"गिलहरी" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{सूचना बक्सा जीव जन्तु |
− | + | |चित्र=Squirrel-3.jpg | |
− | गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर है जो [[एशिया]], [[यूरोप]] और | + | |चित्र का नाम=गिलहरी |
+ | |जगत=एनिमेलिया (Animalia) | ||
+ | |संघ=कॉर्डेटा (Chordata) | ||
+ | |वर्ग=मैमेलिया (Mammalia) | ||
+ | |उप-वर्ग= | ||
+ | |गण=रोडेंशिया (Rodentia) | ||
+ | |उपगण=स्किउरोमोर्फा (Sciuromorpha) | ||
+ | |अधिकुल= | ||
+ | |कुल=स्किउरिडी (Sciuridae) | ||
+ | |जाति= | ||
+ | |प्रजाति= | ||
+ | |द्विपद नाम= | ||
+ | |संबंधित लेख= | ||
+ | |शीर्षक 1= | ||
+ | |पाठ 1= | ||
+ | |शीर्षक 2= | ||
+ | |पाठ 2= | ||
+ | |अन्य जानकारी=[[भारत]] में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का [[रंग]] कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत हल्के रंग की धारियाँ होती हैं, जो आगे से पीछे की ओर जाती हैं। | ||
+ | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
+ | |अद्यतन= | ||
+ | }} | ||
+ | '''गिलहरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Squirrel'') एक छोटी आकृति की जानवर है जो [[एशिया]], [[यूरोप]] और [[उत्तरी अमेरिका]] में बहुत अधिकता में पायी जाती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम ले सकती है। | ||
==लक्षण== | ==लक्षण== | ||
− | पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों। वृक्षों की छालों, कोमल प्रांकुरों, कलिकाओं तथा [[फल|फलों]] का ये आहार करती हैं। फल में भी इन्हें [[अनार]] सबसे अधिक प्रिय है। [[सेमल वृक्ष|सेमल]] के फूलों का रस पीकर उनके परागण में ये बड़ी सहायक बनती हैं। अभिजनन काल में इनकी मादा दो से लेकर चार तक बच्चे किसी वृक्ष के कोटर | + | पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों। वृक्षों की छालों, कोमल प्रांकुरों, कलिकाओं तथा [[फल|फलों]] का ये आहार करती हैं। फल में भी इन्हें [[अनार]] सबसे अधिक प्रिय है। [[सेमल वृक्ष|सेमल]] के फूलों का रस पीकर उनके परागण में ये बड़ी सहायक बनती हैं। अभिजनन काल में इनकी मादा दो से लेकर चार तक बच्चे किसी वृक्ष के कोटर या पुरानी दीवार के किसी छिद्र में, अथवा छत में [[बाँस|बाँसों]] के बीच घासपात या मुलायम टहनियों का नीड़ बनाकर, देती हैं। जीवन इनका साधारणत: पाँच छह साल का होता है। आवाज़ चिर्प या ट्रिल सरीखी होती है, जो उत्तेजित अवस्था में यथेष्ट देर तक और बराबर होती रहती है। |
− | == | + | ==प्रजातियाँ== |
− | [[भारत]] में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का [[रंग]] कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत | + | [[भारत]] में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का [[रंग]] कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत हल्के रंग की धारियाँ होती हैं, जो आगे से पीछे की ओर जाती हैं। इनमें से पीठ पर बीचों बीच होने वाली धारी सबसे अधिक लंबी होती है। तीन धारियों वाली गिलहरी को त्रिरेखिनी तथा पाँच धारियों वाली गिलहरी को पंचरेखिनि कहते हैं। |
[[चित्र:Squirrel-1.jpg|thumb|250px|left|गिलहरी]] | [[चित्र:Squirrel-1.jpg|thumb|250px|left|गिलहरी]] | ||
====त्रिरेखिनी और पंचरेखिनी==== | ====त्रिरेखिनी और पंचरेखिनी==== | ||
− | त्रिरेखिनी के केवल तीन धारियाँ ही नहीं होतीं, वरन् दुम के निचले तल का रंग भी चमकता हुआ हलका [[पीला रंग|पीला]] होता है तथा कंधों और शरीर के दोनों पार्श्वो पर भी पीलापन देखने को मिलता है। यही नहीं, त्रिरेखिनी की कई, कम से कम स्थानीय, उपजातियाँ भी पाई जाती हैं, जिनमें आपस में मुख्य रूप से शरीर के रंगों की गहराई तथा | + | त्रिरेखिनी के केवल तीन धारियाँ ही नहीं होतीं, वरन् दुम के निचले तल का रंग भी चमकता हुआ हलका [[पीला रंग|पीला]] होता है तथा कंधों और शरीर के दोनों पार्श्वो पर भी पीलापन देखने को मिलता है। यही नहीं, त्रिरेखिनी की कई, कम से कम स्थानीय, उपजातियाँ भी पाई जाती हैं, जिनमें आपस में मुख्य रूप से शरीर के रंगों की गहराई तथा हल्केपन अथवा धारियों के वर्णभास में ही भिन्नता होती है। त्रिरेखिनी तथा पंचरेखिनी दोनों जातियों की गिलहरियों के कान छोटे होते हैं। इन पर बहुत कोमल लोम तो होते हैं, परंतु लोमगुच्छ नहीं होते। इनकी झबरी तथा चपटी दुम लगभग उतनी ही लंबी होती है जितना लंबा शेष सारा शरीर। स्तनों के दो युग्म होते हैं, एक तो उदर प्रदेश पर और दूसरा वंक्षण प्रदेश पर। शिश्नमुंड एक कड़ी तथा पतली अस्थीय नोक के रूप में होता है और शिश्नास्थि कहलाता है। दोनों जातियों की गिलहरियाँ [[हिमालय]] से लेकर [[लंका]] द्वीप तक तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]] से लेकर ब्रह्मदेश तक पाई जाती हैं। |
====फुनैंबुलस प्रजाति==== | ====फुनैंबुलस प्रजाति==== | ||
− | इन दोनों जातियों के अतिरिक्त दक्षिण भारत तथा लंका के सघनतम जंगलों में उलझी हुई लताओं में छिपकर रहने वाली फुनैंबुलस प्रजाति की ही एक और गिलहरी पाई जाती है जिसे चतुर्रेखिनी कहते हैं। इसकी पीठ पर आगे से पीछे की ओर जाती हुई चार गहरे बादामी रंग की धारियाँ होती हैं। जिन्हें तीन हल्के बादामी रंग की पट्टियाँ अलग करती हैं। फुनैंबुलस प्रजाति के अतिरिक्त भारत में कैलोसाइयूरस तथा ड्रेम्नोमिस नामक दो प्रजातियों की गिलहरियाँ और पाई जाती हैं, जो हिमालय प्रदेश के वन प्रांतों में 5,000 से 9,000 फुट तक की ऊँचाई पर रहती हैं। | + | इन दोनों जातियों के अतिरिक्त [[दक्षिण भारत]] तथा लंका के सघनतम जंगलों में उलझी हुई लताओं में छिपकर रहने वाली फुनैंबुलस प्रजाति की ही एक और गिलहरी पाई जाती है जिसे चतुर्रेखिनी कहते हैं। इसकी पीठ पर आगे से पीछे की ओर जाती हुई चार गहरे बादामी रंग की धारियाँ होती हैं। जिन्हें तीन हल्के बादामी रंग की पट्टियाँ अलग करती हैं। फुनैंबुलस प्रजाति के अतिरिक्त [[भारत]] में कैलोसाइयूरस तथा ड्रेम्नोमिस नामक दो प्रजातियों की गिलहरियाँ और पाई जाती हैं, जो [[हिमालय]] प्रदेश के वन प्रांतों में 5,000 से 9,000 फुट तक की ऊँचाई पर रहती हैं। |
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 41: | ||
चित्र:Squirrel-5.jpg | चित्र:Squirrel-5.jpg | ||
</gallery> | </gallery> | ||
− | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
10:30, 7 मई 2014 के समय का अवतरण
गिलहरी
| |
जगत | एनिमेलिया (Animalia) |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | मैमेलिया (Mammalia) |
गण | रोडेंशिया (Rodentia) |
उपगण | स्किउरोमोर्फा (Sciuromorpha) |
कुल | स्किउरिडी (Sciuridae) |
अन्य जानकारी | भारत में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का रंग कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत हल्के रंग की धारियाँ होती हैं, जो आगे से पीछे की ओर जाती हैं। |
गिलहरी (अंग्रेज़ी: Squirrel) एक छोटी आकृति की जानवर है जो एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में बहुत अधिकता में पायी जाती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम ले सकती है।
लक्षण
पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों। वृक्षों की छालों, कोमल प्रांकुरों, कलिकाओं तथा फलों का ये आहार करती हैं। फल में भी इन्हें अनार सबसे अधिक प्रिय है। सेमल के फूलों का रस पीकर उनके परागण में ये बड़ी सहायक बनती हैं। अभिजनन काल में इनकी मादा दो से लेकर चार तक बच्चे किसी वृक्ष के कोटर या पुरानी दीवार के किसी छिद्र में, अथवा छत में बाँसों के बीच घासपात या मुलायम टहनियों का नीड़ बनाकर, देती हैं। जीवन इनका साधारणत: पाँच छह साल का होता है। आवाज़ चिर्प या ट्रिल सरीखी होती है, जो उत्तेजित अवस्था में यथेष्ट देर तक और बराबर होती रहती है।
प्रजातियाँ
भारत में सामान्य रूप से गिलहरियों की दो जातियाँ पाई जाती हैं। दोनों के ही शरीर का रंग कुछ कालापन लिए हुए भूरा होता है, परंतु एक की पीठ पर तीन और दूसरी की पीठ पर पाँच, अपेक्षाकृत हल्के रंग की धारियाँ होती हैं, जो आगे से पीछे की ओर जाती हैं। इनमें से पीठ पर बीचों बीच होने वाली धारी सबसे अधिक लंबी होती है। तीन धारियों वाली गिलहरी को त्रिरेखिनी तथा पाँच धारियों वाली गिलहरी को पंचरेखिनि कहते हैं।
त्रिरेखिनी और पंचरेखिनी
त्रिरेखिनी के केवल तीन धारियाँ ही नहीं होतीं, वरन् दुम के निचले तल का रंग भी चमकता हुआ हलका पीला होता है तथा कंधों और शरीर के दोनों पार्श्वो पर भी पीलापन देखने को मिलता है। यही नहीं, त्रिरेखिनी की कई, कम से कम स्थानीय, उपजातियाँ भी पाई जाती हैं, जिनमें आपस में मुख्य रूप से शरीर के रंगों की गहराई तथा हल्केपन अथवा धारियों के वर्णभास में ही भिन्नता होती है। त्रिरेखिनी तथा पंचरेखिनी दोनों जातियों की गिलहरियों के कान छोटे होते हैं। इन पर बहुत कोमल लोम तो होते हैं, परंतु लोमगुच्छ नहीं होते। इनकी झबरी तथा चपटी दुम लगभग उतनी ही लंबी होती है जितना लंबा शेष सारा शरीर। स्तनों के दो युग्म होते हैं, एक तो उदर प्रदेश पर और दूसरा वंक्षण प्रदेश पर। शिश्नमुंड एक कड़ी तथा पतली अस्थीय नोक के रूप में होता है और शिश्नास्थि कहलाता है। दोनों जातियों की गिलहरियाँ हिमालय से लेकर लंका द्वीप तक तथा अफ़ग़ानिस्तान से लेकर ब्रह्मदेश तक पाई जाती हैं।
फुनैंबुलस प्रजाति
इन दोनों जातियों के अतिरिक्त दक्षिण भारत तथा लंका के सघनतम जंगलों में उलझी हुई लताओं में छिपकर रहने वाली फुनैंबुलस प्रजाति की ही एक और गिलहरी पाई जाती है जिसे चतुर्रेखिनी कहते हैं। इसकी पीठ पर आगे से पीछे की ओर जाती हुई चार गहरे बादामी रंग की धारियाँ होती हैं। जिन्हें तीन हल्के बादामी रंग की पट्टियाँ अलग करती हैं। फुनैंबुलस प्रजाति के अतिरिक्त भारत में कैलोसाइयूरस तथा ड्रेम्नोमिस नामक दो प्रजातियों की गिलहरियाँ और पाई जाती हैं, जो हिमालय प्रदेश के वन प्रांतों में 5,000 से 9,000 फुट तक की ऊँचाई पर रहती हैं।
|
|
|
|
|
वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख