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'''देवकी कुमार बोस''' (जन्म- [[25 नवम्बर]], [[1898]], [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु- [[11 नवम्बर]], [[1971]], [[कोलकाता]]) 'मूक युग' के बाद [[भारतीय सिनेमा]] के इतिहास में आये थियेटर्स युग के बेहद कल्पनाशील फ़िल्म निर्देशक थे। वे [[ध्वनि]] और [[संगीत]] के अद्भुत जानकरा थे। यही कारण है कि उनके द्वारा निर्देशित सभी फ़िल्मों में संगीत का माधुर्य बिखरा पड़ा है। उनकी अधिकतर फ़िल्मों में रामचंद्र बोराल ने संगीत दिया था। देवकी बोस ही वह पहले [[बंगाली भाषा|बंगाली]] फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्होंने '[[भारतीय शास्त्रीय संगीत]]' के साथ '[[रवीन्द्र संगीत]]' को मिला कर फ़िल्मों में एक अद्भुत ध्वनि माधुर्य पैदा किया। यदि देवकी बोस 'न्यू थियेटर्स' से न जुड़ते तो संभव था कि 'न्यू थियेटर्स' की वह प्रसिद्धि नहीं होती जो आज है।
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[[भारत]] की आज़ादी के लिए [[महात्मा गाँधी]] द्वारा चलाया गया '[[असहयोग आन्दोलन]]' अपने चरम बिन्दू पर था। इस आन्दोलन से देवकी बोस स्वयं भी बहुत प्रभावित थे। इसके परिणामस्वरूप आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए देवकी बोस ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वह कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में रह कर एक छोटे-से अख़बार "शक्ति" का संपादन करने लगे।
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==फ़िल्म निर्देशन==
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इन्हीं दिनों पत्रकारिता करते हुए उनकी मुलाकात धीरेन गांगुली से हुई। देवकी बोस ने धीरेन गांगुली की 'ब्रिटिश डोमिनियन कम्पनी' के लिए कई मूक फ़िल्मों की पटकथा लिखी। इसके साथ ही कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, चूँकि इन तमाम फ़िल्मों का छायांकन कृष्ण गोपाल ने किया था, इसलिए देवकी बोस से उनकी मित्रता हो गयी। कृष्ण गोपाल नवाबों के शहर [[लखनऊ]] के थे, इसलिए वह चाहते थे कि लखनऊ में रहते हुए ही फ़िल्म बनायें। लखनऊ की एक फ़िल्म कम्पनी 'यूनाइटेड फ़िल्म कारपोरेशन' एक फ़िल्म बनाना चाहती थी, जिसमें छायांकन का काम कृष्ण गोपाल को सौंपा गया था। उन्होंने फ़िल्म को निर्देशित करने के लिए देवकी बोस को कलकत्ता से बुला लिया।
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====फ़िल्म की असफलता====
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वर्ष [[1930]] में 'द शैडो ऑफ़ डैड' फ़िल्म बन कर तैयार हुई। लेकिन यह फ़िल्म बुरी तरह से असफल हो गयी। देवकी बोस तो लखनऊ से वापस कलकत्ता चले गये, लेकिन फ़िल्म के छायाकार कृष्ण गोपाल को कम्पनी ने बंधक बना लिया और कहा कि 'वह कम्पनी छोड़ कर तब ही जा सकते हैं, जब पूरे घाटे की भरपाई करें'। यह कृष्ण गोपाल के बस में नहीं था। इसलिए वह कम्पनी के बंधक बने रहे और उम्मीद करते रहे कि देवकी बोस उन्हें छुड़ाने के लिए पैसे लेकर आएँगे। देवकी बोस ने प्रथमेश बरूआ से उन्हें अपनी फ़िल्म कम्पनी में रखने की गुजारिश की और फिर कृष्ण गोपाल को छुड़वाने के लिए भी उनसे पैसा हासिल कर लिया। इस तरह कृष्ण गोपाल देवकी बोस की वजह से ही कम्पनी के बन्धन से छूट सके।
  
 
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12:11, 19 जनवरी 2013 का अवतरण

देवकी कुमार बोस (जन्म- 25 नवम्बर, 1898, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 11 नवम्बर, 1971, कोलकाता) 'मूक युग' के बाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में आये थियेटर्स युग के बेहद कल्पनाशील फ़िल्म निर्देशक थे। वे ध्वनि और संगीत के अद्भुत जानकरा थे। यही कारण है कि उनके द्वारा निर्देशित सभी फ़िल्मों में संगीत का माधुर्य बिखरा पड़ा है। उनकी अधिकतर फ़िल्मों में रामचंद्र बोराल ने संगीत दिया था। देवकी बोस ही वह पहले बंगाली फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्होंने 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' के साथ 'रवीन्द्र संगीत' को मिला कर फ़िल्मों में एक अद्भुत ध्वनि माधुर्य पैदा किया। यदि देवकी बोस 'न्यू थियेटर्स' से न जुड़ते तो संभव था कि 'न्यू थियेटर्स' की वह प्रसिद्धि नहीं होती जो आज है।

जन्म

देवकी बोस का जन्म 25 नवम्बर, 1898 ई. को वर्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता अपने समय के एक नामी वकील थे। जिन दिनों देवकी बोस अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर रहे थे, उस समय देश को स्वतंत्रता दिलाने के कई क्रांतिकारी अपनी गतिविधियाँ चला रहे थे। इनमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सर्वप्रमुख थे।

गाँधीजी का प्रभाव

भारत की आज़ादी के लिए महात्मा गाँधी द्वारा चलाया गया 'असहयोग आन्दोलन' अपने चरम बिन्दू पर था। इस आन्दोलन से देवकी बोस स्वयं भी बहुत प्रभावित थे। इसके परिणामस्वरूप आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए देवकी बोस ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वह कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में रह कर एक छोटे-से अख़बार "शक्ति" का संपादन करने लगे।

फ़िल्म निर्देशन

इन्हीं दिनों पत्रकारिता करते हुए उनकी मुलाकात धीरेन गांगुली से हुई। देवकी बोस ने धीरेन गांगुली की 'ब्रिटिश डोमिनियन कम्पनी' के लिए कई मूक फ़िल्मों की पटकथा लिखी। इसके साथ ही कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, चूँकि इन तमाम फ़िल्मों का छायांकन कृष्ण गोपाल ने किया था, इसलिए देवकी बोस से उनकी मित्रता हो गयी। कृष्ण गोपाल नवाबों के शहर लखनऊ के थे, इसलिए वह चाहते थे कि लखनऊ में रहते हुए ही फ़िल्म बनायें। लखनऊ की एक फ़िल्म कम्पनी 'यूनाइटेड फ़िल्म कारपोरेशन' एक फ़िल्म बनाना चाहती थी, जिसमें छायांकन का काम कृष्ण गोपाल को सौंपा गया था। उन्होंने फ़िल्म को निर्देशित करने के लिए देवकी बोस को कलकत्ता से बुला लिया।

फ़िल्म की असफलता

वर्ष 1930 में 'द शैडो ऑफ़ डैड' फ़िल्म बन कर तैयार हुई। लेकिन यह फ़िल्म बुरी तरह से असफल हो गयी। देवकी बोस तो लखनऊ से वापस कलकत्ता चले गये, लेकिन फ़िल्म के छायाकार कृष्ण गोपाल को कम्पनी ने बंधक बना लिया और कहा कि 'वह कम्पनी छोड़ कर तब ही जा सकते हैं, जब पूरे घाटे की भरपाई करें'। यह कृष्ण गोपाल के बस में नहीं था। इसलिए वह कम्पनी के बंधक बने रहे और उम्मीद करते रहे कि देवकी बोस उन्हें छुड़ाने के लिए पैसे लेकर आएँगे। देवकी बोस ने प्रथमेश बरूआ से उन्हें अपनी फ़िल्म कम्पनी में रखने की गुजारिश की और फिर कृष्ण गोपाल को छुड़वाने के लिए भी उनसे पैसा हासिल कर लिया। इस तरह कृष्ण गोपाल देवकी बोस की वजह से ही कम्पनी के बन्धन से छूट सके।


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