ऊँट

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ऊँट (अंग्रेज़ी:Camel) एक विशालकाय और बहुत ही सहनशील पशु है जो कैमलायडी कुल का सदस्य है जो मेमेलिया वर्ग में आती है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज़ भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में 21-21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है।

सामान्य परिचय

ऊंट दो प्रकार के होते हैं- अरब या एक कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलसड्रोमेडेरियस कहते हैं तथा 2 कूबड़ वाला ऊंट जिसे कैमेलस बैक्ट्रिएनस कहते हैं। यह पशु अब जंगलों में नहीं पाया जाता है। भारत में केवल एक कूबड़ वाला ऊंट ही पाया जाता है। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब आदि प्रान्तों में ऊंटों की संख्या ज्यादा है। 1966 की गणना के अनुसार विश्व में लगभग 50 लाख ऊंट थे, जिसमें से भारत में 10 लाख हैं। भारत के कुल ऊंटों की आधी संख्या राजस्थान में है। ऊंट एक विशाल और मजबूत व ऊंचा पशु है जिसकी ऊंचाई 2 मीटर से 3 मीटर तक हो सकती है।

शारारिक बनावट एवं खान-पान

ऊंट की टांगे और गर्दन लम्बी तथा पीठ पर एक बडा सा कूबड़ होता है। इसके पैरों में गद्दियां होती है। नथुने पतले होते हैं जिस कारण से रेत नाक में नहीं जाती। इसके पहले और दूसरे अमाशयों की दीवारों में जल संचिकाएं होती है तथा कूबड़ में वसा भरी रहती है। यह पशु 25 लीटर तक जल का भण्डारण कर सकता है। इसके दांत नुकीले होते हैं तथा जुगाली के अलावा लड़ाई में भी दांतों का प्रयोग करता है। और एक ही स्थान पर खाने के बजाय चरना ज्यादा पसन्द करता है और मोटी-झोटी वनस्पति भी चाव से खाता है। भुसा, मौठ, मूंग, चना आदि का पूरक चारा भी दिया जाता है। ऊंट को ताजा फिटकरी भी पिलाई जाती है। यह पशु 5 वर्ष की उम्र में जवान हो जाता है और 40-50 वषरें तक जीता है। ऋतुकाल में नरपशु मदान्ध हो जाता है। शोर मचाता है, एक बार में एक मादा एक बच्चे को जन्म देती है तथा गर्भावधि 11-13 महीने की होती है। ऊंटनी अपने बच्चे को एक वर्ष तक दूध पिलाती है।

ऊँटों के प्रकार

भारत में दो प्रकार के ऊंट पाये जाते हैं-

  1. लद्दू ऊंट जो बोझ ढ़ोते हैं
  2. सवारी ऊंट - जो मुख्य रूप से सवारी के काम आते हैं।

बोझा ढ़ोने वाले लद्दू ऊंट बड़े बलिष्ट होते हैं तथा मैदानी, रेगिस्तानी और पहाड़ी भागों में समान शक्ति के साथ काम करते हैं। ये ऊंट 400 किलो तक बोझा ढ़ो सकते हैं तथा 3 किमी प्रति घंटे की गति से 30-40 किमी तक चल सकता हैं। सवारी के ऊंटों के पैर छोटे, छाती चौड़ी होती है। ये बिना रुके 100 किमी तक जा सकते हैं।

रेगिस्तानी ऊंट तीन प्रकार के होते हैं, बीकानेरी, जैसलमेरी और सिंधी ऊंट। जैसलमेरी ऊंट शक्ति, कार्यक्षमता में सबसे श्रेष्ठ होता है। ये ऊंट खेती तथा परिवहन दोनों के काम आते हैं। ऊंटों में प्रजनन हेतु राजस्थान राज्य अन्य राज्यों से काफी आगे हैं। ऊंटों में मदकाल दिसम्बर से मार्च तक रहता है। 6 वर्ष का ऊंट इस कार्य हेतु उपयुक्त है। एक ऊंट 30-50 ऊंटनियों से संगम कर सकता है। तथा 22 वर्ष की उम्र तक मद में आता है। ऊंटनी 4 वर्ष की उम्र से गर्भ धारण कर सकती है। ऊंटनियां 20 वर्ष की उम्र तक बच्चा दे सकती है। एक बार में एक बच्चा होता है तथा गर्भकाल 11-13 मास तक रहता है। गर्भपात एक सामान्य घटना है।

प्रजनन क्षेत्र

बीकानेर, गंगानगर आदि क्षेत्रों में ऊंटों का प्रजनन होता है। ऊंटों के प्रजनन में राजस्थान के बाद कच्छ (गुजरात) है। ऊंटों को सायबानो में रखा जाता है। सेना के ऊंटों को विशेष प्रबन्ध से रखा जाता है। नकेल से ऊंट को बांधा जाता है। ऊंट पर कसी जीन मजबूत होनी चाहिए तथा कूबड़ पर घाव न हो ऐसी व्यवस्था हो। ऊंटों की रोमावली बढ़ जाती है और इसे बसन्त ऋतु में काटकर कम्बल व अन्य गरम कपड़े बनाने के काम लिया जा सकता है। ठण्डे प्रदेशों में एक ऊंट से 5 किलो तक बाल प्राप्त किये जा सकते हैं। ऊंटों के प्रसिद्ध रोगों में गिल्टीरोग, निमोनिया, मोरा, अलर्क, सुर्रा तथा अन्य त्वचा रोग हैं।

ऊँटों का महत्त्व

ऊंट देश की अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका अदा करते हैं। खेत जोतने, बोझा ढ़ोने, परिवहन, पानी खींचने आदि में ये काम में आते हैं। राजस्थान में ऊंटों पर डाक सप्लाई की जाती है। पुस्तकालय चलाये जाते हैं तथा ऊंटों पर चल चिकित्सालय की व्यवस्था भी होती है। रेतीले क्षेत्रों में ऊंट ज्यादा लाभदायक पशु है। ऊंट गाड़ी पर 500 किलो तथा पीठ पर 300 किलो बोझा ढ़ो सकता है। ऊंटों का उपयोग परिवहन, खेती, व्यापार के अलावा भी किया जा सकता है। ऊंट के कई उत्पाद है जो काम में आते हैं। ऊंटों से बाल चमड़ा, मांस, कच्ची अस्थियां, दूध तथा खाद प्राप्त किये जाते हैं।

सेना में योगदान

देश की सेनाओं, सीमा सुरक्षा बलों, स्काउट, पुलिस आदि में भी ऊंटों का योगदान प्रमुख हैं। राजस्थानी सीमाओं पर तस्करी रोकने, गश्त लगाने तथा सेनाओं की मदद भी ऊंट करते हैं। युद्ध में प्राचीन काल में ऊंटों का उपयोग हाथी तथा घोड़ों के साथ-साथ होता था। कई प्रेम कहानियों में ऊंट ने अपनी भूमिका अदा की है। रेगिस्तानी क्षेत्रों की संस्कृति, परम्परा, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा सभी में ऊंट एक महत्वपूर्ण पशु है। आज भी हजारों परिवार ऊंटों की आमदनी से अपना खर्चा चलाते हैं। ऊंट उनकी रोजी-रोटी का महत्वपूर्ण साधन है। साहित्य, संस्कृति, कला, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य, भित्ति चित्रों सभी में ऊंटों को प्राथमिकता से उकेरा जाता है। ढोलामारु की अमर प्रेम कहानी हो या लैला मजनूं की दास्तान बिना ऊंट के अधूरी है।[1]

विशेषताएँ

  • ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमें दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है।
  • एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच उपर तक बढ़ता है।
  • ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है।
  • जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
  • ऊँट की औसतन आयु 40 से 50 वर्ष तक की होती है।
  • ऊँट सर्दियों में 2 महीनो तक बिना पानी के रह सकते हैं। ऊँट रोजाना पानी नहीं पीता। ऊँट एक बार में 100 से 150 लीटर तक पानी पी सकता है। ऊँट का प्रमुख्य आहार पेड़ों की हरी पत्तियां हैं।
  • ऊँट को कभी भी पसीना नहीं आता क्योंकि इसकी मोटी चमड़ी सूर्य की किरणों को रिफ्लेक्ट करती है।
  • ऊँट अरबियन कल्चर में एक एहम भूमिका निभाते हैं अरबियन भाषा में ऊँट के लिए 160 से अधिक शब्द हैं।
  • ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है क्योंकि वह रेगिस्तान में आसानी से चल और दौड़ सकता है।
  • ऊँट के तकरीवन 34 दांत होते हैं।
  • ऊँट की तीन पलकें होती हैं जिसके कारण रेगिस्तान में चलने बाली तेज़ हवाओं और धूल-मिटटी से उसकी रक्षा करती हैं।
  • ऊँटों की देखने और सुनने की शक्ति बहुत तेज़ होती है।
  • जन्म से ही ऊंट के बच्चों के कूबड़ नहीं होते।
  • एक ऊंटनी 12 से 14 महीनों के अंदर एक बच्चे को जन्म देती हैं तो इसका वजन 80 पौंड तक होता है और बच्चा बिल्कुल सफ़ेद रंग का होता है। जन्म के कई घंटे बीतने के बाद ही ऊंटनी का बच्चा खड़ा हो पाता है।[2]
  • ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है।
  • ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है।
  • ईसा से 1200 वर्ष पूर्व से ऊंटों पर सामान लादकर लाने-ले जाने की प्रथा चल रही है। उसके बाद सैनिकों ने भी ऊंटों का उपयोग अपना सामान लादने के लिए किया। राजस्थान में अजमेर से 14 किमी दूर पुष्कर में प्रतिवर्ष पशु मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में ऊंटों की खरीद-फरोख्त होती है।
  • ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।

रेगिस्तान का जहाज़

ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है। मरुस्थल जैसी गर्म जगहों पर पाया जाने वाला यह जीव अपने “कूबड़” के कारण बड़ा दिलचस्प प्रतीत होता है। ऊंटों के जन्म से ही कूबड़ नहीं होता बल्कि ये बड़े होने पर स्वतः आता है। ऊंट के बच्चे शुरुआत में कई साल तक अपनी माँ के साथ ही रहते हैं। ऊंट बहुत ही शांत स्वभाव के पशु होते हैं वह कभी भी बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होते ऊंट के कूबड़ में उसके पूरे शरीर की मोटी चर्बी जमा होती है और इसी कूबड़ की वजह से ऊंट भयंकर गर्मी वाले रेगिस्तान में भी आराम से रह पाता है। एशियाई ऊंटों के दो कूबड़ होते हैं जबकि अरब के ऊंटों का सिर्फ एक कूबड़ होता है ऊंट की आँखों में पलकों की तीन परत होती हैं जिससे वह धूल और रेत से आँखों को बचा पाता है। ऊंटों के कान छोटे और बालों से भरे होते हैं हालाँकि ऊंटों के सुनने की शक्ति बहुत तेज होती है। ऊंट रोजाना पानी नहीं पीते लेकिन जब पीते हैं तो एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीते हैं ऊंट कांटेदार टहनियों को भी आसानी से खा सकते हैं जबकि दूसरे पशु कांटेदार तने या टहनियां नहीं खा पाते। ऊंट को अगर मालिक डांटता है तो ऊंट जमीन पर थूकना शुरू कर देता है। ऊंट की मोटी चमड़ी सूरज की किरणों को रिफ्लेक्ट कर देती है इसलिए ऊंट का शरीर कभी भी ज्यादा गर्म नहीं होता। ऊंट को कभी पसीना नहीं आता इसीलिए वह रेगिस्तान के लिए सबसे उत्तम पशु है। ऊंट को आपने अक्सर बहुत धीमा धीमा चलते देखा होगा लेकिन ऊंट रेगिस्तान में 40 मील प्रति घंटा से तेज रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। ऊंट घास, अनाज, बीज, टहनियाँ ही खाते हैं। ऊंट अपने नाक के नथुने भी बंद कर लेते हैं ताकि रेत अंदर ना घुसे। ऊंटों की औसत आयु 40-50 साल होती है। ऊंट सर्दियों में दो महीने तक बिना पानी पिए रह सकते हैं, दरअसल ऊंटों के कूबड़ में उनके शरीर की चर्बी जमी होती है जो जरूरत पड़ने पर उनके लिए खाना और पानी की कमी की पूर्ति करती रहती है। ऊंटों का पेशाब चाशनी जैसा गाढ़ा होता है। ऊंट के दूध में गाय से दूध से कम वसा होता है।[3]

रोचक जानकारी

लगभग 40 से 50 साल जिंदा रहने वाले ऊंट के शरीर में विभिन्न प्रकार की खूबियां होती हैं जिनके कारण वह रेगिस्तान के अलग और कठिन वातावरण में रह पाता है। रेगिस्तान में रेतभरी हवाएं चलती हैं जिनसे बचाव के लिए ऊंट की पलकों और कानों पर लंबे बाल होते हैं और इसकी नाक पूरी तरह से बंद हो जाती है। पलकों और कानों पर होने वाले लंबे बालों से रेत आंखों और कानों के अंदर नहीं जा पाती। ऊंट एक हफ्ते से ज्यादा पानी पिए बिना और कई महीनों तक बिना खाने के रह सकता है। ऊंट की एक बार में 46 लीटर तक पानी पीने की क्षमता होती है। ऊंट की पीठ पर एक कूबड़ होती है जिसमें ऊंट फैट (वसा) इकट्ठा करके रखता है और इसी ऊर्जा से महीनों तक अपना काम चलाता है। एक स्वस्थ ऊंट के शरीर का तापमान दिनभर में 34 डिग्री सेल्सियस से 41.7 डिग्री सेल्सियस के बीच में बदलता रहता है जिससे ऊंट पसीने के रूप में पानी के क्षय को रोकता है, जब वातावरण में तापमान बढ़ता है। ऊंट के पैर चौड़े होते हैं और उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं साथ ही साथ रेत में धंसते नहीं हैं जिससे वह रेत में आसानी से चल पाता है। ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है। इसकी लंबी गर्दन की वजह से यह ऊंचे वृक्षों की पत्तियों को भी खा पाता है। इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके। यह त्वचा ऊंट के उम्र 5 वर्ष का होने के बाद बनती है। ऊंट के शरीर के रंग की वजह से भी इसे रेगिस्तान के मौसम में रहने में आसानी होती है। इसके शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे यह धूप सह लेता है।[4]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यशवन्त कोठारी का आलेख : रेगिस्तान का जहाज : ऊंट (हिंदी) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  2. ऊंट के बारे में ख़ास बातें जाने (हिंदी) हिन्दी पॉट। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  3. रेगिस्तान का जहाज़ (हिंदी) हिन्दी सोच। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।
  4. ऊंट के बारे में रोचक जानकारी (हिंदी) achi tips। अभिगमन तिथि: 20 अक्टूबर, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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