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'''माण्डव्याश्रम''' का उल्लेख पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में हुआ है, जिसके अनुसार ये एक पवित्र स्थान का नाम था। काशिराज की वह कन्या दिन-रात वहां के पुण्‍य तीर्थों में स्नान करती और अपनी इच्छा के अनुसार सर्वत्र विचरती रहती थी।
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'''माण्डव्याश्रम''' का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य [[महाभारत]] में हुआ है, जिसके अनुसार ये एक पवित्र स्थान का नाम था।  
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*[[महाभारत उद्योग पर्व]] के उल्लेखानुसार महाराज! शुभकारक नन्दाश्रम, उलूकाश्रम च्यवनाश्रम, ब्रह्मस्थान, देवताओं के यज्ञस्थान प्रयाग, देवराण्‍य, भोगवती, कौशिकाश्रम, माण्डव्याश्रम, दिलीपाश्रम, रामहृद और पैलगर्गाश्रम क्रमश: इन सभी तीर्थों में उन दिनों [[काशिराज]] की कन्या ने कठोर व्रत का आश्रय ले स्नान किया। कुरूनन्दन! उस समय मेरी माता गंगा ने जल में प्रकट होकर अम्बा से कहा- ‘भद्रे! तू किसलिये शरीर को इतना क्लेश देती है। मुझे ठीक-ठीक बता’। राजन्! तब साध्‍वी अम्बा ने हाथ जोड़कर गंगाजी से कहा- ‘चारूलोचने! [[भीष्म]] ने युद्ध में [[परशुराम|परशुरामजी]] को परास्त कर दिया; फिर दूसरा कौन ऐसा राजा है, जो धनुष-बाण लेकर खडे़ हुए भीष्‍म को युद्ध में परास्त कर सके? अत: मैं भीष्‍म के विनाश के लिये अत्यन्त कठोर तपस्या कर रही हूँ।
  
 
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07:59, 25 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

माण्डव्याश्रम का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है, जिसके अनुसार ये एक पवित्र स्थान का नाम था।

  • महाभारत उद्योग पर्व के उल्लेखानुसार महाराज! शुभकारक नन्दाश्रम, उलूकाश्रम च्यवनाश्रम, ब्रह्मस्थान, देवताओं के यज्ञस्थान प्रयाग, देवराण्‍य, भोगवती, कौशिकाश्रम, माण्डव्याश्रम, दिलीपाश्रम, रामहृद और पैलगर्गाश्रम क्रमश: इन सभी तीर्थों में उन दिनों काशिराज की कन्या ने कठोर व्रत का आश्रय ले स्नान किया। कुरूनन्दन! उस समय मेरी माता गंगा ने जल में प्रकट होकर अम्बा से कहा- ‘भद्रे! तू किसलिये शरीर को इतना क्लेश देती है। मुझे ठीक-ठीक बता’। राजन्! तब साध्‍वी अम्बा ने हाथ जोड़कर गंगाजी से कहा- ‘चारूलोचने! भीष्म ने युद्ध में परशुरामजी को परास्त कर दिया; फिर दूसरा कौन ऐसा राजा है, जो धनुष-बाण लेकर खडे़ हुए भीष्‍म को युद्ध में परास्त कर सके? अत: मैं भीष्‍म के विनाश के लिये अत्यन्त कठोर तपस्या कर रही हूँ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 85 |


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