भारतीय हिन्दी परिषद

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भारतीय हिन्दी परिषद की स्थापना 'प्रयाग विश्वविद्यालय' (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) के तत्कालीन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉक्टर धीरेन्द्र वर्मा की प्रेरणा और प्रयत्न से 3 अप्रैल, सन 1942 ई. को प्रयाग में हुई थी। हिन्दी के समस्त अंगों, भाषा, साहित्य तथा संस्कृति के अध्ययन तथा खोज को प्रोत्साहन देना और उसकी प्रगति का विशेष रूप से निरीक्षण करना इसका उद्देश्य है।

उद्देश्य

भारतीय विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, हिन्दी तथा हिन्दी प्रेमी एवं हिन्दी के उच्च अध्ययन, अध्यापन और अनुसन्धान में रुचि रखने वाले व्यक्ति इस संस्था के सदस्य हैं। मुख्यत: विश्वविद्यालय अध्यापकों एवं अनुसन्धानकर्ताओं की संस्था होने के नाते परिषद अपने सामान्य उद्देश्य के अंतर्गत उच्चतर हिन्दी अध्यापन और अनुसन्धान के नियोजन एवं संगठन तथा उच्चतर शिक्षा के सन्दर्भ में हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास, उन्नयन, प्रचार एवं प्रसार पर विशेष बल देती है। इसके निमित्त परिषद जिन साधनों का उपयोग करती है, वे निम्न प्रकार हैं-

वार्षिक अधिवेशन

'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' तथा अन्य विषयों की परिषदों की भाँति 'भारतीय हिन्दी परिषद' के भी वार्षिक सम्मेलन किसी विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में आयोजित होते हैं। अब तक परिषद के वार्षिक अधिवेशन प्रयाग, लखनऊ, आगरा, पटना, जयपुर, नागपुर, बनारस, रायगढ़ (सागर), दिल्ली, वल्लभविद्यानगर (अनन्द, गुजरात) कोलकाता, उज्जैन, हैदराबाद, पूना तथा ग्वालियर में हो चुके हैं। इन अधिवेशनों में महत्त्वपूर्ण अभिभाषणों के अतिरिक्त हिन्दी भाषा, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी विविध विषयों पर बातें भी होती हैं-

  1. विशेष गोष्ठियां होती हैं।
  2. समसामायिक तथा स्थायी महत्त्व के प्रस्ताव स्वीकृत होते हैं।
  3. शोध-निबन्धों का पाठ एवं उन पर विचार-विमर्श होता है।
  4. साहित्यिक योजनाएँ बनायी जाती हैं।
गोष्ठियाँ

अब तक हिन्दी भाषा और लिपि के विकास, प्रचार एवं प्रसार से सम्बन्धित, राजभाषा हिन्दी से सम्बद्ध, हिन्दी अध्यापन एवं पाठ्यक्रम से सम्बन्धित एवं साहित्यिक तथा शोध सम्बन्धी विषयों पर गोष्ठियाँ हो चुकी हैं। विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम के लिए के लिए आवश्यक साहित्य निर्माण के लिए तथा परीक्षाओं के हिन्दी माध्यम को कार्यरूप में परिणत करने के लिए इसने प्रयत्न किया है। यह परिषद हिन्दी के दिवंगत प्रसिद्ध कवियो और लेखकों की स्मृति-रक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करती रही है और समुचित रूप से स्मारक स्थापना की प्रेरणा भी देती रही है।

प्रकाशन कार्य

'भारतीय हिन्दी परिषद' एक त्रैमासिक पत्र 'हिन्दी अनुशीलन' का प्रकाशन करती है, जो अपने उच्च स्तरीय शोध-निबन्धों के कारण विद्वानों में अद्वितीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। इसके कई महत्त्वपूर्ण विशेषांक भी निकल चुके हैं-

  1. भाषा अंक
  2. धीरेन्द्र वर्मा विशेषांक
  3. शोध विशेषांक


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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