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'''रघुजी भोंसले द्वितीय''', [[रघुजी भोंसले|रघुजी भोंसले प्रथम]] का पौत्र था, जिसने 1788 ई.- 1816 ई. तक राज्य किया। वह द्वितीय मराठा युद्ध में भी सम्मिलित भा, किन्तु असई (अगस्त 1803 ई.) और आरगाँव (नवम्बर 1803 ई.) के युद्धों में पराजित होने के कारण दिसम्बर, 1803 ई. में उसे [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से सन्धि करनी पड़ी, जो [[देवगाँव की सन्धि]] के नाम से विख्यात है। सन्धि की शर्तों के अनुसार उसे [[भारत]] के पूर्वी समुद्रतट के [[कटक]] और [[बालासोर]] ज़िले तथा मध्य भारत में वारधा नदी के पश्चिम का अपने राज्य का समस्त भू-भाग अंग्रेज़ों को देना पड़ा। यद्यपि उन्होंने अपने तथा निजाम और [[पेशवा]] के बीच होने वाले विवादों में अंग्रेज़ों की मध्यस्थता स्वीकार कर ली। साथ ही अंग्रेज़ों की पूर्व अनुमति के बिना किसी यूरोपीय को अपने यहाँ नौकर न रखने और [[नागपुर]] में अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखने की शर्तों को भी स्वीकार कर लिया। आगे चलकर पिण्डारियों ने उसके राज्य में काफ़ी लूटमार की और तबाही फैलायी। 1816 ई. में तृतीय मराठा युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् उसका अयोग्य पुत्र [[रघुजी भोंसले तृतीय|परसोजी भोंसला]] नागपुर का शासक बना।  
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'''रघुजी भोंसले द्वितीय''', [[रघुजी भोंसले|रघुजी भोंसले प्रथम]] का पौत्र था, जिसने 1788 ई.- 1816 ई. तक राज्य किया। वह द्वितीय मराठा युद्ध में भी सम्मिलित भा, किन्तु असई (अगस्त 1803 ई.) और आरगाँव (नवम्बर 1803 ई.) के युद्धों में पराजित होने के कारण दिसम्बर, 1803 ई. में उसे [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से सन्धि करनी पड़ी, जो [[देवगाँव की सन्धि]] के नाम से विख्यात है। सन्धि की शर्तों के अनुसार उसे [[भारत]] के पूर्वी समुद्रतट के [[कटक]] और [[बालासोर]] ज़िले तथा मध्य भारत में वारधा नदी के पश्चिम का अपने राज्य का समस्त भू-भाग अंग्रेज़ों को देना पड़ा। यद्यपि उन्होंने अपने तथा निजाम और [[पेशवा]] के बीच होने वाले विवादों में अंग्रेज़ों की मध्यस्थता स्वीकार कर ली। साथ ही अंग्रेज़ों की पूर्व अनुमति के बिना किसी यूरोपीय को अपने यहाँ नौकर न रखने और [[नागपुर]] में अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखने की शर्तों को भी स्वीकार कर लिया। आगे चलकर पिण्डारियों ने उसके राज्य में काफ़ी लूटमार की और तबाही फैलायी। 1816 ई. में तृतीय मराठा युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् उसका अयोग्य पुत्र परसोजी भोंसला ([[रघुजी भोंसले तृतीय]]) नागपुर का शासक बना।  
  
 
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04:29, 15 जनवरी 2011 का अवतरण

रघुजी भोंसले द्वितीय, रघुजी भोंसले प्रथम का पौत्र था, जिसने 1788 ई.- 1816 ई. तक राज्य किया। वह द्वितीय मराठा युद्ध में भी सम्मिलित भा, किन्तु असई (अगस्त 1803 ई.) और आरगाँव (नवम्बर 1803 ई.) के युद्धों में पराजित होने के कारण दिसम्बर, 1803 ई. में उसे अंग्रेज़ों से सन्धि करनी पड़ी, जो देवगाँव की सन्धि के नाम से विख्यात है। सन्धि की शर्तों के अनुसार उसे भारत के पूर्वी समुद्रतट के कटक और बालासोर ज़िले तथा मध्य भारत में वारधा नदी के पश्चिम का अपने राज्य का समस्त भू-भाग अंग्रेज़ों को देना पड़ा। यद्यपि उन्होंने अपने तथा निजाम और पेशवा के बीच होने वाले विवादों में अंग्रेज़ों की मध्यस्थता स्वीकार कर ली। साथ ही अंग्रेज़ों की पूर्व अनुमति के बिना किसी यूरोपीय को अपने यहाँ नौकर न रखने और नागपुर में अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखने की शर्तों को भी स्वीकार कर लिया। आगे चलकर पिण्डारियों ने उसके राज्य में काफ़ी लूटमार की और तबाही फैलायी। 1816 ई. में तृतीय मराठा युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् उसका अयोग्य पुत्र परसोजी भोंसला (रघुजी भोंसले तृतीय) नागपुर का शासक बना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-394