खोनोमा
खोनोमा (अंग्रेज़ी: Khonoma) नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 20 किलोमीटर दूर स्थित प्रकृति से सजा एक गांव है, जहां से मनमोहक धान के खेत और हरे-भरे जंगलों से ढकी पहाड़ियां दिखाई देती हैं। अक्सर 'योद्धा गांव' के रूप में वर्णित खोनोमा ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान अपने उग्र प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। इस गांव में बहुत सारा इतिहास लिखा गया है। इसके अलावा खोनोमा वन्यजीव संरक्षण में अपनी पहल के लिए भी जाना जाता है। सन 1998 में यहाँ प्रकृति संरक्षण और ट्रैगोपैन अभयारण्य की स्थापना लुप्तप्राय ब्लिथ ट्रैगोपैन और अन्य वन्यजीवों और दुर्लभ पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में बचाने के लिए की गई थी।
ग्रीन विलेज
भारत की ज़्यादातर मेट्रो सिटीज़ प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग का शिकार हैं। राजधानी दिल्ली ने तो ऐसा भी वक्त देखा, जब सड़कों पर प्रदूषण की एक मोटी चादर बिछी हुई थी और लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया था। लेकिन हमारे देश में ही एक ऐसी जगह है, जहां हरियाली है और लोग स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं। यह सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का पहला ‘ग्रीन विलेज’ यानी 'हरित गांव' है। इस ख़ूबूसरत गांव का नाम है- 'खोनोमा'। यह नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 20 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। चारों ओर हरियाली से घिरा ये गांव लगभग 700 साल पुराना है। यहां करीब 600 घर होंगे और लगभग 3000 की आबादी रहती है।[1]
न कटता है वृक्ष और न ही शिकार
चारों ओर आसमान से बाते करते हुए पहाड़ों के दृश्य से किसी का मन ऊब ही नहीं सकता। किसी लैंडस्केप से कम नहीं है ये एशिया का ग्रीन विलेज। खोनोमा ‘अंगमी' आदिवासियों का घर है। ये ट्राइबल ग्रुप अपनी बहादुरी और मार्शल आर्ट्स कौशल के लिए जाना जाता है। खोनोमा गांव अपने हरे-भरे जंगलों और खेती की पारंपरिक तकनीक के लिए भी मशहूर है। हरित गांव का मॉडल बन चुका ये गांव, सतत विकास के सिधान्तों को कई साल पहले ही अपना चुका है। खेती समेत इस गांव ने 90 के दशक में ही वन कटाई और शिकार जैसी क्रियाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।
इस गांव में कोई भी व्यक्ति पेड़ नहीं काटता और नहीं ही शिकार करता है। इस आदिवासी समूह से सीखने के लिए बहुत कुछ है; क्योंकि एक समय था, जब शिकार इनकी परंपरा का एक अहम हिस्सा था लेकिन दिसम्बर 1998 में इस पर पूर्णत: प्रतिबन्ध के बाद खोनोमा का जंगल और 20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को गांव की पंचायत ने ‘खोनोमा नेचर कंज़रवेशन एंड त्रगोपन सैंक्चुअरी नाम से अलग कर दिया। इस कदम को तब उठाया गया, जब गांव वालों ने हंटिंग कॉम्पीटीशन के चलते एक हफ़्ते में ही करीब 300 विलुप्त होने की कगार पर खड़े ब्लिथ ट्रेगोपन (Blyth’s Tragopan) की हत्या कर दी। इतने बड़े पैमाने पर इन पक्षियों की हत्या ने वन जीवन संरक्षणवादियों और गांव के बड़े-बुजुर्गों को कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
इसके ख़िलाफ़ लगे बैन से गांव वालों की जीवन-शैली में बहुत बदलाव आया। शुरुआत में थोड़ी परशानी जरूर हुई थी लेकिन आज यहां लोगों ने शिकार छोड़ संरक्षण के रास्ते को तवज्जों देना सीख लिया है। यहां लकड़ी के लिए लोग पेड़ों को ना काटकर सिर्फ उनकी शाखाओं को ट्रिम करते हैं और उसी से फ़र्नीचर आदि ज़रूरत की वस्तु का निर्माण करते हैं। वर्तमान में खोनोमा के निवासी सक्रिय रूप से पेड़ और जानवरों का संरक्षण कर रहे हैं। आज यहां बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं और लोग उन्हें अपना गांव और परंपरा बढ़-चढ़ कर दिखाते हैं। साथ ही अपने घर में रहने के लिए आश्रय भी देते हैं।[1]
अंग्रज़ों से लोहा
करीब 100 साल पहले अंगमी आदिवासियों ने अंग्रज़ों से लोहा लिया था। आधुनिक हथियारों से लैस जब ब्रिटिश आर्मी ने नागालैंड के इन योद्धाओं पर हमला किया, तो इन्होंने इस हमले का ज़बरदस्त जवाब दिया। ट्राइबल ग्रुप अपनी रणनीतिक स्किल्स और मार्शल आर्ट्स स्किल की बदौलत इस लड़ाई में ब्रिटिश आर्मी को भारी नुकसान पहुंचाया। साथ ही 1830 और 1880 तक इन्होंने ब्रिटिश राज को अपने गांव में घुसने नहीं दिया। इसके बाद भले ही ब्रिटिश अपना राज कायम करने में कामयाब हो गए, लेकिन इस समूह ने इतिहास में अपना नाम और चुपचाप अपनी ज़मीन न देने के लिए इतिहास में रच दिया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 एशिया का पहला ग्रीन विलेज, नागालैंड का 'खोनोमा', जहां एक भी पेड़ नहीं काटा जाता (हिंदी) indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 18 सितम्बर, 2023।
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