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अजगर एक [[सर्प|साँप]] है जो बहुत बड़ा होता है और गरम देशों में पाया जाता है। प्राचीन यूनानी ग्रंथों में एक विशालकाय साँप का उल्लेख मिलता है जिसका वध अपोलो (यवन सूर्य देवता) ने डेल्फ़ी में किया था। आधुनिकप्राणिविज्ञान में यह साँप बोइडी वंश एवं पाइथॉनिनी उपवंश के अंतर्गत परिगणित होता है। इसकी विभिन्न जातियाँ पुरातन जगत के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाई जाती हैं। सर्पों के इस वर्ग में कुछ तो तीस फुट या इससे भी अधिक लंबे मिलते हैं। अधिकांश अजगर वृक्षों पर रहते हैं, परंतु कुछ [[जल]] के आसपास पाए जाते हैं, जहाँ वे जल में डूबे या उतराए पड़े रहते हैं।
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'''अजगर''' एक [[सर्प|साँप]], जो बहुत बड़ा होता है और गरम देशों में पाया जाता है। प्राचीन [[यूनानी]] ग्रंथों में एक विशालकाय साँप का उल्लेख मिलता है, जिसका वध [[अपोलो]] ([[यवन]] सूर्य देवता) ने डेल्फ़ी में किया था। आधुनिक प्राणि विज्ञान में यह साँप बोइडी वंश एवं पाइथॉनिनी उपवंश के अंतर्गत परिगणित होता है। इसकी विभिन्न जातियाँ पुरातन जगत् के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाई जाती हैं। सर्पों के इस वर्ग में कुछ तो तीस फुट या इससे भी अधिक लंबे मिलते हैं। अधिकांश अजगर वृक्षों पर रहते हैं, परंतु कुछ [[जल]] के आसपास पाए जाते हैं, जहाँ वे जल में डूबे या उतराए पड़े रहते हैं।
  
 
अजगरों में पश्चपादों के अवशेष मिलते हैं। इनकी श्रोणिमेखला (पेलविक गर्डिल) की संरचना जटिल होती है तथा वह [[कछुआ|कछुओं]] की श्रोणि मेखला के समान पसलियों के भीतर एक विचित्र स्थिति में रहती है। पश्चपाद एक छोटी हड्डी के रूप में दिखाई पड़ता है जिसे उरु-अस्थि कहते हैं। पश्चपाद के बाहरी भाग, उरु-अस्थि के अंत में स्थित एक या दो अस्थि ग्रंथिकाओं एवं अवस्कर (क्लोएका) के दोनों ओर शल्क (स्केल) से बाहर निकले हुए नखर (क्लॉ) के रूप में, दिखाई पड़ते हैं। ये नखर लैंगिक भिन्नता के भी सूचक हैं, क्योंकि नर में मादा की अपेक्षा ये अधिक बड़े होते हैं। ये पर्याप्त चलिष्ण होते हैं और ऐसा विश्वास किया जाता है कि मैथुन के समय ये मादा को उत्तेजित करते हैं।
 
अजगरों में पश्चपादों के अवशेष मिलते हैं। इनकी श्रोणिमेखला (पेलविक गर्डिल) की संरचना जटिल होती है तथा वह [[कछुआ|कछुओं]] की श्रोणि मेखला के समान पसलियों के भीतर एक विचित्र स्थिति में रहती है। पश्चपाद एक छोटी हड्डी के रूप में दिखाई पड़ता है जिसे उरु-अस्थि कहते हैं। पश्चपाद के बाहरी भाग, उरु-अस्थि के अंत में स्थित एक या दो अस्थि ग्रंथिकाओं एवं अवस्कर (क्लोएका) के दोनों ओर शल्क (स्केल) से बाहर निकले हुए नखर (क्लॉ) के रूप में, दिखाई पड़ते हैं। ये नखर लैंगिक भिन्नता के भी सूचक हैं, क्योंकि नर में मादा की अपेक्षा ये अधिक बड़े होते हैं। ये पर्याप्त चलिष्ण होते हैं और ऐसा विश्वास किया जाता है कि मैथुन के समय ये मादा को उत्तेजित करते हैं।
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भारतीय अजगर भूरे रंग का होता है और इसकी देह पर गहरे धूसर सीमांत वाले तिर्यगागत (बर्फीनुमा) चकत्ते बने होते हैं। सिर पर बर्छी की आकृति का एक भूरा चिह्न होता है तथा शीर्ष के पार्श्वों पर धीरे-धीरे सँकरी होती हुई गुलाबी भूरी पट्टियाँ होती हैं जो नेत्रों के आगे तक भी पहुँच जाती हैं। अजगर का निचला भाग पीले और भूरे धब्बों से युक्त हलके धूसर रंग का होता है।
 
भारतीय अजगर भूरे रंग का होता है और इसकी देह पर गहरे धूसर सीमांत वाले तिर्यगागत (बर्फीनुमा) चकत्ते बने होते हैं। सिर पर बर्छी की आकृति का एक भूरा चिह्न होता है तथा शीर्ष के पार्श्वों पर धीरे-धीरे सँकरी होती हुई गुलाबी भूरी पट्टियाँ होती हैं जो नेत्रों के आगे तक भी पहुँच जाती हैं। अजगर का निचला भाग पीले और भूरे धब्बों से युक्त हलके धूसर रंग का होता है।
  
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अजगर [[भारत]] का सबसे बड़ा मोटा साँप है। यह वज़न में 250 पौंड तक का पाया गया है। भारतीय अजगर की अधिकतम लंबाई 7,000 मि. मी. तक और स्थूलतम स्थान पर मोटाई 900 मि. मी. तक पाई गई है।  
  
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11:15, 20 मई 2018 के समय का अवतरण

अजगर
अजगर
जगत एनीमेलिया (Animalia)
संघ कॉर्डेटा (Chordata)
वर्ग सरीसृप (Reptilia)
गण स्क्वमाटा (Squamata)
उपगण सर्प (Serpentes)
अन्य जानकारी अजगर भारत का सबसे बड़ा मोटा साँप है। यह वज़न में 250 पौंड तक का पाया गया है। भारतीय अजगर की अधिकतम लंबाई 7,000 मि. मी. तक और स्थूलतम स्थान पर मोटाई 900 मि. मी. तक पाई गई है।

अजगर एक साँप, जो बहुत बड़ा होता है और गरम देशों में पाया जाता है। प्राचीन यूनानी ग्रंथों में एक विशालकाय साँप का उल्लेख मिलता है, जिसका वध अपोलो (यवन सूर्य देवता) ने डेल्फ़ी में किया था। आधुनिक प्राणि विज्ञान में यह साँप बोइडी वंश एवं पाइथॉनिनी उपवंश के अंतर्गत परिगणित होता है। इसकी विभिन्न जातियाँ पुरातन जगत् के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाई जाती हैं। सर्पों के इस वर्ग में कुछ तो तीस फुट या इससे भी अधिक लंबे मिलते हैं। अधिकांश अजगर वृक्षों पर रहते हैं, परंतु कुछ जल के आसपास पाए जाते हैं, जहाँ वे जल में डूबे या उतराए पड़े रहते हैं।

अजगरों में पश्चपादों के अवशेष मिलते हैं। इनकी श्रोणिमेखला (पेलविक गर्डिल) की संरचना जटिल होती है तथा वह कछुओं की श्रोणि मेखला के समान पसलियों के भीतर एक विचित्र स्थिति में रहती है। पश्चपाद एक छोटी हड्डी के रूप में दिखाई पड़ता है जिसे उरु-अस्थि कहते हैं। पश्चपाद के बाहरी भाग, उरु-अस्थि के अंत में स्थित एक या दो अस्थि ग्रंथिकाओं एवं अवस्कर (क्लोएका) के दोनों ओर शल्क (स्केल) से बाहर निकले हुए नखर (क्लॉ) के रूप में, दिखाई पड़ते हैं। ये नखर लैंगिक भिन्नता के भी सूचक हैं, क्योंकि नर में मादा की अपेक्षा ये अधिक बड़े होते हैं। ये पर्याप्त चलिष्ण होते हैं और ऐसा विश्वास किया जाता है कि मैथुन के समय ये मादा को उत्तेजित करते हैं।

अजगर पेड़ों पर चुपचाप पड़ा रहता है और शिकार के पास आते ही उस पर कूद पड़ता है तथा गला घोंटकर उसे निगल जाता है।

अजगर अपने अंडों की देखभाल बहुत सावधानी से करते हैं। मादा अजगर एक समय में सौ या इससे अधिक अंडे देती है और बड़ी सावधानी से उनकी रक्षा करती है। वह उनके चारों ओर कुंडली मारकर बैठ जाती है तथा उन्हें सेती रहती है। यह क्रिया कभी-कभी चार महीने या इससे भी अधिक समय तक चलती रहती है जिसके मध्य इसके शरीर का ताप सामान्य ताप से कई अंश अधिक हो जाता है।

भारतीय अजगर

भारतीय अजगर भूरे रंग का होता है और इसकी देह पर गहरे धूसर सीमांत वाले तिर्यगागत (बर्फीनुमा) चकत्ते बने होते हैं। सिर पर बर्छी की आकृति का एक भूरा चिह्न होता है तथा शीर्ष के पार्श्वों पर धीरे-धीरे सँकरी होती हुई गुलाबी भूरी पट्टियाँ होती हैं जो नेत्रों के आगे तक भी पहुँच जाती हैं। अजगर का निचला भाग पीले और भूरे धब्बों से युक्त हलके धूसर रंग का होता है।

अजगर भारत का सबसे बड़ा मोटा साँप है। यह वज़न में 250 पौंड तक का पाया गया है। भारतीय अजगर की अधिकतम लंबाई 7,000 मि. मी. तक और स्थूलतम स्थान पर मोटाई 900 मि. मी. तक पाई गई है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 1”, हिन्दी विश्वकोश, 1960 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 81।

बाहरी कड़ियाँ

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