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<blockquote>'कन्यातीर्थेऽश्वतार्थे च गवां तीर्थे च भारत कालकोट्यां वृषप्रस्थे गिरावुष्य च पांडवा:।'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 95, 3.</ref></blockquote>
 
<blockquote>'कन्यातीर्थेऽश्वतार्थे च गवां तीर्थे च भारत कालकोट्यां वृषप्रस्थे गिरावुष्य च पांडवा:।'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 95, 3.</ref></blockquote>
  
*'[[अश्वतीर्थ]]' ([[कन्नौज]] के निकट) के पश्चात इस स्थान का उल्लेख है। अत: यह [[तीर्थ]] संभवत: इसी स्थान के निकट रहा होगा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=299|url=}}</ref>
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*'[[अश्वतीर्थ]]' ([[कन्नौज]] के निकट) के पश्चात् इस स्थान का उल्लेख है। अत: यह [[तीर्थ]] संभवत: इसी स्थान के निकट रहा होगा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=299|url=}}</ref>
  
 
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07:40, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

गोतीर्थ नामक पौराणिक स्थान का उल्लेख महाभारत के वनपर्व के अंतर्गत पांडवों की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में है-

'कन्यातीर्थेऽश्वतार्थे च गवां तीर्थे च भारत कालकोट्यां वृषप्रस्थे गिरावुष्य च पांडवा:।'[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व 95, 3.
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 299 |

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