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रामचंद्र कृष्ण प्रभु का जन्म 23 अगस्त 1883, मंगलौर के निकट ([[दक्षिण भारत]]) गुरुपुर कस्बे में हुआ था। बचपन में ही [[माता]]-[[पिता]] का देहांत हो जाने के कारण इन्हें कुछ दिन तक एक दुकान में नौकरी करनी पड़ी। फिर वे वहां से भागकर मंगलौर आ गये और कुछ लोगों की सहायता तथा छात्रवृत्ति के सहारे अध्ययन करने लगे। प्रभु जीवन के वास्तविक सत्य की खोज के लिए बीए की परीक्षा दिए बिना ही [[उत्तरांचल]] में स्थित [[रामकृष्ण मिशन]] के मायावती आश्रम में पहुंच गए। वहां उन्हें [[उपनिषद|उपनिषदों]], षटदर्शन, [[ब्रह्मसूत्र]] आदि के अध्ययन का अवसर मिला।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=729|url=}}</ref>
 
रामचंद्र कृष्ण प्रभु का जन्म 23 अगस्त 1883, मंगलौर के निकट ([[दक्षिण भारत]]) गुरुपुर कस्बे में हुआ था। बचपन में ही [[माता]]-[[पिता]] का देहांत हो जाने के कारण इन्हें कुछ दिन तक एक दुकान में नौकरी करनी पड़ी। फिर वे वहां से भागकर मंगलौर आ गये और कुछ लोगों की सहायता तथा छात्रवृत्ति के सहारे अध्ययन करने लगे। प्रभु जीवन के वास्तविक सत्य की खोज के लिए बीए की परीक्षा दिए बिना ही [[उत्तरांचल]] में स्थित [[रामकृष्ण मिशन]] के मायावती आश्रम में पहुंच गए। वहां उन्हें [[उपनिषद|उपनिषदों]], षटदर्शन, [[ब्रह्मसूत्र]] आदि के अध्ययन का अवसर मिला।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=729|url=}}</ref>
 
 
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[[1905]] में मुंबई आने पर प्रभु का संपर्क [[लोकमान्य तिलक]] से हुआ और इन्होंने आर्यों के आदिनिवास विषय पुस्तक की स्थापना की पुष्टि के लिए प्रभु ने आगे शोध करने का विचार किया, किंतु तिलक की गिरफ्तारी के कारण यह काम रुक गया।
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06:30, 17 जून 2018 के समय का अवतरण

रामचंद्र कृष्ण प्रभु (जन्म- 23 अगस्त, 1883, गुरुपुर कस्बा (मंगलौर के निकट); मृत्यु- 4 जनवरी, 1967) गांधी जी के अनुयाई और प्रसिद्ध पत्रकार थे। वे 1930 में नमक सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और जेल से छूटने पर उन्होंने फिर पत्रकारिता के पेशे को अपना लिया।

परिचय

रामचंद्र कृष्ण प्रभु का जन्म 23 अगस्त 1883, मंगलौर के निकट (दक्षिण भारत) गुरुपुर कस्बे में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण इन्हें कुछ दिन तक एक दुकान में नौकरी करनी पड़ी। फिर वे वहां से भागकर मंगलौर आ गये और कुछ लोगों की सहायता तथा छात्रवृत्ति के सहारे अध्ययन करने लगे। प्रभु जीवन के वास्तविक सत्य की खोज के लिए बीए की परीक्षा दिए बिना ही उत्तरांचल में स्थित रामकृष्ण मिशन के मायावती आश्रम में पहुंच गए। वहां उन्हें उपनिषदों, षटदर्शन, ब्रह्मसूत्र आदि के अध्ययन का अवसर मिला।[1]

मुंबई आगमन

1905 में मुंबई आने पर प्रभु का संपर्क लोकमान्य तिलक से हुआ और इन्होंने आर्यों के आदिनिवास विषय पुस्तक की स्थापना की पुष्टि के लिए प्रभु ने आगे शोध करने का विचार किया, किंतु तिलक की गिरफ्तारी के कारण यह काम रुक गया।

संपादन तथा पत्रकारिता

1913 में उन्होंने 'मुंबई क्रॉनिकल पत्र' में काम करना शुरू किया। 1915 में गांधीजी से मिलने के बाद 'यंग इंडिया' के संपादन से जुड़ गए। 1930 में नमक सत्याग्रह में आप गिरफ्तार हुए। फिर जेल से छूटने के बाद रामचंद्र कृष्ण प्रभु ने पत्रकारिता का पेशा अपना लिया। रामचंद्र कृष्ण प्रभु ने जेल की यातनाएं भोगीं और जेल से छुटने के बाद पत्रकारिता के माध्यम से देश और समाज सेवा का काम जारी रखा। 1942 में उनकी पुस्तक 'क्विट इंडिया' की 24000 प्रतियां एक महीने में बिक गईं थीं और पुस्तक जब्त कर ली गई थीं।

योगदान

राजघाट दिल्ली स्थित 'गांधी स्मारक संग्रहालय' को सवांरने में आपका काफी योगदान रहा है। संपूर्ण गांधी बांमय के संपादन कार्य से भी आप 2 वर्ष जुड़े रहे। दुनियां को छोड़ कर जाते समय आप आर्यों के आदि देश संबंधी अपनी खोज में लगे हुए थे।

मृत्यु

4 जनवरी, 1967 को रामचंद्र कृष्ण प्रभु का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 729 |

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