मंदाकिनी आम्टे
मंदाकिनी आम्टे (अंग्रेज़ी: Mandakini Amte) महाराष्ट्र की एक डॉक्टर तथा सामाजिक कार्यकर्ता है। इन्हें अपने पति प्रकाश आम्टे के सम्मिलित रूप से 2008 में 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' दिया गया था।
अंग्रेज़ों की गुलामी से आजाद होकर हिन्दुस्तान विकास के रास्ते पर चल पड़ा और उसने बहुत कुछ हासिल भी कर लिया, लेकिन सदियों से जंगलों और दूरस्थ निर्जन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के हिस्से आजादी के साठ वर्षों बाद भी, न विकास आया, न बदलाव। उन्हें तो देशवासी के रूप में, भारत में रहते हुए भी भारतवासी की पहचान तक नहीं मिली, सुविधा की व्यवस्था तो दूर की बात है। माडिया गौंड़ जाति के आदिवासी भी इसी त्रासदी के शिकार हैं। यह पूर्वी महाराष्ट्र में आन्ध्र प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमा पर डेढ़ सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घने जंगल के बीच बसे हैं। अपने पिता बाबा आम्टे की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए प्रकाश आम्टे ने अपनी नवविवाहिता पत्नी मंदाकिनी आम्टे के साथ जो कि उन्हीं की तरह एक मेडिकल डिग्रीधारी डॉक्टर थीं, इस आदिवासी क्षेत्र में अपना ध्यान लगाया। वह उस क्षेत्र में अपना 'आनन्दवन आश्रम' बनाकर रहने लगे और उस क्षेत्र के आदिवासियों को चिकित्सा के साथ अन्य समझ तथा जानकारी देने लगे। वहाँ 1973 में बाबा आम्टे के साथ एल्बर्ट श्वित्ज ने आदिवासियों की स्वास्थ्य तथा शिक्षा की आवश्यकताओं के लिए लोक बिरादरी प्रकल्प पहले से खोला हुआ था। प्रकाश दम्पति भी उससे जुड़ गए। आम्टे दम्पति के उस सेवा कार्य के लिए उन्हें वर्ष 2008 का 'मैग्सेसे पुरस्कार' संयुक्त रूप से दिया गया।[1]
पति का साथ
सन 1974 में मंदाकिनी के पति प्रकाश आम्टे को उन्हें उनके पिता का सन्देश मिला कि वह माडिया गौड जाति के आदिवासियों के हित में उन्हीं आदिवासियों के क्षेत्र में पहुँचकर काम शुरू करें। पिता के इस आह्वान पर प्रकाश आम्टे ने अपनी नवविवाहिता पत्नी मंदाकिनी को साथ लिया और हेमाल्सका की ओर, अपनी शहरी प्रेक्टिस को भूलकर, चल पड़े। उनकी पत्नी मन्दाकिनी भी पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर थीं और उस समय एक सरकारी अस्पताल में काम कर रही थीं। वह भी पति के साथ अपनी नौकरी छोड़कर हेमाल्सका के लिए चल पड़ीं।
आदिवासियों की सेवा
हेमाल्सका में प्रकाश दम्पति ने एक बिना दरवाजे की कुटिया बनाई और वहाँ बस गए, जहाँ न बिजली थी, न निजता की गोपनीयता। वहाँ इन दोनों ने माडिया गौंड आदिवासियों के लिए चिकित्सा तथा शिक्षा देने का काम सम्भाला। ये लोग एक पेड़ के नीचे अपना दवाखाना लगाते और बस आग जलाकर गर्माहट पाने की व्यवस्था करते। वहाँ के आदिवासी बेहद शर्मीले तथा संकोची स्वभाव वाले थे और उनके मन में इन लोगों के प्रति विश्वास लगभग नहीं था। लेकिन प्रकाश तथा मन्दाकिनी ने हार नहीं मानी। उन दोनों ने उन आदिवासियों की भाषा सीखी और धीरे-धीरे उनसे संवाद बनाकर उनका विश्वास जीतना शुरू किया। इस क्रम में उनके कुछ अनुभव बहुत सार्थक रहे। इन लोगों की कुशल चिकित्सा से मिर्गी के रोग से ग्रस्त एक लड़का जो बुरी तरह आग में जल गया था, चमत्कारिक रूप से ठीक हो गया, इसी तरह से एक मरणासन्न आदमी जो दिमागी मलेरिया से पीढ़ित था, एकदम ठीक होकर जी उठा। इस तरह जब भी इनकी चिकित्सा से कोई आदिवासी स्वस्थ हो जाता तो वह चार और मरीज लेकर लौटता। इस क्रम से आदिवासियों के बीच प्रकाश तथा मन्दाकिनी अपनी जगह बनाते चले गए।[1]
1975 में स्विट्जरलैण्ड की वित्तीय सहायता से हेमाल्सका में एक छोटा-सा अस्पताल बनाया जा सका, जिसमें बेहतर चिकित्सा संसाधन उपलब्ध थे। इस अस्पताल में प्रकाश और मन्दाकिनी के लिए कुछ आपरेशन भी कर पाना सम्भव हो सका। इन लोगों ने मलेरिया, तपेदिक, पेचिश-दस्त के साथ आग से जले हुए लोगों का तथा साँप-बिच्छू आदि के काटे का इलाज भी बेहतर ढंग से शुरू किया। आदिवासियों के जीवन के अनुकूल इन्होंने यथासम्भव अस्पताल का काम-काज, अस्पताल के बाहर, पेड़ के नीचे किया और उसके लिए उनसे कुछ भी पैसा नहीं लिया गया। प्रकाश तथा मन्दाकिनी ने इस बात को समझा कि निरक्षरता के कारण ये आदिवासी वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों तथा दूसरे लालची लोगों के हाथों अक्सर ठगे जाते हैं। आम्टे दम्पति ने आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देनी शुरू की, तथा वन अधिकारियों से, इनकी तरफ से बातचीत करनी शुरू की, प्रकाश ने प्रयासपूर्वक भ्रष्ट वन अधिकारियों को वहाँ से हटवाया भी और साथ ही 1976 में हेमाल्सका में एक स्कूल की स्थापना की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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