"प्रमाणमंजरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
*इसमें छ: हेत्वाभास और दो प्रमाण स्वीकार किए गए हैं।  
 
*इसमें छ: हेत्वाभास और दो प्रमाण स्वीकार किए गए हैं।  
 
*अभाव के प्रकारों के निरूपण में इसमें निम्नलिखित रूप से एक नई पद्धति अपनाई गई है—
 
*अभाव के प्रकारों के निरूपण में इसमें निम्नलिखित रूप से एक नई पद्धति अपनाई गई है—
 +
*इसके रचयिता सर्वदेव का समय पन्द्रहवीं शती से पूर्व माना जाता है।
 +
*प्रमाणमंजरी पर अद्वयारण्य, वामनभट्ट  और बलभद्र द्वारा टीकाओं की रचना की गई है।
 +
*ये टीकाएँ [[राजस्थान]] पुरातन ग्रन्थामाला में प्रकाशित हुई हैं।
 
{| class="bharattable-purple"   
 
{| class="bharattable-purple"   
 
|+अभाव
 
|+अभाव
पंक्ति 18: पंक्ति 21:
 
<br />(अत्यन्ताभाव:)
 
<br />(अत्यन्ताभाव:)
 
|}
 
|}
*इसके रचयिता सर्वदेव का समय पन्द्रहवीं शती से पूर्व माना जाता है।
 
*प्रमाणमंजरी पर अद्वयारण्य, वामनभट्ट  और बलभद्र द्वारा टीकाओं की रचना की गई है।
 
*ये टीकाएँ [[राजस्थान]] पुरातन ग्रन्थामाला में प्रकाशित हुई हैं।
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{वैशेषिक दर्शन2}}
 
{{वैशेषिक दर्शन2}}

10:35, 19 जुलाई 2011 का अवतरण

  • प्रमाणमंजरी ग्रंथ सर्वदेव रचित है।
  • प्रमाणमंजरी ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव का सात प्रकरणों में विश्लेषण किया गया है।
  • इस वैशेषिक ग्रन्थ में भाव और अभाव भेद से पदार्थों का विभाग किया गया है।
  • इसमें छ: हेत्वाभास और दो प्रमाण स्वीकार किए गए हैं।
  • अभाव के प्रकारों के निरूपण में इसमें निम्नलिखित रूप से एक नई पद्धति अपनाई गई है—
  • इसके रचयिता सर्वदेव का समय पन्द्रहवीं शती से पूर्व माना जाता है।
  • प्रमाणमंजरी पर अद्वयारण्य, वामनभट्ट और बलभद्र द्वारा टीकाओं की रचना की गई है।
  • ये टीकाएँ राजस्थान पुरातन ग्रन्थामाला में प्रकाशित हुई हैं।
अभाव
जन्य:
(प्रध्वंस:)
अजन्य:
विनाशी
(प्रागभाव:)
अविनाशी
समानाधकिरणानिषेध:


(इतरेतराभाव:)

असमानाधिकरणनिषेध:


(अत्यन्ताभाव:)

संबंधित लेख