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*पूर्व में [[बंगाल]] तक [[मौर्य साम्राज्य]] के विस्तृत होने की पुष्टि महास्थान शिलालेख से होती है। यह अभिलेख [[ब्राह्मी लिपि]] में है और [[मौर्य काल]] का माना जाता है। [[महावंश]] के अनुसार [[अशोक]] अपने पुत्र को विदा करने के लिए [[ताम्रलिप्ति]] तक आया था। [[ह्वेनसांग]] को भी ताम्रलिप्ति, [[कर्णसुवर्ण]], [[समतट]], [[पूर्वी बंगाल]] तथा पुण्ड्रवर्धन में [[अशोक]] के [[स्तूप]] देखने को मिले थे।
 
*पूर्व में [[बंगाल]] तक [[मौर्य साम्राज्य]] के विस्तृत होने की पुष्टि महास्थान शिलालेख से होती है। यह अभिलेख [[ब्राह्मी लिपि]] में है और [[मौर्य काल]] का माना जाता है। [[महावंश]] के अनुसार [[अशोक]] अपने पुत्र को विदा करने के लिए [[ताम्रलिप्ति]] तक आया था। [[ह्वेनसांग]] को भी ताम्रलिप्ति, [[कर्णसुवर्ण]], [[समतट]], [[पूर्वी बंगाल]] तथा पुण्ड्रवर्धन में [[अशोक]] के [[स्तूप]] देखने को मिले थे।
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*गुप्तकालीन अभिलेखों से सूचित होता है कि [[गुप्त साम्राज्य]] में पुंड्रवर्धन नाम की एक 'भुक्ति' थी, जो 'पुंड्र देश' के अंतर्गत आती थी। इसमें कोटिवर्ष आदि अनेक वर्ष सम्मलित थे। इन ताम्रपट्ट लेखों से सूचित होता है कि लगभग समग्र उत्तरी बंगाल या पुंड्र देश, पुंड्रवर्धन भुक्ति में सम्मलित था और यह 443 ई. से 543 ई. तक गुप्त साम्राज्य का अविछिन्न अंग था। यहाँ  के शासक '''उपरिक महाराज''' की उपाधि धारण करते थे और इन्हें 'गुप्त नरेश' नियुक्त करते थे। [[कुमारगुप्त प्रथम]] के समय में '''उपरिक चिरातदत्त''' को पुंड्रवर्धन का शासक नियुक्त किया गया था और [[बुधगुप्त]] के समय<ref> 163 गुप्त सम्वत या 483 - 484 ई.</ref> में यहाँ का शासक '''ब्रह्मदत्त''' था। इस भुक्त का प्रधान नगर 'वर्तमान रंगपुर' के निकट रहा होगा।
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17:06, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • भारत के बिहार राज्य के पूर्णिया ज़िले में अशोक के स्तूप हैं।
  • पूर्व में बंगाल तक मौर्य साम्राज्य के विस्तृत होने की पुष्टि महास्थान शिलालेख से होती है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है और मौर्य काल का माना जाता है। महावंश के अनुसार अशोक अपने पुत्र को विदा करने के लिए ताम्रलिप्ति तक आया था। ह्वेनसांग को भी ताम्रलिप्ति, कर्णसुवर्ण, समतट, पूर्वी बंगाल तथा पुण्ड्रवर्धन में अशोक के स्तूप देखने को मिले थे।
  • गुप्तकालीन अभिलेखों से सूचित होता है कि गुप्त साम्राज्य में पुंड्रवर्धन नाम की एक 'भुक्ति' थी, जो 'पुंड्र देश' के अंतर्गत आती थी। इसमें कोटिवर्ष आदि अनेक वर्ष सम्मलित थे। इन ताम्रपट्ट लेखों से सूचित होता है कि लगभग समग्र उत्तरी बंगाल या पुंड्र देश, पुंड्रवर्धन भुक्ति में सम्मलित था और यह 443 ई. से 543 ई. तक गुप्त साम्राज्य का अविछिन्न अंग था। यहाँ के शासक उपरिक महाराज की उपाधि धारण करते थे और इन्हें 'गुप्त नरेश' नियुक्त करते थे। कुमारगुप्त प्रथम के समय में उपरिक चिरातदत्त को पुंड्रवर्धन का शासक नियुक्त किया गया था और बुधगुप्त के समय[1] में यहाँ का शासक ब्रह्मदत्त था। इस भुक्त का प्रधान नगर 'वर्तमान रंगपुर' के निकट रहा होगा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 163 गुप्त सम्वत या 483 - 484 ई.

माथुर, विजयेन्द्र कुमार ऐतिहासिक स्थानावली, द्वितीय संस्करण-1990 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृष्ठ संख्या-563।

बाहरी कड़ियाँ

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