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*महाभारत, वनपर्व<ref>वनपर्व 130,4</ref> में विनशन को [[निषाद राष्ट्र]] का द्वार कहा गया है-
 
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<blockquote>'एतद्विनशनं नाम सरस्वत्या विशाम्पते, द्वारं निषादराष्ट्रस्य येषां दोषात् सरस्वती प्रविष्टा पृथिवी वीर मा निषादा हि मां विदु:।'</blockquote>
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<blockquote>'एतद्विनशनं नाम सरस्वत्या विशाम्पते, द्वारं निषादराष्ट्रस्य येषां दोषात् सरस्वती प्रविष्टा पृथिवी वीर मा निषादा हि माँ विदु:।'</blockquote>
  
 
*[[संस्कृत]] के [[कवि]] [[राजशेखर]] ने विनशन से लेकर [[प्रयाग]] तक के प्रदेश को 'अंतर्वेदि' कहा है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=859|url=}}</ref>
 
*[[संस्कृत]] के [[कवि]] [[राजशेखर]] ने विनशन से लेकर [[प्रयाग]] तक के प्रदेश को 'अंतर्वेदि' कहा है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=859|url=}}</ref>
 
*विनशन '[[बिंदुसर सरोवर|बिंदुसर]]' नामक [[तीर्थ]] हो सकता है, जो सिद्धराज ([[बड़ोदा|ज़िला बड़ोदा]], [[गुजरात]]) में स्थित है।
 
*विनशन '[[बिंदुसर सरोवर|बिंदुसर]]' नामक [[तीर्थ]] हो सकता है, जो सिद्धराज ([[बड़ोदा|ज़िला बड़ोदा]], [[गुजरात]]) में स्थित है।
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*विनशन तीर्थ [[सरहिन्द]] के रेतीले मैदान का वह भाग है, जहां [[सरस्वती नदी]] विलीन होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=558, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref>
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13:13, 27 मई 2018 के समय का अवतरण

विनशन महाभारत के अनुसार एक प्राचीन तीर्थ था, जो उस स्थान पर बसा था, जहां सरस्वती नदी राजस्थान के मरुस्थल में विनष्ट या विलुप्त हो गई थी-

'ततो विनशनं राजन् जगामाथ हलायुधः, शूद्राभीरान् प्रति द्वेषाद्यत्र नष्टा सरस्वती।'[1]

'ततो विनशनं गच्छेन्नियतो नियताशन, गच्छत्यन्तहिता यत्र मेरुपृष्ठे सरस्वती।'

'एतद्विनशनं नाम सरस्वत्या विशाम्पते, द्वारं निषादराष्ट्रस्य येषां दोषात् सरस्वती प्रविष्टा पृथिवी वीर मा निषादा हि माँ विदु:।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, शल्यपर्व 37,1
  2. वनपर्व 81,111
  3. वनपर्व 130,4
  4. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 859 |
  5. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 558, परिशिष्ट 'क' |

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