महमूद बेगड़ा
महमूद बेगड़ा गुजरात का छठाँ सुल्तान था। वह तेरह वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठा और 52 वर्ष (1459-1511 ई.) तक सफलतापूर्वक राज्य करता रहा। महमूद को ‘बेगड़ा’ की उपाधि 'गिरनार' जूनागढ़ तथा चम्पानेर के क़िलों को जीतने के बाद मिली थी। वह अपने वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। उसने गिरिनार के समीप ‘मुस्तफ़ाबाद’ की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया। चम्पानेर के समीप बेगड़ा ने 'महमूदबाद' की भी स्थापना की थी।
बेगड़ा की उपाधि
गुजरात में अहमदशाह के उत्तराधिकारियों ने भी प्रसार और शक्ति बढ़ाने की अपनी नीति जारी रखी। गुजरात का सबसे प्रसिद्ध सुल्तान महमूद बेगड़ा था। उसे 'बेगड़ा' इसलिए कहा जाता था कि उसने दो सबसे मज़बूत क़िलों- सौराष्ट्र और गिरनार[1] और दक्षिण गुजरात का चम्पानेर को जीता था। [2] गिरनार का राजा लगातार कर देता रहा था। लेकिन बेगड़ा ने सौराष्ट्र को अपने अधिकार में लेने की नीति के अंतर्गत उसे अपने राज्य में विलीन करना चाहा था। सौराष्ट्र समृद्ध प्रदेश था। उसकी भूमि की कई पट्टियाँ उपजाऊ थीं, और उसके उन्नत बंदरगाह थे। किन्तु दुर्भाग्य से सौराष्ट्र प्रदेश में लुटेरे और समुद्री डाकू भी बहुत थे जो व्यापारियों और जहाजों पर घात लगाये रहते थे। गिरनार का क़िला, सौराष्ट्र पर अधिकार बनाये रखने और सिंध के विरुद्ध अभियान के लिए बहुत उपयुक्त था।
गिरनार अभियान
महमूद बेगड़ा ने गिरनार को भारी फ़ौज लेकर घेर था। यद्यपि गिरनार के राजा के पास क़िले में बहुत कम बंदूकें थी, फिर भी उसने वीरता से मुक़ाबला किया, लेकन वह हार गया। कहा जाता है कि इस दुर्गम क़िले पर बेगड़ा की जीत राजद्रोह के कारण हुई। राजा के 'कामदार'[3] की पत्नी का बलपूर्वक अपहरण कर लिया गया था। वह अपनी स्वामी की हार के षड़यंत्र में सम्मिलित थी। क़िले पर बेगड़ा का अधिकार होने के बाद राजा ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और सुल्तान की सेना में उसे शामिल कर लिया गया। सुल्तान ने गिरनार की पहाड़ी के नीचे 'मुस्तफ़ाबाद' नाम का शहर बसाया। उसने वहाँ कई बड़ी-बड़ी इमारतें बनवाने को कहा। इस प्रकार वह गुजरात की दूसरी राजधानी बन गया।
द्वारका की विजय
अपने शासन के बाद के सालों में महमूद बेगड़ा ने द्वारका को फ़तेह किया। इसका प्रमुख कारण समुद्री डाकू थे, जो उस बंदरगाह से मक्का जाने वाले हज यात्रियों को लूटते थे। लेकिन इस अभियान में वहाँ के कई प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिरों को भी गिरा दिया गया। ख़ानदेश और मालवा को अपने अधिकार में करने की सुल्तान की योजना में चम्पानेर के क़िले का सामरिक महत्व था। वहाँ का शासक हालाँकि गुजरात के अधीन था, लेकिन मालवा से उसके निकट सम्बन्ध थे। चम्पानेर का पतन 1454 में हुआ। राजा और उसके साथियों ने कहीं से सहायता न मिलती देखकर जौहर किया और अन्तिम आदमी जिवित रहने तक लड़ते रहे। महमूद ने चम्पानेर के निकट 'मूहम्मदाबाद' नाम का नया शहर बसाया। उसने वहाँ कई सुन्दर बाग़ लगवाये और उसे अपना मुख्य निवास बनाया।
शासन व्यवस्था
महमूद बेगड़ा को पुर्तग़ालियों से भी संघर्ष करना पड़ा। वे पश्चिम एशिया के देशों के साथ गुजरात के व्यापार में हस्तक्षेप कर रहे थे। पुर्तग़ालियों की नौसेना शक्ति को कम करने के लिए उसने मिस्र के सुल्तान का साथ दिया। लेकिन उसमें उसे कोई सफलता नहीं मिली। महमूद बेगड़ा के लम्बे और शान्तिपूर्ण काल में व्यापार में उन्नति हुई। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक कारवाँ-सरायों और यात्री-सरायों का निर्माण करवाया। उसके राज्य में व्यापारी संतुष्ट थे, क्योंकि सड़कें यातायात के लिए सुरक्षित थीं। महमूद बेगड़ा को औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन विद्वानों की संगति में उसने बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके शासन काल में अनेक अरबी-ग्रंथों का फ़ारसी में अनुवाद किया गया। उसका दरबारी कवि 'उदयराज' था, जो संस्कृत का कवि था।
व्यक्तित्व
महमूद बेगड़ा का व्यक्तित्व आकर्षक था। उसकी दाढ़ी कमर तक पहुँचती थी और मूंछें इतनी लम्बी थीं कि वह उन्हें सिर के ऊपर बाँधता था। उस काल के यात्री 'बरबोसा' के अनुसार महमूद को बचपन से ही किसी ज़हर का सेवन कराया गया था। अतः उसके हाथ पर यदि कोई मक्खी बैठ जाती थी, तो वह फूलकर तुरन्त मर जाती थी। महमूद पेटू के रूप में भी प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि वह नाश्ते में एक कटोरा शहद, एक कटोरा मक्खन और सौ से डेढ़ सौ तक केले खाता था। वह दिन भर में 10 से 15 किलो भोजन खाता था। यह भी कहा जाता है कि रात के समय उसके तकिए के दोनों ओर गोश्त के समोसों से भरी तश्तरियाँ रख दी जाती थीं, ताकि भूख लगने पर वह तुरन्त खा सके। महमूद के विषय में सारे देश में तरह-तरह की कपोल कथाएँ प्रचलित थीं। एक इतालवी यात्री 'लुडोविको डी वारदेमा' उसके राज्य में आया था, उसने भी इन कथाओं का उल्लेख किया है।
निधन
महमूद बेगड़ा के समय में गुजरात राज्य अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गया था और देश के सर्वाधिक शक्तिशाली और सुशासित राज्यों में से एक बन गया था। बाद में भी यह इतना शक्तिशाली रहा कि मुग़ल शहंशाह हुमायूँ के लिए एक ख़तरा बन गया। 23 नवम्बर, 1511 को इसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र ख़लील ख़ाँ, 'मुजफ़्फ़रशाह द्वितीय' की पदवी ग्रहण कर सिंहासन पर बैठा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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