"ऋषिगिरि" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('*'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा, तथा ऋषिगिरिस्त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा, तथा ऋषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचामा:, एते पंच महाश्रृंगा पर्वता: शीतलद्रुमा:, रक्षन्तीवाभिसंहत्य संहतांगा गिरिव्रजम्'।<ref>[[महाभारत]] [[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]] 21,2-3</ref>
+
[[महाभारत]] के अनुसार ऋषिगिरि गिरिव्रज या राजगृह-वर्तमान राजगीर ([[बिहार]]) की पांच पहाड़ियों में से एक है।  
*महाभारत के अनुसार ऋषिगिरि गिरिव्रज या राजगृह-वर्तमान राजगीर ([[बिहार]]) की पांच पहाड़ियों में से एक है।  
+
:[[वाल्मीकि रामायण]] में भी गिरिव्रज के पंचशैलों का वर्णन है- 'एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते: समन्तत:'।<ref>बाल. 32, 80</ref>  
*[[वाल्मीकि रामायण]] में भी गिरिव्रज के पंचशैलों का वर्णन है- 'एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते: समन्तत:'।<ref>बाल. 32, 80</ref>  
+
पाली साहित्य में ऋषिगिरि को इसगिलि कहा गया है।  
*पाली साहित्य में ऋषिगिरि को इसगिलि कहा गया है।  
+
<blockquote><poem>'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा,
 +
तथा ऋषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचामा:,
 +
एते पंच महाश्रृंगा पर्वता: शीतलद्रुमा:,
 +
रक्षन्तीवाभिसंहत्य संहतांगा गिरिव्रजम्'।<ref>[[महाभारत]] [[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]] 21,2-3</ref></poem></blockquote>
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
+
{{पौराणिक स्थान}}
 
[[Category:महाभारत]]
 
[[Category:महाभारत]]
 +
[[Category:पौराणिक स्थान]]
 +
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
 
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

10:46, 8 अगस्त 2012 का अवतरण

महाभारत के अनुसार ऋषिगिरि गिरिव्रज या राजगृह-वर्तमान राजगीर (बिहार) की पांच पहाड़ियों में से एक है।

वाल्मीकि रामायण में भी गिरिव्रज के पंचशैलों का वर्णन है- 'एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते: समन्तत:'।[1]

पाली साहित्य में ऋषिगिरि को इसगिलि कहा गया है।

'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा,
तथा ऋषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचामा:,
एते पंच महाश्रृंगा पर्वता: शीतलद्रुमा:,
रक्षन्तीवाभिसंहत्य संहतांगा गिरिव्रजम्'।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख