विश्व हिन्दी सम्मेलन

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विश्व हिन्दी सम्मेलन (अंग्रेज़ी:Vishwa Hindi Sammelan) हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी शामिल होते हैं। 'विश्व हिंदी सम्मेलन' की संकल्पना 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी। संकल्पना के फलस्वरूप 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के तत्वावधान में 'प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन' 10-12 जनवरी, 1975 को नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था।

उद्देश्य

  • सम्मेलन का उद्देश्य इस विषय पर विचार विमर्श करना था कि तत्कालीन वैश्विक परिस्थिति में हिंदी किस प्रकार सेवा का साधन बन सकती है| महात्मा गाँधी की सेवा भावना से अनुप्राणित हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पाकर विश्वभाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो। साथ ही यह किस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र 'वसुधैव कुटुंबकम' विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके 'एक विश्व एक मानव परिवार' की भावना का संचार करे।
  • सम्मेलन के आयोजकों को विनोबा भावे का शुभाशीर्वाद तथा केंद्र सरकार के साथ-साथ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि राज्य सरकारों का समर्थन भी प्राप्त हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय के प्रांगण में 'विश्व हिंदी नगर' का निर्माण किया गया। तुलसीदास, मीरां, सूरदास, कबीर, नामदेव और रैदास के नाम से अनेक प्रवेश द्वार बनाए गए। प्रतिनिधियों और अतिथियों के आवास का नाम 'विश्व संगम', 'मित्र निकेतन' 'विद्या विहार' और 'पत्रकार निवास' रखा गया। भोजनालयों के नाम भी 'अन्नपूर्णा', 'आकाश गंगा' आदि रखे गए।
  • 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' में काका साहेब कालेलकर ने हिन्दी भाषा के सेवा धर्म को रेखांकित करते हुए कहा था कि- "हम सबका धर्म सेवा धर्म है और हिन्दी इस सेवा का माध्यम है। सभी हिन्दी भाषियों ने हिन्दी के माध्यम से आज़ादी से पहले और आज़ाद होने के बाद भी समूचे राष्ट्र की सेवा की है और अब इसी हिन्दी के माध्यम से विश्व की, सारी मानवता की सेवा करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
  • हिन्दी भाषा की अंतर्निहित शक्ति से प्रेरित होकर भारत के नेताओं ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संवाद की भाषा बनाया। यह दिशा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने निर्धारित की, जिसका अनुपालन पूरे देश ने किया। स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले अधिकांश सेनानी हिन्दीतर प्रदेशों से तथा अन्य भाषा-भाषी थे। इन सभी ने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के सामर्थ्य और शक्ति को पहचाना और उसका भरपूर उपयोग किया। हिन्दी को भावनात्मक धरातल से उठाकर ठोस एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से और यह रेखांकित करने के उद्देश्य से कि हिन्दी केवल साहित्य की ही भाषा नहीं बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करके अग्रसर होने में एक सक्षम भाषा है, 'विश्व हिंदी सम्मेलनों' की संकल्पना की गई।
  • एक अन्य उद्देश्य इसे व्यापकता प्रदान करना था न कि केवल भावनात्मक स्तर तक सीमित करना। इस संकल्पना को 1975 में नागपुर में आयोजित 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' में मूर्तरूप दिया गया।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विश्व हिंदी सम्मेलन – पृष्ठभूमि (हिन्दी) विश्व हिंदी सम्मेलन की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 7 अगस्त, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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