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'''जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा''' (जन्म- [[3 मार्च]], 1839; मृत्यु- [[19 मई]], 1904) वर्तमान में [[भारत]] के विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे।  
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==जीवन परिचय==
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'''जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा''' (जन्म- [[3 मार्च]], 1839, [[गुजरात]]; मृत्यु- [[19 मई]], [[1904]], [[जर्मनी]]) [[भारत]] के विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने "टाटा समूह" के संस्थापक थे। भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी ने जो योगदान दिया, वह असाधारण और बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने भारतीय औद्योगिक विकास का मार्ग ऐसे समय में प्रशस्त किया था, जब उस दिशा में केवल यूरोपीय, विशेष रूप से [[अंग्रेज़]] ही कुशल समझे जाते थे। [[इंग्लैण्ड]] की अपनी प्रथम यात्रा से लौटकर जमशेदजी टाटा ने चिंचपोकली के एक तेल मिल को कताई-बुनाई मिल में परिवर्तित करके औद्योगिक जीवन का सूत्रपात किया था। टाटा साम्राज्य के जनक जमशेदजी के कार्य आज भी लोगों को प्रेरित एवं विस्मित करते हैं। भविष्य को भाँपने की अद्भुत क्षमता के बल पर ही उन्होंने एक स्वनिर्भर औद्योगिक भारत का सपना देखा था। उन्होंने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध करायीं और राष्ट्र को महाशक्ति बनने का मार्ग दिखाया।
जमशेदजी टाटा जन्म सन् 1839 में [[गुजरात]] के एक छोटे से कस्बे नवसेरी में हुआ था। उनके पिता जी का नाम नुसीरवानजी था व उनकी माता जी का नाम जीवनबाई टाटा था। पारसी पादरियों के अपने ख़ानदान में नुसीरवानजी पहले व्यवसायी थे। भाग्य उन्हें [[बंबई]] ले आया जहाँ उन्होंने व्यवसाय (धंधे) में क़दम रखा। जमशेदजी 14 साल की नाज़ुक उम्र में ही उनका साथ देने लगे।
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==जन्म तथा शिक्षा==
;शिक्षा
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जमशेदजी टाटा का जन्म सन 1839 में [[गुजरात]] के एक छोटे-से कस्बे नवसेरी में हुआ था। उनका परिवार [[पारसी]] पुजारियों का था। उनके [[पिता]] का नाम नुसीरवानजी तथा [[माता]] का नाम जीवनबाई टाटा था। पारसी पादरियों के अपने ख़ानदान में नुसीरवानजी पहले व्यवसायी व्यक्ति थे। जमशेदजी का भाग्य उन्हें मात्र चौदह वर्ष की अल्पायु में ही पिता के साथ [[बंबई]] (वर्तमान [[मुम्बई]]) ले आया। यहाँ उन्होंने व्यवसाय (धंधे) में क़दम रखा। जमशेदजी अपनी छोटी नाज़ुक उम्र में ही पिता का साथ देने लगे थे। सत्रह वर्ष की आयु में जमशेदजी ने 'एलफ़िंसटन कॉलेज', मुम्बई में प्रवेश ले लिया। इसी कॉलेज से वे दो वर्ष बाद 'ग्रीन स्कॉलर' के रूप में उत्तीर्ण हुए। तत्कालीन समय में यह उपाधि ग्रेजुएट के बराबर हुआ करती थी।<ref>{{cite web |url= http://ranchiexpress.com/145884|title=राष्ट्र निर्माण के प्रेणेताओं में अग्रणी थे- जमशेदजी टाटा|accessmonthday= 2 मार्च|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
जमशेदजी ने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया और अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने हीरा बाई दबू से विवाह कर लिया। वे 1858 में स्नातक हुए और अपने पिता के व्यवसाय से पूरी तरह जुड़ गए।
 
 
==व्यवसाय की शुरुआत==
 
==व्यवसाय की शुरुआत==
 
वह दौर बहुत कठिन था। [[अंग्रेज़]] अत्यंत बर्बरता से 1857 कि क्रान्ति को कुचलने में सफल हुए थे। 29 साल कि उम्र तक जमशेदजी अपने पिता जी के साथ ही काम करते रहे। 1868 में उन्होंने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया तेल कारख़ाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया और उसका नाम बदल कर रखा-एलेक्जेंडर कर दिया। दो साल बाद उन्होंने इसे ख़ासे मुनाफे के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ उन्होंने [[नागपुर]] में 1874 में एक रुई का कारख़ाना लगाया। [[महारानी विक्टोरिया]] ने उन्ही दिनों [[भारत]] की रानी का खिताब हासिल किया था और जमशेदजी ने भी वक़्त को समझते हुए कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल रखा। जमशेदजी एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने ना केवल कपड़ा बनाने के नए नए तरीक़े ही अपनाए बल्कि अपने कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों का भी खूब ध्यान रखा। उनके भले के लिए जमशेदजी ने अनेक नई व बेहतर श्रम-नीतियाँ अपनाई। इस नज़र से भी वे अपने समय से कहीँ आगे थे। सफलता को कभी केवल अपनी जागीर नहीं समझा, बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन सब की थी जो उनके लिए काम करते थे। जमशेद जी के अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से नजदीकी संबंध थे, इन में प्रमुख थे, [[दादाभाई नौरोजी]] और [[फिरोजशाह मेहता]]। जमशेदजी पर और उनकी सोच पर इनका काफ़ी प्रभाव था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेद जी के दिमाग में तीन बडे विचार थे -  
 
वह दौर बहुत कठिन था। [[अंग्रेज़]] अत्यंत बर्बरता से 1857 कि क्रान्ति को कुचलने में सफल हुए थे। 29 साल कि उम्र तक जमशेदजी अपने पिता जी के साथ ही काम करते रहे। 1868 में उन्होंने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया तेल कारख़ाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया और उसका नाम बदल कर रखा-एलेक्जेंडर कर दिया। दो साल बाद उन्होंने इसे ख़ासे मुनाफे के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ उन्होंने [[नागपुर]] में 1874 में एक रुई का कारख़ाना लगाया। [[महारानी विक्टोरिया]] ने उन्ही दिनों [[भारत]] की रानी का खिताब हासिल किया था और जमशेदजी ने भी वक़्त को समझते हुए कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल रखा। जमशेदजी एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने ना केवल कपड़ा बनाने के नए नए तरीक़े ही अपनाए बल्कि अपने कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों का भी खूब ध्यान रखा। उनके भले के लिए जमशेदजी ने अनेक नई व बेहतर श्रम-नीतियाँ अपनाई। इस नज़र से भी वे अपने समय से कहीँ आगे थे। सफलता को कभी केवल अपनी जागीर नहीं समझा, बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन सब की थी जो उनके लिए काम करते थे। जमशेद जी के अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से नजदीकी संबंध थे, इन में प्रमुख थे, [[दादाभाई नौरोजी]] और [[फिरोजशाह मेहता]]। जमशेदजी पर और उनकी सोच पर इनका काफ़ी प्रभाव था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेद जी के दिमाग में तीन बडे विचार थे -  
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जमशेद जी टाटा ने 19 मई 1904 में [[जर्मनी]] में उन्होंने अपनी आख़िरी सांस ली ।<ref>{{cite web |url=http://www.pressnote.in/profile---jamshed-ji-tata_92339.html |title=जमशेद जी टाटा |accessmonthday=[[4 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रेसनोट |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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07:45, 2 मार्च 2013 का अवतरण

जमशेद जी टाटा
जमशेदजी टाटा
पूरा नाम जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा
जन्म 3 मार्च, 1839
जन्म भूमि नवसेरी कस्बा, गुजरात
मृत्यु 19 मई, 1904
मृत्यु स्थान जर्मनी
पति/पत्नी हीरा बाई दबू
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र उद्योगपति
प्रसिद्धि मुम्बई की शान ताज महल होटल का निर्माण किया।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जमशेदजी टाटा वर्तमान में भारत के विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक थे।
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जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा (जन्म- 3 मार्च, 1839, गुजरात; मृत्यु- 19 मई, 1904, जर्मनी) भारत के विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने "टाटा समूह" के संस्थापक थे। भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी ने जो योगदान दिया, वह असाधारण और बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने भारतीय औद्योगिक विकास का मार्ग ऐसे समय में प्रशस्त किया था, जब उस दिशा में केवल यूरोपीय, विशेष रूप से अंग्रेज़ ही कुशल समझे जाते थे। इंग्लैण्ड की अपनी प्रथम यात्रा से लौटकर जमशेदजी टाटा ने चिंचपोकली के एक तेल मिल को कताई-बुनाई मिल में परिवर्तित करके औद्योगिक जीवन का सूत्रपात किया था। टाटा साम्राज्य के जनक जमशेदजी के कार्य आज भी लोगों को प्रेरित एवं विस्मित करते हैं। भविष्य को भाँपने की अद्भुत क्षमता के बल पर ही उन्होंने एक स्वनिर्भर औद्योगिक भारत का सपना देखा था। उन्होंने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध करायीं और राष्ट्र को महाशक्ति बनने का मार्ग दिखाया।

जन्म तथा शिक्षा

जमशेदजी टाटा का जन्म सन 1839 में गुजरात के एक छोटे-से कस्बे नवसेरी में हुआ था। उनका परिवार पारसी पुजारियों का था। उनके पिता का नाम नुसीरवानजी तथा माता का नाम जीवनबाई टाटा था। पारसी पादरियों के अपने ख़ानदान में नुसीरवानजी पहले व्यवसायी व्यक्ति थे। जमशेदजी का भाग्य उन्हें मात्र चौदह वर्ष की अल्पायु में ही पिता के साथ बंबई (वर्तमान मुम्बई) ले आया। यहाँ उन्होंने व्यवसाय (धंधे) में क़दम रखा। जमशेदजी अपनी छोटी नाज़ुक उम्र में ही पिता का साथ देने लगे थे। सत्रह वर्ष की आयु में जमशेदजी ने 'एलफ़िंसटन कॉलेज', मुम्बई में प्रवेश ले लिया। इसी कॉलेज से वे दो वर्ष बाद 'ग्रीन स्कॉलर' के रूप में उत्तीर्ण हुए। तत्कालीन समय में यह उपाधि ग्रेजुएट के बराबर हुआ करती थी।[1]

व्यवसाय की शुरुआत

वह दौर बहुत कठिन था। अंग्रेज़ अत्यंत बर्बरता से 1857 कि क्रान्ति को कुचलने में सफल हुए थे। 29 साल कि उम्र तक जमशेदजी अपने पिता जी के साथ ही काम करते रहे। 1868 में उन्होंने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया तेल कारख़ाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया और उसका नाम बदल कर रखा-एलेक्जेंडर कर दिया। दो साल बाद उन्होंने इसे ख़ासे मुनाफे के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ उन्होंने नागपुर में 1874 में एक रुई का कारख़ाना लगाया। महारानी विक्टोरिया ने उन्ही दिनों भारत की रानी का खिताब हासिल किया था और जमशेदजी ने भी वक़्त को समझते हुए कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल रखा। जमशेदजी एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने ना केवल कपड़ा बनाने के नए नए तरीक़े ही अपनाए बल्कि अपने कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों का भी खूब ध्यान रखा। उनके भले के लिए जमशेदजी ने अनेक नई व बेहतर श्रम-नीतियाँ अपनाई। इस नज़र से भी वे अपने समय से कहीँ आगे थे। सफलता को कभी केवल अपनी जागीर नहीं समझा, बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन सब की थी जो उनके लिए काम करते थे। जमशेद जी के अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से नजदीकी संबंध थे, इन में प्रमुख थे, दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता। जमशेदजी पर और उनकी सोच पर इनका काफ़ी प्रभाव था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेद जी के दिमाग में तीन बडे विचार थे -

  1. अपनी लोहा व स्टील कंपनी खोलना
  2. एक जगत प्रसिद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित करना
  3. एक जलविद्युत परियोजना (Hydro-electric plant) लगाना ।

दुर्भाग्यवश उनके जीवन काल में तीनों में से कोई भी सपना पूरा ना हो सका। पर वे बीज तो बो ही चुके थे, एक ऐसा बीज जिसकी जड़ें उनकी आने वाली पीढ़ी ने अनेक देशों में फैलायीं।

निर्माण

मुम्बई का प्रसिद्ध ताज महल होटल मुम्बई की शान माना जाता है जिसका निर्माण जमशेदजी टाटा ने दिसंबर 1903 में 4,21,00,000 रुपये के शाही खर्च के दौरान किया था। इसमे भी उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोच को दिखाया था। उन दिनों स्थानीय भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में घुसने नहीं दिया जाता था। ताजमहल होटल इस दमनकारी नीति का करारा जवाब था ।

मृत्यु

जमशेद जी टाटा ने 19 मई 1904 में जर्मनी में उन्होंने अपनी आख़िरी सांस ली ।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राष्ट्र निर्माण के प्रेणेताओं में अग्रणी थे- जमशेदजी टाटा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 मार्च, 2013।
  2. जमशेद जी टाटा (हिन्दी) प्रेसनोट। अभिगमन तिथि: 4 अप्रॅल, 2011

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