गंधमादन पर्वत

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  • महाभारत की पुरा-कथाओं में गंधमादन पर्वत का जिक्र प्रमुखता से आता है।
  • यहाँ देवता रमण करते हैं।
  • पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ने तपस्या की। शेष ने भी यहाँ तप किया।
  • हिमवत पार करके पाण्डव गंधमादन के पास पहुँचे।
  • कुबेर के राजप्रासाद में गंधमादन की उपस्थिति देखी जाती है।
  • इंद्र लोक में जाते समय अर्जुन को हिमवत और गंधमादन को पार करते दिखाया गया है।
  • गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुँचा जा सकता।
  • यहाँ पापात्मा नहीं पहुँच पाते। पापियों को विषैले सरीसृप, कीड़े-मकौड़े डस लेते हैं।
  • गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गन्धर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहाँ निर्भीक विचरण करते हैं।
  • गंधमादन पर भीमसेन हनुमान से मिलते हैं।
  • भीमसेन ने यहाँ क्रोधवश्वत को पराजित किया।
  • हिमवत पर गंधमादन के पास वृषपर्वन का आश्रम स्थित था।
  • यहाँ नित्य सिद्ध, चारण, विद्याधर, किन्नर आदि परिभ्रमण करते दृष्टिगोचर होते हैं।
  • इंद्रलोक से अर्जुन गंधमादन पर्वत पर आते हैं।
  • मार्कण्डेय ने नारायण के उदर में गंधमादन के दर्शन किए थे।
  • स्वर्ण नगरी लंका खोने पर कुबेर ने गंधमादन पर निवास किया।
  • गंधमादन शिखर पर गुह्यों के स्वामी, कुबेर, राक्षस और अप्सराएं आनन्द पूर्वक रहते हैं।
  • गंधमादन के पास कई छोटी स्वर्ण, मणि, मोतियों सी चमकती पर्वत मालाएं हैं।
  • यहाँ मानव जीवन की अवधि 11,000 वर्ष है।
  • यहाँ आदमी सर्वानंद प्राप्त करता है, स्त्रियाँ कमलवत् लावण्यमयी हैं।
  • गंधमादन पर देवता और ऋषिगण आदि पितामह ब्रह्मा की साधना में साधनारत रहते हैं।
  • यह देव पर्वत शिखर अमृत और अक्षय आनन्द अनुभूति का महास्त्रोत है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 2, 30, 36, 119, सभापर्व, अध्याय 10, वनपर्व, 12, 37, 140-141, 143, 145, 146, 152, 155, 158, 159-160 174, 188, 244, 275 आदि।

बाहरी कड़ियाँ

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