छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-1
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-1
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | प्रथम |
कुल खण्ड | 13 (तेरह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह प्रथम खण्ड है। इसमें बताया गया है कि ॐकार सर्वोत्तम रस है।
- सर्वप्रथम उद्गाता 'ॐ' का उच्चारण करके सामगान करता है। वह बताता है कि समस्त प्राणियों और पदार्थों का रस अथवा सार पृथ्वी है।
- पृथ्वी का सार जल है, जल का रस औषधियां हैं, औषधियों का रस पुरुष है, पुरुष का रस वाणी है, वाणी का रस साम है और साम का रस उद्गीथ 'ॐकार' है। यह ओंकार सभी रसों में सर्वोत्तम रस है। यह परमात्मा का प्रतीक होने के कारण 'उपास्य' है।
- जिस प्रकार स्त्री-पुरुष के मिलन से एक-दूसरे की कामनाओं की पूर्ति होती है, उसी प्रकार इस वाणी, प्राण और ऋचा तथा साम (गायन) के संयोग से 'ॐकार' का सृजन होता है।
- 'ॐकार' अनुभूति-जन्य है, जिसे अक्षरों के गायन से अनुभव किया जाता है। यह अक्षरब्रह्म की ही व्याख्या है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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