सिक्किम अधिराज्य
भारत की आजादी के पहले सिक्किम को ब्रिटिश सरकार से विशेषाधिकार प्राप्त थे। अंग्रेज़ों के जाने के बाद ये विशेषाधिकार समाप्त हो गए। उसके बाद शासक ताशी नामग्याल स्थानीय पार्टियों और लोकतंत्र समर्थक दलों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद सिक्किम को एक विशेष संरक्षित राज्य का दर्जा दिलाने में सफल हो गए।
भारतीय कार्यवाही
6 अप्रैल, 1975 में जब सिक्किम भारत का अभिन्न अंग नहीं था, वहां के राजा चोग्याल भारत, नेपाल, भूटान व चीन के बीचोंबीच स्थित सिक्किम को एक स्वतंत्र देश मानते थे। वास्तव में यह एक रियासत थी, जिसका अंग्रेजों के जाने के बाद भारत में विलय नहीं हो पाया था। ऐसे में 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक निर्णायक फैसला लिया। 6 अप्रैल की सुबह सिक्किम के राजा चोग्याल जैसे ही उठे, उन्हें अपने महल के आसपास भारतीय सेना के ट्रकों की आवाज सुनाई दी। वे तेजी से खिड़की की ओर भागे, लेकिन तब तक भारतीय सेना के 5000 सैनिकों ने राजमहल को पूरी तरह घेर लिया था। जल्द ही सैन्य मुठभेड़ शुरू हो गई, जो ज्यादा लंबी नहीं चली। राजमहल की सुरक्षा में तैनात 243 गार्डों को भारतीय सैनिकों ने महज आधे घंटे की कार्रवाई में काबू कर लिया।
भारत में विलय
सिक्किम सन 1642 में वजूद में आया, जब फुन्त्सोंग नामग्याल को सिक्किम का पहला चोग्याल (राजा) घोषित किया गया था। नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षुओं ने राजा घोषित किया था। इस तरीके से सिक्किम में राजतन्त्र की शुरुआत हुई। जिसके बाद नामग्याल राजवंश ने 333 सालों तक सिक्किम पर राज किया।
भारत ने 1947 में स्वाधीनता हासिल की। इसके बाद पूरे देश में सरदार पटेल के नेतृत्व में अलग-अलग रियासतों का भारत में विलय किया गया। इसी क्रम में 6 अप्रैल, 1975 की सुबह सिक्किम के चोग्याल को अपने राजमहल के गेट के बाहर भारतीय सैनिकों के ट्रकों की आवाज़ सुनाई दी। भारतीय सेना ने राजमहल को चारों तरफ़ से घेर रखा था। सेना ने राजमहल पर मौजूद 243 गार्डों पर तुरंत काबू पा लिया और सिक्किम की आजादी का खात्मा हो गया। इसके बाद चोग्याल को उनके महल में ही नज़रबंद कर दिया गया।
इसके बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया। जनमत संग्रह में अधिकांश लोगों ने भारत के साथ जाने की वकालत की। जिसके बाद सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल, 1975 को लोकसभा में पेश किया गया। उसी दिन इसे 299-11 के मत से पास कर दिया गया। वहीं राज्यसभा में यह बिल 26 अप्रैल को पास हुआ और 15 मई, 1975 को जैसे ही तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए, नामग्याल राजवंश का शासन समाप्त हो गया।[1]
विलय का विरोध
जब सिक्किम के भारत में विलय की मुहिम शुरू हुई तो चीन ने इसकी तुलना 1968 में रूस के चेकोस्लोवाकिया पर किए गए आक्रमण से की। जिसके बाद इंदिरा गांधी ने चीन को तिब्बत पर किए उसके आक्रमण की याद दिलाई। हालांकि, भूटान इस विलय से खुश हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके बाद से उसे सिक्किम के साथ जोड़ कर देखने की संभावना खत्म हो गईं। नेपाल ने भी सिक्किम के विलय का जबरदस्त विरोध किया।
विवाद की जड़
दरअसल, भारत-चीन के बीच कुल 3500 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। सीमा विवाद को लेकर दोनों देश 1962 में युद्ध लड़ चुके हैं। मगर सीमा पर तनाव आज भी जारी है। यही वजह है कि अलग-अलग हिस्सों में अक्सर भारत-चीन के बीच सीमा विवाद उठता रहा है। फिलहाल जो सीमा विवाद है, वह भारत-भूटान और चीन सीमा के मिलान बिन्दु से जुड़ा हुआ है। सिक्किम में भारतीय सीमा से सटा डोकलाम पठार है, जहां चीन सड़क निर्माण कराने पर आमादा है। चीन इस इलाके को अपना मानता है। लेकिन भारतीय सैनिकों ने चीन की इस कोशिश का विरोध किया था। डोकलाम पठार का कुछ हिस्सा भूटान में भी पड़ता है। भूटान ने भी चीन की इस कोशिश का विरोध किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आजादी के 28 साल बाद भारत का राज्य बना सिक्किम (हिन्दी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2018।
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