कीटों का जनन तंत्र

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 14 जनवरी 2018 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
कीट विषय सूची
कीटों का जनन तंत्र
विभिन्न प्रकार के कीट
विभिन्न प्रकार के कीट
विवरण कीट प्राय: छोटा, रेंगने वाला, खंडों में विभाजित शरीर वाला और बहुत-सी टाँगों वाला एक प्राणी हैं।
जगत जीव-जंतु
उप-संघ हेक्सापोडा (Hexapoda)
कुल इंसेक्टा (Insecta)
लक्षण इनका शरीर खंडों में विभाजित रहता है जिसमें सिर में मुख भाग, एक जोड़ी श्रृंगिकाएँ, प्राय: एक जोड़ी संयुक्त नेत्र और बहुधा सरल नेत्र भी पाए जाते हैं।
जातियाँ प्राणियों में सबसे अधिक जातियाँ कीटों की हैं। कीटों की संख्या अन्य सब प्राणियों की सम्मिलित संख्या से छह गुनी अधिक है। इनकी लगभग दस बारह लाख जातियाँ अब तक ज्ञात हो चुकी हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग छह सहस्त्र नई जातियाँ ज्ञात होती हैं और ऐसा अनुमान है कि कीटों की लगभग बीस लाख जातियाँ संसार में वर्तमान में हैं।
आवास कीटों ने अपना स्थान किसी एक ही स्थान तक सीमित नहीं रखा है। ये जल, स्थल, आकाश सभी स्थानों में पाए जाते हैं। जल के भीतर तथा उसके ऊपर तैरते हुए, पृथ्वी पर रहते और आकाश में उड़ते हुए भी ये मिलते हैं।
आकार कीटों का आकार प्राय: छोटा होता है। अपने सूक्ष्म आकार के कारण वे वहुत लाभान्वित हुए हैं। यह लाभ अन्य दीर्घकाय प्राणियों को प्राप्त नहीं है।
अन्य जानकारी कीटों की ऐसी कई जातियाँ हैं, जो हिमांक से भी लगभग 50 सेंटीग्रेट नीचे के ताप पर जीवित रह सकती हैं। दूसरी ओर कीटों के ऐसे वर्ग भी हैं जो गरम पानी के उन श्रोतों में रहते हैं जिसका ताप 40 से अधिक है।

जननेंद्रियाँ

कीटों में नर और मादा दोनों प्रकार की जननेंद्रियाँ कभी-भी एक ही कीट में नहीं पाई जाती हैं। नर कीट मादा कीट से प्राय: छोटा होता है। नर में एक जोड़ी वृषण होता है और प्रत्येक वृषण में शुक्रीय नलिकाएँ होती हैं, जो शुक्राणु का उत्पादन करती हैं। वृषण से शुक्राणु शुक्र वाहक में पहुँच जाते हैं और अंत में स्खलनीय[1]) नलिका में पहुँचते हैं, जो शिशन में खुलती है। कभी-कभी शुक्र वाहक, किसी निश्चित स्थान में फैल जाते हैं और शुक्राणु जमा करने के लिए शुक्राशय बन जाते हैं। किन्हीं-किन्हीं में सहायक[2] ग्रंथियाँ भी पाई जाती हैं। मादा में एक जोड़ी अंडाशय होता है, प्रत्येक में अंड नलिकाएँ होती हैं, जिनमें विकसित होते हुए अंडे पाए जाते हैं।

शुक्रकोष

अंड नलिकाओं की संख्या विभिन्न जाति के कीटों में भिन्न-भिन्न हो सकती है। परिपक्व होकर अंडे अंडवाहिनी में आ जाते हैं और वहाँ से सामान्य अंडवाहिनी[3] में पहुँचकर मादा के जनन संबंधी छिद्र द्वारा बाहर निकल जाते हैं, प्राय: एक शुक्रधानी शुक्राणु जमा करने के लिये और एक या दो जोड़ी सहायक ग्रंथियाँ भी उपस्थित रहती हैं। नर की सहायक ग्रंथियाँ एक द्रव पदार्थ उत्सर्जित करती हैं, जो शुक्राणुओं में मिश्रित हो जाता है। कभी-कभी शुक्राणुओं को कोषाकार पैकेट बन जाता है, जो शुक्रकोष[4] कहलाता है। मादा की सहायक ग्रंथियाँ का स्राव अंडों को एक साथ जोड़ता है, या पत्तियों अथवा अंडों को अन्य वस्तुओं से चिपकाता है। कभी-कभी इस स्राव से अंडों को रखने के लिए थैली भी बन जाती है, जैसे तेलचट्टा में बन जाती हैं। बर्रे की ये ग्रंथियाँ विष उत्पन्न करती हैं, जो डंक मारते समय शिकार के शरीर में प्रविष्ट कर जाता है। अंड संसेचन दोनों लिंगों के संयोग पर निर्भर है। कुछ कीटों में यह जीवन में कई बार हो सकता है।

अनिषेक जनन

यह साधारण रूप से मैथुन और शुक्राणु द्वारा अंडे के संसेचन पर निर्भर करता है। अधिकतर कीट अंडे देते हैं, जिनसे कालांतर में बच्चे निकलते हैं, कुछ कीट अंडे का शुक्राणु से संसेचन नहीं करते हैं। इस प्रकार का जनन अनिषेक जनन[5] कहलाता है। कुछ जातियों में यह एक अनूठी और कभी कभी होने वाली घटना होती है, तथा कुछ शलभों में असंसेचित[6] अंडों से नर और मादा दोनों ही उत्पन्न होती हैं। सामाजिक मधुमक्खियों में अनिषेक जनन बहुधा होता है, किंतु असंसेचित अंडों से केवल नर ही उत्पन्न होते हैं।

चक्रीय अनिषेक जनन

कुछ स्टिक[7] कीटों में असंसेचित अंडों से अधिकतर मादा ही उत्पन्न होती हैं और नर बहुत ही कम होती हैं। साफिलाइीज़ में नरों की उत्पत्ति संभवत: होती ही नहीं है, इस कारण संसेचन हो ही नहीं सकता है। केवल अनिषेक जनन होता है। द्रुमयूका[8] में चक्रीय अनिषेक जनन होता है, अर्थात् असंसेचित और संसेचित अंडों में उत्पादन नियमानुसार क्रम से होता रहता है।

पीडोज़ेनेसिस

कुछ जातियों में अपरिपक्व[9] कीट भी जनन करते हैं। इस घटना को पीडोज़ेनेसिस[10] कहते हैं। माइएस्टर[11] कीट के डिंभ अन्य डिंभों का उत्पादन करते हैं और इस प्रकार कई पीढ़ी तक उत्पादन होता रहता है। इसके पश्चात् इनमें से कुछ डिंभ परिवर्धित होकर प्रौढ़ नर और मादा बन जाते हैं, जो परस्पर मैथुन के पश्चात् डिंभ उत्पन्न करते हैं। इन डिंभों से पहले की भांति फिर उत्पादन आरंभ हो जाता है। बहुभ्रूणता[12] का अर्थ है। एक अंडे से एक से अधिक कीटों का उत्पन्न होना। इस प्रकार का उत्पादन पराश्रयी कला पक्षों में पाया जाता है। प्लैटिगैस्टर हीमेलिस[13] के कुछ अंडों में से दो डिंभ उत्पन्न होते हैं, किंतु किसी किसी पराश्रयी कैलसिड[14] के प्रत्येक अंडे से लगभग एक सहस्र तक डिंभ उत्पन्न हो जाते हैं।

मैथुन

कुछ कीटों में मैथुन केवल एक ही बार होता है। तत्पश्चात् मृत्यु हो जाती है, जैसा एफिमेरॉप्टरा[15] गण के कीटों में। मधुमक्खी की रानी यद्यपि कई वर्ष तक जीवित रहती है, तथापि मैथुन केवल एक ही बार करती है और एक ही बार में इतनी पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु पहुँच जाते हैं कि जीवन भर इसके अंडों का संसेचन करते रहते हैं। मैथुन के पश्चात् नर की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। बहुत से कीटों के नर जीवन में कई बार पृथक-पृथक् मादाओं से मैथुन करते हैं और बहुत से कंचुक पक्षों के नर और मादा दोनों बार-बार मैथुन करते हैं।

अंडा

अंडे साधारणत: बहुत छोटे होते हैं। फिर भी अंडे को देखकर यह बतलाना प्राय: संभव होता है कि अंडे से किस प्रकार का कीट निकलेगा। बहुधा यह बात बहुत महत्व रखती है, क्योंकि इससे हानिकारक कीटों की हानिकारक दशा के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है। इसलिए अंडों के आकार, रूप और रंग तथा अंडे रखने के स्थान और विधि का ध्यान रखना आवश्यक है। अंडे समतल, शल्क्याकार, गोलाकार, शंक्वाकार तथा चौड़े हो सकते हैं। अंडे का ऊपरी आवरण पूर्ण रूप से चिकना या विभिन्न प्रकार के चिह्नों वाला होता है। अंडे पृथक-पृथक् या समुदायों में रखे जाते हैं। तेलचट्टे[16] के अंडे डिंभ कोष्ठ[17] के भीतर रहते हैं। जलवासी कीटों के अंडे चिपचिपे लसदार पदार्थ से ढके रहते हैं। अंडे में वृद्धि करते हुए भ्रूण के पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन में पाया जाता है। जो योक[18] कहलाता है।

अंडरोपण

अंडारोपण विभिन्न प्रकार से होता है। अंडे ऐसे स्थानों पर रखे जाते हैं, जहाँ उत्पन्न होने वाली संतान की तत्कालीन आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें। कुछ जातियों की मादाएँ नीचे उड़ान उड़ती हैं, अपने अंडे अनियमित रीति से गिराती चली जाती हैं। बहुत से शलभों की मादाएँ, जिनके डिंभ घास या उसकी जड़ खाते हैं, उड़ते समय अपने अंडे घास पर गिराती चली जाती हैं। साधारणत: अंडे ऐसे पौधों पर रखें, पौधों के ऊतकों में प्रविष्ट कर दिए जाते हैं, जिनको डिंभ खाते हैं, जैसे कुछ प्रकार के टिड्डों में होता है। कुछ कीट अपने अंडे मिट्टी में रखते हैं। पराश्रयी जातियों के कीट अपने अंडों को उन पोषकों के ऊपर या भीतर रखते हैं, जो उनकी संतानों का पोषण करते हैं।

शक्ति

विभिन्न जातियों की मादाओं के अंडों की संख्या विभिन्न होती है। द्रुमयूका की कुछ जातियों की मादाएँ शीतकाल में केवल एक ही बड़ा अंडा रखती हैं। घरेलू मक्खी अपने जीवन में 2,000 से अधिक अंडे रखती है। दीमक की रानी में अंडा रखने की शक्ति सबसे अधिक होती है। यह प्रति सेकंड एक अंडा दे सकती है और अपने 6 से 12 वर्ष तक के जीवन में 10,00,000 अंडे देती है।
भ्रूण जब पूर्ण रीति से विकसित हो जाता है और अंडे से बाहर निकलने को तैयार होता है, तब शुक्ति में पहले से बनी हुई टोपी को अपने अंडा फोड़ने वाले काँटों से हटाकर बाहर निकल आता है। कुछ कीटों में आरंभ में भ्रूण वायु निगलकर अपना विस्तार इतना बढ़ा लेते हैं कि शुक्ति टूट जाती है। बच्चे को बाहर निकलने में उसकी पेशियाँ सहायता करती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Ejaculator
  2. accessory
  3. Common Oviduct
  4. स्पमैटोफोर-Spermatophore
  5. Parthenogenesis
  6. अनफर्टिलाइज्ड-unfertilized
  7. Stick
  8. Aphides
  9. Immature
  10. Paedogenesis
  11. Miastor
  12. पॉलिएंब्रियोनी-Polyembryony
  13. Platigastor hiemalis
  14. Chalcid
  15. Ephimeroptero
  16. Cockroach
  17. Ootheca
  18. Yolk

संबंधित लेख

कीट विषय सूची