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'''ऊँट''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Camel'') एक विशालकाय और बहुत ही सहनशील पशु है जो कैमलायडी कुल का सदस्य है जो मेमेलिया वर्ग में आती है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे '''रेगिस्तान का जहाज़''' भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में 21-21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है।
 
'''ऊँट''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Camel'') एक विशालकाय और बहुत ही सहनशील पशु है जो कैमलायडी कुल का सदस्य है जो मेमेलिया वर्ग में आती है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे '''रेगिस्तान का जहाज़''' भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में 21-21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है।
 
==सामान्य परिचय==
 
==सामान्य परिचय==
 
ऊंट दो प्रकार के होते हैं- अरब या एक कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलसड्रोमेडेरियस कहते हैं तथा 2 कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलस बैक्ट्रिएनस कहते हैं। यह पशु अब जंगलों में नहीं पाया जाता है। [[भारत]] में केवल एक कूबड़ वाला ऊंट ही पाया जाता है। [[राजस्थान]], [[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[पंजाब]] आदि प्रान्तों में ऊंटों की संख्या ज्यादा है। 1966 की गणना के अनुसार विश्व में लगभग 50 लाख ऊंट थे, जिसमें से भारत में 10 लाख हैं। भारत के कुल ऊंटों की आधी संख्या राजस्थान में है। ऊंट एक विशाल और मजबूत व ऊंचा पशु है जिसकी ऊंचाई 2 मीटर से 3 मीटर तक हो सकती है।
 
ऊंट दो प्रकार के होते हैं- अरब या एक कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलसड्रोमेडेरियस कहते हैं तथा 2 कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलस बैक्ट्रिएनस कहते हैं। यह पशु अब जंगलों में नहीं पाया जाता है। [[भारत]] में केवल एक कूबड़ वाला ऊंट ही पाया जाता है। [[राजस्थान]], [[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[पंजाब]] आदि प्रान्तों में ऊंटों की संख्या ज्यादा है। 1966 की गणना के अनुसार विश्व में लगभग 50 लाख ऊंट थे, जिसमें से भारत में 10 लाख हैं। भारत के कुल ऊंटों की आधी संख्या राजस्थान में है। ऊंट एक विशाल और मजबूत व ऊंचा पशु है जिसकी ऊंचाई 2 मीटर से 3 मीटर तक हो सकती है।
 
====शारारिक बनावट एवं खान-पान====
 
====शारारिक बनावट एवं खान-पान====
ऊंट की टांगे और गर्दन लम्बी तथा पीठ पर एक बडा सा कूबड़ होता है। इसके पैरों में गद्दियां होती है। नथुने पतले होते हैं जिस कारण से रेत नाक में नहीं जाती। इसके पहले और दूसरे अमाशयों की दीवारों में जल संचिकाएं होती है तथा कूबड़ में वसा भरी रहती है। यह पशु 25 लीटर तक जल का भण्डारण कर सकता है। इसके दांत नुकीले होते हैं तथा जुगाली के अलावा लड़ाई में भी दांतों का प्रयोग करता है। और एक ही स्थान पर खाने के बजाय चरना ज्यादा पसन्द करता है और मोटी-झोटी वनस्पति भी चाव से खाता है। भुसा, मौठ, मूंग, चना आदि का पूरक चारा भी दिया जाता है। ऊंट को ताजा फिटकरी भी पिलाई जाती है। यह पशु 5 वर्ष की उम्र में जवान हो जाता है और 40-50 वषरें तक जीता है। ऋतुकाल में नरपशु मदान्ध हो जाता है। शोर मचाता है, एक बार में एक मादा एक बच्चे को जन्म देती है तथा गर्भावधि 11-13 महीने की होती है। ऊंटनी अपने बच्चे को एक वर्ष तक दूध पिलाती है।
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ऊंट की टांगे और गर्दन लम्बी तथा पीठ पर एक बडा सा कूबड़ होता है। इसके पैरों में गद्दियां होती है। नथुने पतले होते हैं जिस कारण से रेत नाक में नहीं जाती। इसके पहले और दूसरे अमाशयों की दीवारों में जल संचिकाएं होती है तथा कूबड़ में वसा भरी रहती है। यह पशु 25 लीटर तक जल का भण्डारण कर सकता है। इसके दांत नुकीले होते हैं तथा जुगाली के अलावा लड़ाई में भी दांतों का प्रयोग करता है। और एक ही स्थान पर खाने के बजाय चरना ज्यादा पसन्द करता है और मोटी-झोटी वनस्पति भी चाव से खाता है। भुसा, मौठ, मूंग, चना आदि का पूरक चारा भी दिया जाता है। ऊंट को ताजा फिटकरी भी पिलाई जाती है। यह पशु 5 वर्ष की उम्र में जवान हो जाता है और 40-50 वषरें तक जीता है। ऋतुकाल में नरपशु मदान्ध हो जाता है। शोर मचाता है, एक बार में एक मादा एक बच्चे को जन्म देती है तथा गर्भावधि 11-13 महीने की होती है। ऊंटनी अपने बच्चे को एक वर्ष तक दूध पिलाती है।<ref>{{cite web |url=http://www.rachanakar.org/2012/01/blog-post_5904.html |title=यशवन्त कोठारी का आलेख : रेगिस्तान का जहाज : ऊंट |accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language=हिंदी }}</ref>
====ऊँटों के प्रकार====
 
भारत में दो प्रकार के ऊंट पाये जाते हैं-
 
#  लद्दू ऊंट जो बोझ ढ़ोते हैं
 
#  सवारी ऊंट - जो मुख्य रूप से सवारी के काम आते हैं।
 
बोझा ढ़ोने वाले लद्दू ऊंट बड़े बलिष्ट होते हैं तथा मैदानी, रेगिस्तानी और पहाड़ी भागों में समान शक्ति के साथ काम करते हैं। ये ऊंट 400 किलो तक बोझा ढ़ो सकते हैं तथा 3 किमी प्रति घंटे की गति से 30-40 किमी तक चल सकता हैं। सवारी के ऊंटों के पैर छोटे, छाती चौड़ी होती है। ये बिना रुके 100 किमी तक जा सकते हैं।
 
 
 
रेगिस्तानी ऊंट तीन प्रकार के होते हैं, बीकानेरी, जैसलमेरी और सिंधी ऊंट। जैसलमेरी ऊंट शक्ति, कार्यक्षमता में सबसे श्रेष्ठ होता है। ये ऊंट खेती तथा परिवहन दोनों के काम आते हैं। ऊंटों में प्रजनन हेतु राजस्थान राज्य अन्य राज्यों से काफी आगे हैं। ऊंटों में मदकाल [[दिसम्बर]] से [[मार्च]] तक रहता है। 6 वर्ष का ऊंट इस कार्य हेतु उपयुक्त है। एक ऊंट 30-50 ऊंटनियों से संगम कर सकता है। तथा 22 वर्ष की उम्र तक मद में आता है। ऊंटनी 4 वर्ष की उम्र से गर्भ धारण कर सकती है। ऊंटनियां 20 वर्ष की उम्र तक बच्चा दे सकती है। एक बार में एक बच्चा होता है तथा गर्भकाल 11-13 मास तक रहता है। गर्भपात एक सामान्य घटना है।
 
====प्रजनन क्षेत्र====
 
[[बीकानेर]], [[गंगानगर]] आदि क्षेत्रों में ऊंटों का प्रजनन होता है। ऊंटों के प्रजनन में राजस्थान के बाद [[कच्छ]] ([[गुजरात]]) है। ऊंटों को सायबानो में रखा जाता है। सेना के ऊंटों को विशेष प्रबन्ध से रखा जाता है। नकेल से ऊंट को बांधा जाता है। ऊंट पर कसी जीन मजबूत होनी चाहिए तथा कूबड़ पर घाव न हो ऐसी व्यवस्था हो। ऊंटों की रोमावली बढ़ जाती है और इसे [[बसन्त ऋतु]] में काटकर कम्बल व अन्य गरम कपड़े बनाने के काम लिया जा सकता है। ठण्डे प्रदेशों में एक ऊंट से 5 किलो तक बाल प्राप्त किये जा सकते हैं। ऊंटों के प्रसिद्ध रोगों में गिल्टीरोग, निमोनिया, मोरा, अलर्क, सुर्रा तथा अन्य त्वचा रोग हैं।
 
====ऊँटों का महत्त्व====
 
ऊंट देश की अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका अदा करते हैं। खेत जोतने, बोझा ढ़ोने, परिवहन, पानी खींचने आदि में ये काम में आते हैं। राजस्थान में ऊंटों पर डाक सप्लाई की जाती है। पुस्तकालय चलाये जाते हैं तथा ऊंटों पर चल चिकित्सालय की व्यवस्था भी होती है। रेतीले क्षेत्रों में ऊंट ज्यादा लाभदायक पशु है। ऊंट गाड़ी पर 500 किलो तथा पीठ पर 300 किलो बोझा ढ़ो सकता है। ऊंटों का उपयोग परिवहन, खेती, व्यापार के अलावा भी किया जा सकता है। ऊंट के कई उत्पाद है जो काम में आते हैं। ऊंटों से बाल चमड़ा, मांस, कच्ची अस्थियां, दूध तथा खाद प्राप्त किये जाते हैं।
 
====सेना में योगदान====
 
देश की सेनाओं, सीमा सुरक्षा बलों, स्काउट, पुलिस आदि में भी ऊंटों का योगदान प्रमुख हैं। राजस्थानी सीमाओं पर तस्करी रोकने, गश्त लगाने तथा सेनाओं की मदद भी ऊंट करते हैं। युद्ध में प्राचीन काल में ऊंटों का उपयोग हाथी तथा घोड़ों के साथ-साथ होता था। कई प्रेम कहानियों में ऊंट ने अपनी भूमिका अदा की है। रेगिस्तानी क्षेत्रों की संस्कृति, परम्परा, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा सभी में ऊंट एक महत्वपूर्ण पशु है। आज भी हजारों परिवार ऊंटों की आमदनी से अपना खर्चा चलाते हैं। ऊंट उनकी रोजी-रोटी का महत्वपूर्ण साधन है। साहित्य, संस्कृति, कला, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य, भित्ति चित्रों सभी में ऊंटों को प्राथमिकता से उकेरा जाता है। [[ढोला मारू|ढोलामारु]] की अमर प्रेम कहानी हो या [[लैला मजनूं]] की दास्तान बिना ऊंट के अधूरी है।<ref>{{cite web |url=http://www.rachanakar.org/2012/01/blog-post_5904.html |title=यशवन्त कोठारी का आलेख : रेगिस्तान का जहाज : ऊंट |accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language=हिंदी }}</ref>
 
 
==मरूप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय==
 
==मरूप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय==
मरूप्रदेश में ऊँट अपनी पहचान अलग से रखता है। रेगिस्तान के लेखन में अगर इस पशुधन का नाम न लिया जाय तो मारवा का परिचय अधूरा रह जाएगा। मारवाड़ में ऊँट का संबंध जनजीतवन के प्रत्येक ताने-बाने से जुड़ा हुआ है। इस पशु ने अपना स्थान इतिहास में भी बनाया है तथा मरूप्रदेश में उपयोगिता की दृष्टि से इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ऊँट ने मारवा के लोगों के जीवन में एक अहम् भूमिका निभाई है। साहित्य में विशेषकर कथा, कहानी, वात, गीत, किस्सागोई इत्यादि में ऊँटों के संदर्भ बिखरे पड़े हैं।
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{{Main|ऊँट का परिचय}}
सामरिक दृष्टि से ऊँट अत्यन्त उपयोगी जानवर रहा है तथा आज भी है। संवाद-प्रेषण और यातायात में ऊँट ने एक अलग पहचान बनाई है।
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मरूप्रदेश में ऊँट अपनी पहचान अलग से रखता है। रेगिस्तान के लेखन में अगर इस पशुधन का नाम न लिया जाय तो मारवा का परिचय अधूरा रह जाएगा। मारवाड़ में ऊँट का संबंध जनजीतवन के प्रत्येक ताने-बाने से जुड़ा हुआ है। इस पशु ने अपना स्थान इतिहास में भी बनाया है तथा मरूप्रदेश में उपयोगिता की दृष्टि से इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ऊँट ने मारवा के लोगों के जीवन में एक अहम् भूमिका निभाई है। साहित्य में विशेषकर कथा, कहानी, वात, गीत, क़िस्सा गोई इत्यादि में ऊँटों के संदर्भ बिखरे पड़े हैं।
 
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सामरिक दृष्टि से ऊँट अत्यन्त उपयोगी जानवर रहा है तथा आज भी है। संवाद-प्रेषण और यातायात में ऊँट ने एक अलग पहचान बनाई है।<ref>{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj105.htm |title=मरुप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय|accessmonthday=26 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=igcna.nic.in |language=हिंदी }}</ref>
सामाजिक एवं आर्थिक उपयोगिता की दृष्टि से भी मारवाड़वासी ऊँट से भली-भांति परिचित है। खेती के कार्य में हल खींचने से लेकर कुएं से पानी निकालने तक ऊँट का कुधा काम आता रहा है। मणोंबन्द भार लादना हो या रातों-रात सौ कोस की दूरी तय करनी हो, चाहे भले-बुरे संदेश पहुँचाने हों, प्रारंभ से ऊँच ही इन कार्यों में उपयोगी रहा है। ऐतिहासिक संदर्भ में मिला है कि जब महाराजा जसवंत सिंह जी प्रथम का देहान्त काबुल में हो गया था तब रबारी रोधादास को इस दु:खद समाचार के साथ पाग लेकर जोधपुर भेजा गया। वह अट्टारह दिन में पेशावर से जोधपुर पहुँचा। उसका संदर्भ निम्न प्रकार से उपलब्ध है :-
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==ऊँट की चाल==
 
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{{Main|ऊँट की चाल}}
"रबारी राधौ राधौदास रो, हकीकत पोस वद 10 गुरु पेसोर था, श्री महाराजा देवलोक हुआ तरै पाग लै ने जोधपुर गयो पोस खुद 13 पोहतो।"
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ऊँट अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रूप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबड़कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण अर्थात् खुलकर नहीं चलने वाल भी ऊँट की एक चाल होती है। सूरड़को, टसरियो लूंरियो, पड़छ आदि ऊँट की अन्य चालों में से एक है।<ref>{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj105.htm#chaal |title=ऊँट की चाल|accessmonthday=26 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=igcna.nic.in |language=हिंदी }}</ref>
 
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==ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ==
उसी प्रकार जब महाराजा अजीत सिंह जी का जन्म [[लाहौर]] में हुआ तब उसी राधों ने उसकी बधाई का संदेश ऊँट से आठ दिन में जोधपुर पहुँचकर दिया था। इस संदर्भ का जिक्र जोधपुर कहीकत की वही में उपलब्ध है:-
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{{Main|ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ}}
 
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* मारवा में ऊँट की सवारी करने की भी समाज में परम्पराएँ स्थापित हैं। जैसे अपनी पत्नी को हमेशा ऊँट पर पीछे बिठाया जाता है, बहन-बेटी को सवार हमेशा आगे बैठाता है तथा उसकी मोहरी जनाना सवारी के हाथ में होती है।
"चैत वदि 12 रबारी राधौ चैत वदि 5 रो हालियो। लाहौर सुदिन 8 में आयो। श्री महाराजा जी रे बेटा 2 हुआरी खबर ल्यायो।"
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* ऊँटों का और रबारियों का साथ चोली-दामन जैसा है। पुराने जमाने में रबारी सबसे ज्यादा विश्वासी और सन्देशवाहक माने जाते थे और वे रातों-रात सौ-सौ कोस जाने का जिगर रखते थे। इन्होंने हमेशा राजपूतों की सेवा तन-मन से की है।<ref>{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj105.htm#marwar |title=मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ|accessmonthday=26 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=igcna.nic.in |language=हिंदी }}</ref>
 
 
ऊँट की गति के विषय मे भी इतिहास में अनेक संदर्भ मिलते हैं। एक अच्छा ऊँट एक रात में सौ कोस चलता था। वह पचास को जाता और पचास को वापिस आता था। यह बात "रतन मंजरी" के संदर्भ में उपलब्ध है:-
 
 
 
"इतरि कहि नै कूँवर एकै वडै ऊँट चढ़ने रतन मंजरी नै वासै चढ़ाय नै हालिया। सु ऊँठ एसौ, जिको रात पहुँचे वासै सौ कोस जावै।"
 
 
 
एक अन्य संदर्भ भी इसी प्रकार उपलब्ध है :-
 
 
 
"तरै जखडै उण सांढ नै सारणी माँडी। तिका मास एक माँहै सझाई। तिका कोस पचास जाय नै एकै ढाण पाछी आवै।"
 
 
 
प्रेम कथाओं में मूमल-महेन्द्रा की कथा आज भी जन-जन की जुबान पर है। महेन्द्रा हमेशा रात को चिकल नामक ऊँट को लेकर अमरकोट से लोद्रवा ([[जैसलमेर]]) आता और रातों रात वापिस चला जाता था। ढोला मरवण की कथा भी ऊँट के उल्लेख के बिना अधूरी लगती है। ढोला का मुधरों नामक ऊँट उसकी प्रेम कथा का मूक साक्षी रहा है।
 
ऊँटों की चाल के संबंध में भी साहित्य में कुछ संदर्भ उपलब्ध हैं। मोटे रूप से गाँवों में ऊँटों की चाल के लिए जो शब्द परम्परा से प्रचलित हैं, उनमें मुख्य रूप से मुधरो, ढाण, तबडको, रबड़को, खग्रे जैसे शब्द प्रमुखता रखते हैं।
 
ढोला मारु री बात में एक संदर्भ निम्न प्रकार से मिलता है:-
 
 
 
"अबै करहौ (ऊँट) थाकौ। भूख पण लागी, तिण सूं मुधरो चालण लागौ।"
 
 
ऊँट को संस्कृत में क्रेमलक कहते हैं जो अंग्रेजी के कैमल से मिलता-जुलता शब्द है। इसके अलावा संस्कृत मे उसे उष्ट्, करभ आदि भी कहते हैं। मारवाड़ में ऊँटों के लिए कई प्रकार के अन्य सम्बोधन भी प्रचलित हैं जिनसे सभी लोग परिचित नहीं है। साधारणतया ऊँट के पर्यायवाची शब्दों में तोडीयो, जाकोड़ो, मईयो, टोड इत्यादि है। इसके अलावा भी डिंगल कोष में उसके अनेक विभिन्न नाम विशेष अर्थों में उपलब्ध हैं।
 
 
 
पाकेट उस ऊँट को कहते हैं जो काफी बूढ़ा हो जाता है। उस ऊँट के संबंध में लोग बात करते हैं तो कहा जाता है कि फलों ऊँट तो पाकेट है अर्थात उम्र में परिप है। बहुत अधिक तीव्र गति से चलने वाले ऊँट को जमीकरवत अर्थात जमीन को गति से काटने वाला कहा जाता है। फीणानाखतो ऊँट जब अपनी गति से चलता है तो उसके मुँह से झाग निकलते रहते हैं जिसके कारण ऐसे ऊँट को फीणानाखतो भी कहा जाता है।
 
 
 
मारवा में डिंगल साहित्य में ऊँट के लिए अन्य जितने भी शब्द प्रचलित हैं, वे मुख्य रूप से गिरड़, गधराव, जाखोड़ो, प्रचंड, पांगल, लोहतोड़ो, अणियाला, उमदा, आंखरातवर, पींडाढाल, करह, काछी, हाथी मोलो, मोलध (अर्थात अत्यंत कीमती ऊँट), सढ्ढो, सुपंथ, सांठियों, टोड़, गध, मुणकमलो, सल, जूंग, करेलड़ो, नसलवंड, कलनास, कंटकअसण, गंडण, दुखा, सुतर, करहो, सरठौ, करम, जुमाद, दुंखतक, गय इत्यादि नामों से जाने जाते हैं।
 
 
 
लागट भी ऊँट के लिए ही प्रयुक्त होता है। ऐसे ऊँट के पाँव चलते समय पेट से घर्षण करते हैं तो वह अच्छा नहीं समझा जाता है। उसे ऊँट को लागट कहा जाता है, जिसकी कीमत भी ज्यादा नहीं होती। ऊँट सवार को मारवाड़ में सुतर सवार कहा जाता है। पुराने समय में मादा ऊँटनी की सवारी करने वाले को सांडिया कहा जाता था अथवा ऊँट रो ओठी भी कहा जाता था। इसका सही शब्द ऊँठी से ओठी में परिवर्तित हुआ मालूम पड़ता है। जहूर खाँ मेहर ने तो ऊँटों के पर्यायवाची ढूंढने मे कमाल ही कर दिया है। उन्होंने ऊँटो के लिए जो नाम दिए हैं उनमें जकसेस, रातलौ, खपा, करसलौ, जमाद, वैत, मरुद्वीप, बारगौर, मय, बेहरो, मदधर, भूरौ, विडंगक, माकङाझाङ्, भूमिगम, धैधीगर, अणियाल, खणक, अलहैरी, पटाल, मयंद, ओढारु, पांगल, कछौ, आँख, रातबंर, टोरडौ, कटक असण, करसौ, घघ, संडो, करहौ, कुलनारु, सरठौ, हंडबचियौ, सरसैयौ, गधराव, सरभ, करसलियौ, गय, जूंग, नहटू, जमाज, गिडंण, तोई, दुरंतक, मणकमलौ, बरहास, दरक, वास, वासत, लम्बोस्ट, सिन्धु, ओढौ, विडंग, कंढाल, भूणमलौ, सढढौ, दासेरक, सल (सव्वू), लोहनडौ, फफिडालौ, जोडरौ, नसलम्बड़ भेकि, दुरग, भूतहन, ढागौ, करहास, दोयककुत, मरूप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, वक्रनामी, वक्रगीव, जंगल तणौ जतो, पट्टाझर, सींधडौ, गिङ्कंधा, गूफलौ, कमाल भड्डौ, महागात, नेसारु, सुतराकस और द्टाल आदि प्रमुख हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj105.htm |title=मरुप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय|accessmonthday=26 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=igcna.nic.in |language=हिंदी }}</ref>
 
  
 
==विशेषताएँ==
 
==विशेषताएँ==
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{{Main|ऊँट की विशेषताएँ}}
 
* ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमें दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है।
 
* ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमें दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है।
 
* एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच उपर तक बढ़ता है।
 
* एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच उपर तक बढ़ता है।
 
* ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है।
 
* ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है।
 
* जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
 
* जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
* ऊँट की औसतन आयु 40 से 50 वर्ष तक की होती है।
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* एक ऊंटनी 12 से 14 महीनों के अंदर एक बच्चे को जन्म देती हैं तो इसका वजन 80 पौंड तक होता है और बच्चा बिल्कुल सफ़ेद रंग का होता है। जन्म के कई घंटे बीतने के बाद ही ऊंटनी का बच्चा खड़ा हो पाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindipot.com/animal-birds-facts/about-camel-in-hindi/ |title=ऊंट के बारे में ख़ास बातें जाने|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दी पॉट |language=हिंदी }}</ref>  
* ऊँट सर्दियों में 2 महीनो तक बिना पानी के रह सकते हैं। ऊँट रोजाना पानी नहीं पीता। ऊँट एक बार में 100 से 150 लीटर तक पानी पी सकता है। ऊँट का प्रमुख्य आहार पेड़ों की हरी पत्तियां हैं।
 
* ऊँट को कभी भी पसीना नहीं आता क्योंकि इसकी मोटी चमड़ी सूर्य की किरणों को रिफ्लेक्ट करती है।
 
* ऊँट अरबियन कल्चर में एक एहम भूमिका निभाते हैं अरबियन भाषा में ऊँट के लिए 160 से अधिक शब्द हैं।
 
* ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है क्योंकि वह रेगिस्तान में आसानी से चल और दौड़ सकता है।
 
* ऊँट के तकरीवन 34 दांत होते हैं।
 
* ऊँट की तीन पलकें होती हैं जिसके कारण रेगिस्तान में चलने बाली तेज़ हवाओं और धूल-मिटटी से उसकी रक्षा करती हैं।
 
* ऊँटों की देखने और सुनने की शक्ति बहुत तेज़ होती है।
 
* जन्म से ही ऊंट के बच्चों के कूबड़ नहीं होते।
 
* एक ऊंटनी 12 से 14 महीनों के अंदर एक बच्चे को जन्म देती हैं तो इसका वजन 80 पौंड तक होता है और बच्चा बिल्कुल सफ़ेद रंग का होता है। जन्म के कई घंटे बीतने के बाद ही ऊंटनी का बच्चा खड़ा हो पाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindipot.com/animal-birds-facts/about-camel-in-hindi/ |title=ऊंट के बारे में ख़ास बातें जाने|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दी पॉट |language=हिंदी }}</ref>
 
* ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है।
 
* ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है।
 
* ईसा से 1200 वर्ष पूर्व से ऊंटों पर सामान लादकर लाने-ले जाने की प्रथा चल रही है। उसके बाद सैनिकों ने भी ऊंटों का उपयोग अपना सामान लादने के लिए किया। [[राजस्थान]] में [[अजमेर]] से 14 किमी दूर [[पुष्कर]] में प्रतिवर्ष पशु मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में ऊंटों की खरीद-फरोख्त होती है।
 
*  ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।
 
 
==रेगिस्तान का जहाज़==
 
==रेगिस्तान का जहाज़==
ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है। मरुस्थल जैसी गर्म जगहों पर पाया जाने वाला यह जीव अपने “कूबड़” के कारण बड़ा दिलचस्प प्रतीत होता है। ऊंटों के जन्म से ही कूबड़ नहीं होता बल्कि ये बड़े होने पर स्वतः आता है। ऊंट के बच्चे शुरुआत में कई साल तक अपनी माँ के साथ ही रहते हैं। ऊंट बहुत ही शांत स्वभाव के पशु होते हैं वह कभी भी बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होते ऊंट के कूबड़ में उसके पूरे शरीर की मोटी चर्बी जमा होती है और इसी कूबड़ की वजह से ऊंट भयंकर गर्मी वाले रेगिस्तान में भी आराम से रह पाता है। एशियाई ऊंटों के दो कूबड़ होते हैं जबकि अरब के ऊंटों का सिर्फ एक कूबड़ होता है ऊंट की आँखों में पलकों की तीन परत होती हैं जिससे वह धूल और रेत से आँखों को बचा पाता है। ऊंटों के कान छोटे और बालों से भरे होते हैं हालाँकि ऊंटों के सुनने की शक्ति बहुत तेज होती है। ऊंट रोजाना पानी नहीं पीते लेकिन जब पीते हैं तो एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीते हैं ऊंट कांटेदार टहनियों को भी आसानी से खा सकते हैं जबकि दूसरे पशु कांटेदार तने या टहनियां नहीं खा पाते। ऊंट को अगर मालिक डांटता है तो ऊंट जमीन पर थूकना शुरू कर देता है। ऊंट की मोटी चमड़ी सूरज की किरणों को रिफ्लेक्ट कर देती है इसलिए ऊंट का शरीर कभी भी ज्यादा गर्म नहीं होता। ऊंट को कभी पसीना नहीं आता इसीलिए वह रेगिस्तान के लिए सबसे उत्तम पशु है। ऊंट को आपने अक्सर बहुत धीमा धीमा चलते देखा होगा लेकिन ऊंट रेगिस्तान में 40 मील प्रति घंटा से तेज रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। ऊंट घास, अनाज, बीज, टहनियाँ ही खाते हैं। ऊंट अपने नाक के नथुने भी बंद कर लेते हैं ताकि रेत अंदर ना घुसे। ऊंटों की औसत आयु 40-50 साल होती है। ऊंट सर्दियों में दो महीने तक बिना पानी पिए रह सकते हैं, दरअसल ऊंटों के कूबड़ में उनके शरीर की चर्बी जमी होती है जो जरूरत पड़ने पर उनके लिए खाना और पानी की कमी की पूर्ति करती रहती है। ऊंटों का पेशाब चाशनी जैसा गाढ़ा होता है। ऊंट के दूध में गाय से दूध से कम वसा होता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindisoch.com/about-camel-in-hindi/ |title=रेगिस्तान का जहाज़|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दी सोच |language=हिंदी }}</ref>  
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ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है। मरुस्थल जैसी गर्म जगहों पर पाया जाने वाला यह जीव अपने “कूबड़” के कारण बड़ा दिलचस्प प्रतीत होता है। ऊंटों के जन्म से ही कूबड़ नहीं होता बल्कि ये बड़े होने पर स्वतः आता है। ऊंट के बच्चे शुरुआत में कई साल तक अपनी माँ के साथ ही रहते हैं। ऊंट बहुत ही शांत स्वभाव के पशु होते हैं वह कभी भी बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होते ऊंट के कूबड़ में उसके पूरे शरीर की मोटी चर्बी जमा होती है और इसी कूबड़ की वजह से ऊंट भयंकर गर्मी वाले रेगिस्तान में भी आराम से रह पाता है। एशियाई ऊंटों के दो कूबड़ होते हैं जबकि अरब के ऊंटों का सिर्फ एक कूबड़ होता है ऊंट की आँखों में पलकों की तीन परत होती हैं जिससे वह धूल और रेत से आँखों को बचा पाता है। ऊंटों के कान छोटे और बालों से भरे होते हैं हालाँकि ऊंटों के सुनने की शक्ति बहुत तेज होती है। ऊंट रोजाना पानी नहीं पीते लेकिन जब पीते हैं तो एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीते हैं ऊंट कांटेदार टहनियों को भी आसानी से खा सकते हैं जबकि दूसरे पशु कांटेदार तने या टहनियां नहीं खा पाते। ऊंट को अगर मालिक डांटता है तो ऊंट जमीन पर थूकना शुरू कर देता है। ऊंट की मोटी चमड़ी सूरज की किरणों को रिफ्लेक्ट कर देती है इसलिए ऊंट का शरीर कभी भी ज्यादा गर्म नहीं होता। ऊंट को कभी पसीना नहीं आता इसीलिए वह रेगिस्तान के लिए सबसे उत्तम पशु है। ऊंट को आपने अक्सर बहुत धीमा धीमा चलते देखा होगा लेकिन ऊंट रेगिस्तान में 40 मील प्रति घंटा से तेज रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। ऊंट घास, अनाज, बीज, टहनियाँ ही खाते हैं। ऊंट अपने नाक के नथुने भी बंद कर लेते हैं ताकि रेत अंदर ना घुसे। ऊंटों की औसत आयु 40-50 साल होती है। ऊंट सर्दियों में दो महीने तक बिना पानी पिए रह सकते हैं, दरअसल ऊंटों के कूबड़ में उनके शरीर की चर्बी जमी होती है जो ज़रूरत पड़ने पर उनके लिए खाना और पानी की कमी की पूर्ति करती रहती है। ऊंटों का पेशाब चाशनी जैसा गाढ़ा होता है। ऊंट के दूध में गाय से दूध से कम वसा होता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindisoch.com/about-camel-in-hindi/ |title=रेगिस्तान का जहाज़|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दी सोच |language=हिंदी }}</ref>  
 
==रोचक जानकारी==
 
==रोचक जानकारी==
 
लगभग 40 से 50 साल जिंदा रहने वाले ऊंट के शरीर में विभिन्न प्रकार की खूबियां होती हैं जिनके कारण वह रेगिस्तान के अलग और कठिन वातावरण में रह पाता है। रेगिस्तान में रेतभरी हवाएं चलती हैं जिनसे बचाव के लिए ऊंट की पलकों और कानों पर लंबे बाल होते हैं और इसकी नाक पूरी तरह से बंद हो जाती है। पलकों और कानों पर होने वाले लंबे बालों से रेत आंखों और कानों के अंदर नहीं जा पाती। ऊंट एक हफ्ते से ज्यादा पानी पिए बिना और कई महीनों तक बिना खाने के रह सकता है। ऊंट की एक बार में 46 लीटर तक पानी पीने की क्षमता होती है। ऊंट की पीठ पर एक कूबड़ होती है जिसमें ऊंट फैट (वसा) इकट्ठा करके रखता है और इसी ऊर्जा से महीनों तक अपना काम चलाता है। एक स्वस्थ ऊंट के शरीर का तापमान दिनभर में 34 डिग्री सेल्सियस से 41.7 डिग्री सेल्सियस के बीच में बदलता रहता है जिससे ऊंट पसीने के रूप में पानी के क्षय को रोकता है, जब वातावरण में तापमान बढ़ता है। ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है। ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है। ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।<ref>{{cite web |url=http://acchitips.com/%E0%A4%8A%E0%A4%81%E0%A4%9F-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A4%95-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE/ |title=ऊंट के बारे में रोचक जानकारी
 
लगभग 40 से 50 साल जिंदा रहने वाले ऊंट के शरीर में विभिन्न प्रकार की खूबियां होती हैं जिनके कारण वह रेगिस्तान के अलग और कठिन वातावरण में रह पाता है। रेगिस्तान में रेतभरी हवाएं चलती हैं जिनसे बचाव के लिए ऊंट की पलकों और कानों पर लंबे बाल होते हैं और इसकी नाक पूरी तरह से बंद हो जाती है। पलकों और कानों पर होने वाले लंबे बालों से रेत आंखों और कानों के अंदर नहीं जा पाती। ऊंट एक हफ्ते से ज्यादा पानी पिए बिना और कई महीनों तक बिना खाने के रह सकता है। ऊंट की एक बार में 46 लीटर तक पानी पीने की क्षमता होती है। ऊंट की पीठ पर एक कूबड़ होती है जिसमें ऊंट फैट (वसा) इकट्ठा करके रखता है और इसी ऊर्जा से महीनों तक अपना काम चलाता है। एक स्वस्थ ऊंट के शरीर का तापमान दिनभर में 34 डिग्री सेल्सियस से 41.7 डिग्री सेल्सियस के बीच में बदलता रहता है जिससे ऊंट पसीने के रूप में पानी के क्षय को रोकता है, जब वातावरण में तापमान बढ़ता है। ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है। ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है। ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।<ref>{{cite web |url=http://acchitips.com/%E0%A4%8A%E0%A4%81%E0%A4%9F-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A4%95-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE/ |title=ऊंट के बारे में रोचक जानकारी
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*[http://hindi.eenaduindia.com/States/West/Rajasthan/OthersInRajasthan/2016/07/22195019/Camel-rejiment-Posted-at-jaisalmer-border-for-security.vpf  ऊंट नहीं ट्रेंड सैनिक कहिए, देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर तैनात है इनकी रेजिमेंट]
 
*[http://hindi.eenaduindia.com/States/West/Rajasthan/OthersInRajasthan/2016/07/22195019/Camel-rejiment-Posted-at-jaisalmer-border-for-security.vpf  ऊंट नहीं ट्रेंड सैनिक कहिए, देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर तैनात है इनकी रेजिमेंट]
 
*[http://www.dw.com/hi/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9C/a-14737980 रेत में लुप्त होता रेगिस्तान का जहाज]
 
*[http://www.dw.com/hi/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%9C/a-14737980 रेत में लुप्त होता रेगिस्तान का जहाज]
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14:10, 9 मई 2021 के समय का अवतरण

ऊँट विषय सूची
ऊँट
ऊँट
जगत जंतु (Animalia)
संघ कौरडेटा (Chordata)
वर्ग स्तनधारी (Mammalia)
गण आर्टियोडैकटिला (Artiodactyla)
कुल कैमलिडाए (Camelidae)
जाति कैमेलस (Camelus)
प्रजाति बॅक्ट्रिऍनस (bactrianus)
द्विपद नाम कॅमलस बॅक्ट्रिऍनस (Camelus bactrianus)
संबंधित लेख गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, सिंह, बाघ
अन्य जानकारी अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज़ भी कहते हैं।

ऊँट (अंग्रेज़ी:Camel) एक विशालकाय और बहुत ही सहनशील पशु है जो कैमलायडी कुल का सदस्य है जो मेमेलिया वर्ग में आती है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज़ भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में 21-21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है।

सामान्य परिचय

ऊंट दो प्रकार के होते हैं- अरब या एक कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलसड्रोमेडेरियस कहते हैं तथा 2 कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलस बैक्ट्रिएनस कहते हैं। यह पशु अब जंगलों में नहीं पाया जाता है। भारत में केवल एक कूबड़ वाला ऊंट ही पाया जाता है। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब आदि प्रान्तों में ऊंटों की संख्या ज्यादा है। 1966 की गणना के अनुसार विश्व में लगभग 50 लाख ऊंट थे, जिसमें से भारत में 10 लाख हैं। भारत के कुल ऊंटों की आधी संख्या राजस्थान में है। ऊंट एक विशाल और मजबूत व ऊंचा पशु है जिसकी ऊंचाई 2 मीटर से 3 मीटर तक हो सकती है।

शारारिक बनावट एवं खान-पान

ऊंट की टांगे और गर्दन लम्बी तथा पीठ पर एक बडा सा कूबड़ होता है। इसके पैरों में गद्दियां होती है। नथुने पतले होते हैं जिस कारण से रेत नाक में नहीं जाती। इसके पहले और दूसरे अमाशयों की दीवारों में जल संचिकाएं होती है तथा कूबड़ में वसा भरी रहती है। यह पशु 25 लीटर तक जल का भण्डारण कर सकता है। इसके दांत नुकीले होते हैं तथा जुगाली के अलावा लड़ाई में भी दांतों का प्रयोग करता है। और एक ही स्थान पर खाने के बजाय चरना ज्यादा पसन्द करता है और मोटी-झोटी वनस्पति भी चाव से खाता है। भुसा, मौठ, मूंग, चना आदि का पूरक चारा भी दिया जाता है। ऊंट को ताजा फिटकरी भी पिलाई जाती है। यह पशु 5 वर्ष की उम्र में जवान हो जाता है और 40-50 वषरें तक जीता है। ऋतुकाल में नरपशु मदान्ध हो जाता है। शोर मचाता है, एक बार में एक मादा एक बच्चे को जन्म देती है तथा गर्भावधि 11-13 महीने की होती है। ऊंटनी अपने बच्चे को एक वर्ष तक दूध पिलाती है।[1]

मरूप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय

मरूप्रदेश में ऊँट अपनी पहचान अलग से रखता है। रेगिस्तान के लेखन में अगर इस पशुधन का नाम न लिया जाय तो मारवा का परिचय अधूरा रह जाएगा। मारवाड़ में ऊँट का संबंध जनजीतवन के प्रत्येक ताने-बाने से जुड़ा हुआ है। इस पशु ने अपना स्थान इतिहास में भी बनाया है तथा मरूप्रदेश में उपयोगिता की दृष्टि से इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ऊँट ने मारवा के लोगों के जीवन में एक अहम् भूमिका निभाई है। साहित्य में विशेषकर कथा, कहानी, वात, गीत, क़िस्सा गोई इत्यादि में ऊँटों के संदर्भ बिखरे पड़े हैं। सामरिक दृष्टि से ऊँट अत्यन्त उपयोगी जानवर रहा है तथा आज भी है। संवाद-प्रेषण और यातायात में ऊँट ने एक अलग पहचान बनाई है।[2]

ऊँट की चाल

ऊँट अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रूप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबड़कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण अर्थात् खुलकर नहीं चलने वाल भी ऊँट की एक चाल होती है। सूरड़को, टसरियो लूंरियो, पड़छ आदि ऊँट की अन्य चालों में से एक है।[3]

ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ

  • मारवा में ऊँट की सवारी करने की भी समाज में परम्पराएँ स्थापित हैं। जैसे अपनी पत्नी को हमेशा ऊँट पर पीछे बिठाया जाता है, बहन-बेटी को सवार हमेशा आगे बैठाता है तथा उसकी मोहरी जनाना सवारी के हाथ में होती है।
  • ऊँटों का और रबारियों का साथ चोली-दामन जैसा है। पुराने जमाने में रबारी सबसे ज्यादा विश्वासी और सन्देशवाहक माने जाते थे और वे रातों-रात सौ-सौ कोस जाने का जिगर रखते थे। इन्होंने हमेशा राजपूतों की सेवा तन-मन से की है।[4]

विशेषताएँ

  • ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमें दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है।
  • एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच उपर तक बढ़ता है।
  • ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है।
  • जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
  • एक ऊंटनी 12 से 14 महीनों के अंदर एक बच्चे को जन्म देती हैं तो इसका वजन 80 पौंड तक होता है और बच्चा बिल्कुल सफ़ेद रंग का होता है। जन्म के कई घंटे बीतने के बाद ही ऊंटनी का बच्चा खड़ा हो पाता है।[5]

रेगिस्तान का जहाज़

ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है। मरुस्थल जैसी गर्म जगहों पर पाया जाने वाला यह जीव अपने “कूबड़” के कारण बड़ा दिलचस्प प्रतीत होता है। ऊंटों के जन्म से ही कूबड़ नहीं होता बल्कि ये बड़े होने पर स्वतः आता है। ऊंट के बच्चे शुरुआत में कई साल तक अपनी माँ के साथ ही रहते हैं। ऊंट बहुत ही शांत स्वभाव के पशु होते हैं वह कभी भी बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होते ऊंट के कूबड़ में उसके पूरे शरीर की मोटी चर्बी जमा होती है और इसी कूबड़ की वजह से ऊंट भयंकर गर्मी वाले रेगिस्तान में भी आराम से रह पाता है। एशियाई ऊंटों के दो कूबड़ होते हैं जबकि अरब के ऊंटों का सिर्फ एक कूबड़ होता है ऊंट की आँखों में पलकों की तीन परत होती हैं जिससे वह धूल और रेत से आँखों को बचा पाता है। ऊंटों के कान छोटे और बालों से भरे होते हैं हालाँकि ऊंटों के सुनने की शक्ति बहुत तेज होती है। ऊंट रोजाना पानी नहीं पीते लेकिन जब पीते हैं तो एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीते हैं ऊंट कांटेदार टहनियों को भी आसानी से खा सकते हैं जबकि दूसरे पशु कांटेदार तने या टहनियां नहीं खा पाते। ऊंट को अगर मालिक डांटता है तो ऊंट जमीन पर थूकना शुरू कर देता है। ऊंट की मोटी चमड़ी सूरज की किरणों को रिफ्लेक्ट कर देती है इसलिए ऊंट का शरीर कभी भी ज्यादा गर्म नहीं होता। ऊंट को कभी पसीना नहीं आता इसीलिए वह रेगिस्तान के लिए सबसे उत्तम पशु है। ऊंट को आपने अक्सर बहुत धीमा धीमा चलते देखा होगा लेकिन ऊंट रेगिस्तान में 40 मील प्रति घंटा से तेज रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। ऊंट घास, अनाज, बीज, टहनियाँ ही खाते हैं। ऊंट अपने नाक के नथुने भी बंद कर लेते हैं ताकि रेत अंदर ना घुसे। ऊंटों की औसत आयु 40-50 साल होती है। ऊंट सर्दियों में दो महीने तक बिना पानी पिए रह सकते हैं, दरअसल ऊंटों के कूबड़ में उनके शरीर की चर्बी जमी होती है जो ज़रूरत पड़ने पर उनके लिए खाना और पानी की कमी की पूर्ति करती रहती है। ऊंटों का पेशाब चाशनी जैसा गाढ़ा होता है। ऊंट के दूध में गाय से दूध से कम वसा होता है।[6]

रोचक जानकारी

लगभग 40 से 50 साल जिंदा रहने वाले ऊंट के शरीर में विभिन्न प्रकार की खूबियां होती हैं जिनके कारण वह रेगिस्तान के अलग और कठिन वातावरण में रह पाता है। रेगिस्तान में रेतभरी हवाएं चलती हैं जिनसे बचाव के लिए ऊंट की पलकों और कानों पर लंबे बाल होते हैं और इसकी नाक पूरी तरह से बंद हो जाती है। पलकों और कानों पर होने वाले लंबे बालों से रेत आंखों और कानों के अंदर नहीं जा पाती। ऊंट एक हफ्ते से ज्यादा पानी पिए बिना और कई महीनों तक बिना खाने के रह सकता है। ऊंट की एक बार में 46 लीटर तक पानी पीने की क्षमता होती है। ऊंट की पीठ पर एक कूबड़ होती है जिसमें ऊंट फैट (वसा) इकट्ठा करके रखता है और इसी ऊर्जा से महीनों तक अपना काम चलाता है। एक स्वस्थ ऊंट के शरीर का तापमान दिनभर में 34 डिग्री सेल्सियस से 41.7 डिग्री सेल्सियस के बीच में बदलता रहता है जिससे ऊंट पसीने के रूप में पानी के क्षय को रोकता है, जब वातावरण में तापमान बढ़ता है। ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है। ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है। ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।[7]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यशवन्त कोठारी का आलेख : रेगिस्तान का जहाज : ऊंट (हिंदी) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  2. मरुप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय (हिंदी) igcna.nic.in। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2017।
  3. ऊँट की चाल (हिंदी) igcna.nic.in। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2017।
  4. मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ (हिंदी) igcna.nic.in। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2017।
  5. ऊंट के बारे में ख़ास बातें जाने (हिंदी) हिन्दी पॉट। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  6. रेगिस्तान का जहाज़ (हिंदी) हिन्दी सोच। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  7. ऊंट के बारे में रोचक जानकारी (हिंदी) achi tips। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।

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