शशिकला का परिचय
शशिकला का परिचय
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पूरा नाम | शशिकला |
जन्म | 3 अगस्त, 1933 |
जन्म भूमि | शोलापुर, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | ओम सहगल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'नौ दो ग्यारह', 'जंगली', 'हरियाली और रास्ता', 'ये रास्ते हैं प्यार के', 'गुमराह', 'हिमालय की गोद में', 'फूल और पत्थर', 'घर घर की कहानी', 'दुल्हन वही जो पिया मन भाये', 'सरगम', 'क्रांति', 'घर घर की कहानी', 'कभी खुशी कभी ग़म' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (दो बार), 'बंगाल जर्नलिस्ट अवार्ड' |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सन 1960 के दशक में शशिकला ने 'हरियाली और रास्ता', 'गुमराह', 'हमराही', 'फूल और पत्थर', 'दादी मां', 'हिमालय की गोद में', 'छोटी सी मुलाक़ात', 'नीलकमल', 'पैसा या प्यार' जैसी कई फ़िल्मों में बेहतरीन निगेटिव भूमिकाएं की थीं। |
अद्यतन | 17:58, 15 जून 2017 (IST)
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अभिनेत्री शशिकला का जन्म 3 अगस्त, 1933 को शोलापुर, महाराष्ट्र के एक परंपरावादी मराठी ‘जवळकर’ परिवार में हुआ था। उनके पिता कपड़े के कारोबारी थे और तीन भाई और तीन बहनों में वह माता-पिता की 5वीं संतान थीं। शशिकला के अनुसार, "वक़्त बदला, पिता जी ने मेरे चाचा के बेटे को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेजा, जिसकी वजह से ख़र्चे बेतहाशा बढ़ गए। उधर कारोबार में ज़बर्दस्त घाटा हो गया और हम सड़क पर आ गए। मैं सार्वजनिक गणेशोत्सव के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी और एक अच्छी अभिनेत्री मानी जाती थी। इसलिए लोगों की सलाह पर हमारा परिवार मुंबई चला आया ताकि मैं फ़िल्मों में काम करके पैसा कमा सकूं।" ये आज़ादी से कुछ साल पहले की बात है। शशिकला की उम्र उस वक़्त क़रीब 11 साल थी।[1]
फ़िल्मी शुरुआत
उस दौर में सिनेमा में उर्दू का बोलबाला था। शशिकला के मुताबिक़ उर्दू तो बहुत दूर की बात, उनकी हिंदी भी साफ़ नहीं थी। और फिर उम्र भी ऐसी कि न छोटों में न बड़ों में। ऐसे में काम मिलना आसान नहीं था। उन दिनों नूरजहां फ़िल्म 'ज़ीनत' में अपनी बेटी के रोल के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थीं। शशिकला उनसे मिलीं, इंटरव्यू दिया लेकिन ज़ुबान की वजह से पास नहीं हो पाईं। फ़िल्म 'ज़ीनत' के निर्माता-निर्देशक नूरजहां के शौहर सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी थे। उन्होंने शशिकला को फ़िल्म की क़व्वाली 'आहें ना भरीं शिक़वे ना किए' में बैठाने का फ़ैसला किया, जिसमें शशिकला का साथ आगे चलकर श्यामा के नाम से मशहूर हुईं अभिनेत्री बेबी ख़ुर्शीद और एक अन्य लड़की शालिनी ने दिया था।
शशिकला के अनुसार -"उन दिनों स्क्रीन टेस्ट इसी तरह लिया जाता था। शौक़त साहब ने वादा किया था कि हम तीनों में से जो भी लड़की उस टेस्ट में सबसे अच्छा काम करेगी उसे 20 रुपए इनाम मिलेगा, और वो इनाम मैंने जीता। उन 20 रुपयों में हम सभी भाई-बहनों के लिए नए कपड़े ख़रीदे गए, 2 साड़ियाँ मेरे लिए आयीं और बहुत लंबे अरसे बाद घर में दीवाली मनाई गयी। शौक़त साहब ने तीन साल का कांट्रेक्ट किया, जिसमें पहली शर्त उर्दू सीखने की थी। ज़ुबान की वजह से फ़िल्म 'ज़ीनत' में नूरजहां की बेटी का रोल न मिल पाने का दु:ख था, इसलिए मैंने क़सम खाई कि अब मैं अपनी मातृभाषा ‘मराठी’ नहीं बोलूंगी। इसीलिए आज मेरी ज़ुबान इतनी साफ़ है और हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी और गुजराती पर मेरी बराबर की पकड़ है।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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