बीबी की मस्जिद

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मस्जिद की दीवार पर लिखीं क़ुरान की आयतें

बीबी की मस्जिद बुरहानपुर, मध्य प्रदेश में स्थित है। यह पुरानी भव्य जामा मस्जिद मोहल्ला इतवारा में सड़क के बाएं किनारे पर स्थित है। इसे फ़ारूक़ी वंश के बादशाह आजम हुमायूँ ने आदिल शाह फ़ारूक़ी के शासन काल में बेगम रूकैया की आज्ञा से बनवाया था। बीबी रूकैया गुजरात के बादशाह सुल्तान मेहमूद बेगड़ा के पुत्र मुजफ़्फ़र शाह गुजराती की सुपुत्री थी, जो आदिल शाह हुमायूँ से ब्याही गई थी।

स्थापत्य कला

यह मस्जिद 936 हिजरी (1540 ई.) में बनकर तैयार हुई थी। इस समय मोहम्मद शाह फ़ारूक़ी का शासन था। मस्जिद के निर्माण में गुजरात के होशियार कारीगरों का स्थापत्य कला कौशल का जादू दर्शकों को आश्चर्यचकित करता है। बीबी की मस्जिद अहमदाबाद की जामा मस्जिद के नमूने की है। इसके स्तंभों, मेहराबों में बेलबूटों को पत्थर पर सुंदरता से आकर्षक तरीके से काटा गया है। इसके निर्माण में भारतीय और इस्लामी शिल्प कला का सुंदर सामंजस्य दिखाई देता है। मस्जिद में लगभग डेढ़ हज़ार व्यक्ति एक साथ आसानी से नमाज़ पढ़ सकते थे। मस्जिद की उत्तर दीवार पर फ़ारसी-परसियन भाषा का एक शिलालेख लगा है, जिसमें मस्जिद का निर्माण वर्ष अंकित है।

मुग़ल काल में मस्जिद

बीबी की मस्जिद अब जर्जर अवस्था में है, परंतु इसकी बनावट दर्शाती है कि यह अपने समय की कैसी भव्य ईमारत रही होगी। इस मस्जिद में अरबी और फ़ारसी भाषा की शिक्षा देने का एक बहुत बड़ा मदरसा भी था, जिसमें मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में प्रसिद्ध विद्वान ज्ञानी यहाँ अध्यापन कार्य करते थे। इस मस्जिद के विशाल अहाते में एक हौज था, जो अब पाट दिया गया है। मुग़ल काल में मस्जिद में मिट्टी की पाईपों द्वारा 'ख़ून भंडारा' से पानी पहुंचाया जाता था, जिसके अवशेष आज भी देखनें को मिलते हैं। बताया जाता है कि इस मस्जिद के निर्माण के लिए असीरगढ़ की पहाड़ियों की खदानों से पत्थर मंगवाया गया था। इस मस्जिद के मुख्य द्वार के समीप चार हुजरे मठ हैं। इनकी आकर्षक छत गुम्बद के आकार की है। इससे मस्जिद की सुंदरता और भी बढ़ गई है।

देखभाल

अंग्रेज़ शासन काल में ही बीबी की मस्जिद कमजोर हो गई थी। आज यह पुरातत्त्व विभाग के अधीन है। मरम्मत और सफाई की व्यवस्था नियमित की जाती है। पुरातत्त्व विभाग द्वारा मस्जिद के विशाल मैदान में सुंदर उद्यान लगा दिया गया है, जिसमें सुंदर और आकर्षक फूलों के पौधें हैं, जिसमें मस्जिद की वीरानी में बहार आ गई है। यदि यह मस्जिद पुरातत्त्व विभाग में न दी गई होती तो कदाचित एक ऐतिहासिक यादगार गुम हो जाती और अन्य भवनों कीं भांति इसके खंडहर ही हमारी संपत्ति होते।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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