हल्द्वानी

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हल्द्वानी उत्तराखंड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित प्रसिद्ध नगर है। इसे कुमाऊँनी भाषा में हल्द्वेणी भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ 'हल्दू' प्रचुर मात्रा में पाया जाता था। यह नगर काठगोदाम के साथ मिलकर हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम बनाता है। 1891 ई. तक अलग नैनीताल ज़िले के बनने से पहले तक हल्द्वानी कुमाऊँ ज़िले का भाग था, जिसे अब अल्मोड़ा ज़िले के नाम से जाना जाता है। हल्द्वानी को "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" कहा जाता है। यह उत्तराखंड के सर्वाधिक जनसंख्या वाले नगरों में से है। आज यह सबसे बड़ा व्यापारिक शहर बन चुका है और इसका विस्तार दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। देहरादून, लखनऊ, और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सड़क मार्ग तथा दिल्ली, लखनऊ, औरआगरा से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा होने के कारण हल्द्वानी उत्तराखंड का एक प्रमुख व्यावसायिक केंद्र बन चुका है।

इतिहास

हल्द्वानी शहर की स्थापना सन 1834 में हुई थी। उस समय हल्द्वानी "पहाड़ का बाज़ार" नाम से जाना जाता था। तब यहाँ 'हल्दू' के पेड़ अधिक संख्या में पाये जाते थे, जिस कारण इस स्थान का नाम 'हल्द्वानी' पड़ा। मुग़ल इतिहासकारों ने इस बात का उल्लेख किया है की 14वीं शताब्दी में एक स्थानीय राजा ज्ञान चाँद, जो चाँद राज-वंश से सम्बंधित था, दिल्ली सल्तनत पधारा और उसे भाभर-तराई तक का क्षेत्र उस समय के सुल्तान से भेंट स्वरू मिला। बाद में मुग़लों द्बारा पहाड़ों पर चढ़ाई करने का प्रयास किया गया, लेकिन क्षेत्र की कठिन पहाड़ी भूमि के कारण वे इस कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सके।

==रेल यातायात की शुरुआत

वर्ष 1856 ई. में सर हेनरी रैम्से ने कुमाऊँ के आयुक्त का पदभार संभाला। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के दौरान इस क्षेत्र पर थोड़े समय के लिये रूहेलखंड के विद्रोहियों ने अधिकार कर लिया था। इसके पश्चात सर हेनरी रैम्से द्वारा यहाँ मार्शल लॉ लगा दिया गया और 1858 तक इस क्षेत्र को विद्रोहियों से मुक्त करा लिया गया। इसके बाद 1882 में रैम्से ने नैनीताल और काठगोदाम को सड़क मार्ग से जोड़ दिया और फिर 1883-1884 बरेली और काठगोदाम के बीच रेलमार्ग बिछाया गया। 24 अप्रैल, 1884 के दिन पहली रेलगाड़ी लखनऊ से हल्द्वानी पहुंची और बाद में रेलमार्ग काठगोदाम तक बढ़ा दिया गया।


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