कामवालियाँ,
पल से पहर होते समय में भी
चलती रहती है हौले-हौले
तब भी जब गर्मी में मेरे दालान में घुस आती है धूप
आग की लपटों जैसी
और तब भी जब सर्दी की रजाई ताने
मौसम सोता है कोहरे में
पानी के थपेड़ों के साथ
हवाओं की कनात में लिपटी भी दिखाई देती है।
ये कामवालियाँ,
बेजान दिनों पर सांस लेते समय सरकता है
फिर भी ये खिलती है हर सुबह
तिलचट्टे सी टीन छप्पर से निकल
विलीन हो जाती है बंगलों में
अपनी थकान और बुखार के साथ
मासूम भूख के लिए
रात को बिछ जाती है ग़मों की चादर ओढे,
इस तरह हर मौसम में
बहती रहती है ख़ामोशी से
सपाट चेहरे और दर्द के साथ
जिनके लिये कोई विशेष दिन नहीं होता
आठ मार्च जैसा सेलिब्रेट करने को।