कार्य किया। प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मुफ़्त करने का कानून बनाया।
निधन
पुनर्विवाह को भी कानूनी मान्यता दी। उनका समाज के किसी वर्ग से द्वेष नहीं था, परन्तु दलित वर्ग के प्रति उनके मन में गहरा लगाव था। छत्रपति साहू महाराज का 10 मई, 1922 ई. को निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ छत्रपति साहू महाराज 21 जुलाई (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2013, ।
बाहरी कड़ियाँ
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औपनिवेशिक काल